खुले आसमान में जब भी मैं चमचमाते हुए तारों तथा अद्भुत रंगों से बनी आकाशगंगा को देखता हूँ, तो पता नहीं दिल में एक अजीब सा आनंद और उत्साह का संचार होता है। ऐसा लगता है की, मानो यह अंतरिक्ष एक दम से मेरी आँखों में समा ही गया हो। यूं तो इंसानों ने अभी तक पूरे ब्रह्मांड का सिर्फ 5% हिस्सा ही खोज रखा है, परंतु फिर भी ब्रह्मांड के इतने छोटे से हिस्से में ही हमें कई सारे अजूबों को अवलोकन करने का मौका मिल ही जाता है। बहरहाल मेरे दिल में हमेशा एक संशय सा बना रहता है की, अरबों प्रकाश वर्ष दूरी पर मौजूद इन सितारों और आकाशगंगाओं को वैज्ञानिक आखिर किस तकनीक से (gravitational lensing in hindi) ढूंढते होंगे!
ग्रेविटेशनल लेंसिंग (gravitational lensing in hindi) यह एक ऐसा शब्द है, जिसके बारे में आम जनता को शायद ज्यादा पता नहीं होगा। खैर व्यक्तिगत तौर पर मुझे भी इसके बारे में हाल ही में पता चला की, इस तकनीक के जरिए ही वैज्ञानिक पृथ्वी से अरबों/खरबों प्रकाश वर्ष दूरी पर मौजूद बहुत सारे खगोलीय पिंडों तथा आकाशगंगाओं की खोज करते हैं। वाकई में मित्रों! सुनने में जितना यह अद्भुत हैं, ठीक इसी तरह इसके बारे में और अधिक जानना भी बहुत ही दिलचस्प हैं।
इसलिए मित्रों! आज मेँ आप लोगों को इस लेख के जरिए ग्रेविटेशनल लेंसिंग से जुड़ी हर एक पहलू को समझाना चाहता हूँ, जिससे की आप लोगों को एक बहुत ही अनोखी तथा विशेष विषय के ऊपर जानने का मौका मिले। तो, चलिए रेडी हो जाइए आज के ग्रेवीटेशनल लेंसिंग से जुड़ी एक रोमांच से भरी सफर के लिए जो की, शायद आपका अंतरिक्ष को देखने का नजरिया ही बदल दे !
Gravitational Lensing क्या हैं? – What Is Gravitational Lensing In Hindi? :-
ग्रेवीटेशनल लेंसिंग (gravitational lensing in hindi) के बारे में जानने से पहले, हमें इससे जुड़ी कुछ मूलभूत बातों के बारे में जानना पड़ेगा। ग्रेविटेशनल लेंसिंग से जुड़ी सबसे मूलभूत बात हैं ग्रेविटेशनल लेंस (Gravitational Lens)। जी हाँ! Gravitational Lens एक तरह का ऐसा लेंस होता हैं, जो की अंतरिक्ष में मौजूद किसी भी प्रकाश की स्रोत से प्रेक्षक तक आ रहें प्रकाश के किरणों को मोड देती हैं। कहने का तात्पर्य यह है की, यह लेंस अंतरिक्ष में मौजूद सभी प्रकाश के किरणों को प्रेक्षक तक पहुँचने से पहले ही मोड कर प्रकाश की स्रोत के बारे में तथ्य जुटाने में सक्षम हैं।
वैसे प्रकाश के किरणों की मुड़ने की प्रक्रिया को ही, ग्रेविटेशनल लेंसिंग (gravitational lensing in hindi) कहते हैं। वैसे ग्रेविटेशनल लेंसिंग की मात्रा आइन्सटाइन के द्वारा दिए गए सापेक्षता की सिद्धांतों के ऊपर निर्भर करता हैं। वैसे बता दूँ की, इस प्रक्रिया को सबसे पहले आइन्सटाइन जी ने साल 1936 में खोजा था, जो की बाद में वैज्ञानिकों के लिए एक काफी लोकप्रिय तकनीक भी बना।
वैसे साल 1979 में ग्रेविटेशनल लेंसिंग के आधार पर दूर अंतरिक्ष में मौजूद आकाशगंगाओं को ढूंढा गया, जो की इसके आविष्कार के समय के मुक़ाबले काफी देरी से हुआ। इससे सबसे पहले Twin QSO नाम के एक तारों की समूह को ढूंढा गया था, जो की अंतरिक्ष विज्ञान में एक बहुत बड़ा मुकाम साबित हुआ।
Gravitational Lensing आखिर क्यों होती हैं ? – What Causes Gravitational Lensing ? :-
देखा जाए तो ग्रेवीटेशनल लेंसिंग (gravitational lensing in hindi) की प्रक्रिया एक तरह से प्राकृतिक ही हैं। जी हाँ! दोस्तों मेँ आपको यहाँ बता दूँ की, Gravitational Lensing की प्रमुख वजह खुद अंतरिक्ष ही हैं। आइए कैसे कैसे आगे जानते हैं!
