असीरगढ़ किला- भारत देश को मंदिरो का देश माना जाता है, यहाँ पर स्थित हर किला और मंदिर किसी ना किसी रहस्य से भरे हुए रहते हैं। कई मंदिरों का रहस्य आजतक कोई नहीं जान पाया है , वैज्ञानिको का गहन शोध भी यहां काम नहीं करता है। भारत के कई शहरों में आपको रहस्यमयी धाम मिल जायेंगे जिनका किसी ना किसी घटना से संबंध रहता है।
आज हम इसी तरह का मध्यप्रदेश का रहस्यमयी किला बताने जा रहे हैं जिसका रहस्य आज कोई नहीं सुलझा पाया है। यह असीरगढ़ किला है जो मध्य प्रदेश राज्य की पहाडियों में स्थित है। आइये जानते हैं….
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अद्भुत है सौंदर्य
सतपुड़ा पर्वत की गोद और प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित है असीरगढ़। इस क्षेत्र में ताप्ती और नर्मदा नदी का संगम भी है। यह प्राचीन समय में दक्षिण भारत जाने के द्वार के रूप में भी जाना जाता था। इस किले व मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे करीबी स्थान बुरहानपुर शहर है। जहां से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर असीरगढ़ किले में यह मंदिर स्थित है। यहां पहुंचना मन में अध्यात्म के साथ रोमांच पैदा करता है। यह देश के सभी प्रमुख शहरों से आवागमन के साधनों से जुड़ा है। रेल मार्ग द्वारा खंडवा स्टेशन पहुंचकर भी यहां पहुंचा जा सकता है।
माना जाता है अश्वत्थामा करते हैं यहाँ पूजा
असीरगढ़ के किले के संदर्भ में लोक मान्यता है कि इस किले के गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में अश्वत्थामा अमावस्या व पूर्णिमा तिथियों पर शिव की उपासना और पूजा करते हैं। वह आज भी यहां पूजा करते हैं, इस दावे की पुष्टि तो नहीं हुर्इ लेकिन कुछ बातें स्वतः झलकती हैं वह वही हो सकते हैं। माना जाता है कि वे पिछले 5000 साल से यहाँ रोज अमावस की रात शिव जी की पूजा करने आते हैं।.
– ये हैं सात पौराणिक पात्र जो आज भी है जीवित
– पांच हज़ार साल पुराना निधिवन का रहस्य, जहाँ आज भी श्री कृष्णा रास रचाने आते हैं।
पागल हो जाता है देखने वाला
कहा जाता है कि असीरगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश के ही जबलपुर शहर के गौरीघाट (नर्मदा नदी) के किनारे भी अश्वत्थामा भटकते रहते हैं। स्थानीय निवासियों के अनुसार कभी-कभी वे अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की मांग भी करते हैं। कई लोगों ने इस बारे में अपनी आपबीती भी सुनाई।किसी ने बताया कि उनके दादा ने उन्हें कई बार वहां अश्वत्थामा को देखने का किस्सा सुनाया है।
तो किसी ने कहा- जब वे मछली पकडऩे वहां के तालाब में गए थे, तो अंधेरे में उन्हें किसी ने तेजी से धक्का दिया था। शायद धक्का देने वाले को उनका वहां आना पसंद नहीं आया। गांव के कई बुजुर्गों की मानें तो जो एक बार अश्वत्थामा को देख लेता है, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है।
बहुत पुराना है मंंदिर
यह मंदिर बहुत पुराना है। यहां तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पैदल चढ़ाई करनी होती है। किंतु यहां पर पहुंचने पर विशेष आध्यात्मिक अनुभव होता है। मंदिर चारों ओर खाई व सुरंगो से घिरा है। माना जाता है इस खाई में बने गुप्त रास्ते से ही अश्वत्थामा मंदिर में आते-जाते हैं। इसके सबूत के रूप में मंदिर में सुबह गुलाब के फूल और कुंकुम दिखाई देते हैं।
माना जाता है कि अश्वत्थामा मंदिर के पास ही स्थित इस तालाब में स्नान करते हैं। उसके बाद शिव की आराधना करते हैं। इस मंदिर को लेकर लोक जीवन में एक भय भी फैला है कि अगर कोई अश्वत्थामा को देख लेता है तो उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है। किंतु मंदिर के शिवलिंग के लिए धार्मिक आस्था है कि शिव के दर्शन से हर शिव भक्त लंबी उम्र पाने के साथ सेहतमंद रहता है।