ध्यान से पढ़िएगा मित्रों! अंतरिक्ष में मौजूद हर एक वजन युक्त चीज़ उसके आसपास मौजूद स्पेस-टाइम को विरूपित (Distortion) करने में सक्षम हैं। हालांकि बहुत ही छोटे-छोटे चीजों में इसकी मात्रा बहुत ही कम होता हैं, परंतु जब हम अरबों-खरबों प्रकाश वर्ष दूर मौजूद विशालकाय आकाशगंगाओं की बात करें तो, उन आकाशगंगाओं का वजन काफी गंभीर रूप से उनके आसपास मौजूद स्पेस-टाइम को विरूपित कर देता हैं।
स्पेस-टाइम गंभीर रूप से विरूपित होने के कारण, उन आकाशगंगाओं के पीछे भी मौजूद अन्य आकाशगंगाओं से आने वाली प्रकाश की किरणें काफी ज्यादा मूड जाती हैं। इससे ऐसा लगता हैं की, हम किसी बड़े से प्राकृतिक लेंस में देख रहें हैं। इसके अलावा इसके कारण वैज्ञानिक बहुत ही आसानी से अंतरिक्ष में बहुत दूरी तक भी देख सकते हैं।
यहाँ पर अगर मेँ कहूँ की, ग्रेवीटेशनल लेंसिंग के कारण सुदूर अंतरिक्ष में मौजूद आकाशगंगाओं की बहुत सारे फोटो वैज्ञानिकों को आसानी से मिल जाते हैं तो यह बिलकुल भी गलत नहीं होगा। वैसे यहाँ पर एक मुझे अभी-अभी याद आया की, मैंने अंतरिक्ष में मौजूद एक ऐसे कण के बारे में भी लेख लिखा है की जो की प्रकाश से भी तेज हैं और ऐसे सुदूर आकाशगंगाओं तक पल भर में पहुंच सकता हैं। तो, अगर आप इस कण के बारे में जानना चाहते हैं तो, उस लेख को अवश्य ही एक बार पढ़िएगा।
Gravitational Lensing के जरिए आखिर कैसे ढूंढा जाता हैं दूरवर्ती आकाशगंगाओं को ? :-
मित्रों! ग्रेविटेशनल लेंसिंग की तकनीक बहुत ही सरल व सटीक हैं। जानना चाहते हैं कैसे? तो लेख को आगे पढ़ते रहिए।
मैंने ऊपर भी कहा है की; जब कोई एक वजन युक्त वस्तु या पिंड अंतरिक्ष में मौजूद रहता है तो, वह अपने आसपास की स्पेस-टाइम को काफी प्रभावित करता हैं। तो जरा सोचिए की, कोई एक बहुत ही भारी चीज़ जैसे किसी आकाशगंगा का केंद्र ग्रेविटेशनल लेंसिंग (gravitational lensing in hindi) के जरिए अपने आसपास मौजूद स्पेस-टाइम को कितना प्रभावित करता होगा।
आमतौर पर आकाशगंगाओं का केंद्र उनके पीछे मौजूद आकाशगंगाओं से आने वाली प्रकाश के किरणों को, इस हद तक मोड देती हैं की, प्रकाश का गोलाकृति आकृति बन जाती हैं जो की वास्तव में वह पीछे वाले आकाशगंगा की परछाई के कारण बनी हुई होती हैं। वैसे इस गोलाकृति आकृति को वैज्ञानिक “Einstein Ring” कहते हैं। हमारे वैज्ञानिक इन Einstein Ring के जरिए कई सारे आकाशगंगाओं को ढूँढने में सक्षम रहते हैं। बता दूँ की, इसकी वजह से हबल स्पेस टेलिस्कोप की अंतरिक्ष में देखने की क्षमता में भी काफी ज्यादा बढ़ जाता हैं।
इसके अलावा कई बार सुदूर आकाशगंगाओं की फोटो मुड़ी हुई तथा आंशिक गोलाकृति खंडों में भी देखी जा सकती हैं। वैसे इन तस्वीरों के बारे में जानना थोड़ा कठिन और जटिल भी हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
पारंपारिक टेलिस्कोप तथा बिना ग्रेविटेशनल लेंसिंग (gravitational lensing in hindi) के हम लोग अंतरिक्ष में बहुत दूर तक देखने में कभी सक्षम ही नहीं हो पाते। वैज्ञानिक कहते हैं की; ग्रेविटेशनल लेंसिंग के वजह से हम आज अरबों प्रकाश वर्ष के दूरी पर भी मौजूद आकाशगंगाओं को देख सकते हैं, नहीं तो हम सिर्फ कुछ हजार या लाख प्रकाश वर्ष की दूरी तक ही देखने में सक्षम हो पाते। तो आप इससे अंदाजा लगा ही सकते हैं की, अंतरिक्ष में विज्ञान में इसकी क्या महत्व हैं। इसके बिना पूरा अंतरिक्ष विज्ञान ही चंद प्रकाश वर्षों में सिमट जाता।
आज वैज्ञानिक इस तकनीक के जरिए ग्रहों तथा उनके आसपास मौजूद उप-ग्रहों को भी ढूंढ रहें हैं। ऐसे में कहा जा सकता हैं की, खुद अंतरिक्ष हमें उसकी खोज करने के लिए प्रेरणा दे रही हैं। कुछ वैज्ञानिक यह भी कहते हैं की, ग्रेविटेशनल लेंसिंग के जरिए शायद हम लोग आने वाले समय में कई अद्भुत चीजों को भी देखने में सक्षम हो पाएंगे जिसके बारे में हम लोग आज सोच भी नहीं सकते हैं।
हालांकि इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए की, आज भी वैज्ञानिकों को इस गज़ब की तकनीक को 100% इस्तेमाल करने का मौका नहीं मिला हैं । इसलिए अभी से इसके बारे में बहुत कुछ टिप्पणी देना भी सही नहीं हैं। परंतु इतना अवश्य ही कहा जा सकता है की, यह आने वाले समय में हमारे लिए अंतरिक्ष में मौजूद बहुत सारी अज्ञात तथ्यों को उजागर करने का प्रमुख साधन बन सकता हैं। इसके बारे में आपका क्या ख्याल हैं! जरूर ही बताइएगा, हमें बहुत ही खुशी होगी।
Sources :- www.universetoday.com, www.hubblesite.org, www.nytimes.com.