हमारे सौर-मण्डल में अनेक प्रकार के ग्रह मौजूद हैं। कुछ ग्रह आकार में काफी छोटे व गरम होते हैं, तो कुछ ग्रह आकार में काफी ज्यादा बड़े व ठंडे। वैसे सबसे रोचक बात ये भी है कि, हमारे इस सौर-मण्डल में जीवन को भी देखने को मिलता है। परंतु क्या आप जानते हैं, हमारे सौर-मंडल के कुछ ग्रह, आज भी हमारे लिए एक रहस्य बने हुए हैं। क्योंकि ये ग्रह हमसे काफी दूर और अनजान जगहों पर बसे हुए हैं। ऐसे में इन ग्रहों को हमारे लिए जानना काफी ज्यादा जरूरी हो जाता है। मित्रों! नेपच्यून (Why There is No Space Mission on Neptune) भी एक ऐसा ग्रह है, जिसके बारे में हमें ज्यादा कुछ पता नहीं है।
ये ही वजह है कि, समय-समय पर इसके बारे में काफी कुछ अनुमान लगाए जाते रहें हैं। नेपच्यून (Why There is No Space Mission on Neptune) की जब भी बात आती है, तो सबसे पहले हमारे मन में एक नीली ठंडी व विशाल गैस जायंट की तस्वीर आती है। परंतु क्या आपको इस ग्रह से जुड़ी कुछ मूलभूत बातों के बारे में पता है? शायद ही आप लोगों का उत्तर हाँ! होगा। क्योंकि इसके बारे में ज्यादा कुछ इंटरनेट पर पढ़ने को मिलता भी नहीं है।
इसलिए आज के हमारे इस लेख का विषय नेपच्यून और उसके चंद्रमा ट्राइटन और इसपे हुए स्पेस मिशनों के बारे में हैं। तो अपनी कुर्शी की पेटी बांध लीजिये और मेरे साथ इस लेख के जरिये चलिये एक खास नेपच्यूनीयन सफर पर।
अब तक नेपच्यून पर एक भी स्पेस मिशन क्यों नहीं हुए हैं? – Why There is No Space Mission on Neptune? :-
ये 21 वीं शताब्दी हैं और आज के तकनीक के अनुसार हम स्पेस एक्सप्लोरेशन में काफी आगे निकल चुके हैं। चाँद से ले कर मंगल तक और ब्लैक होल से ले कर उल्का पिंड तक, हमने स्पेस विज्ञान के क्षेत्र में काफी कुछ जानकारी बहुत समय पहले ही हासिल कर लिया हैं। परंतु एक बात जो यहाँ सबसे अजीब हैं, वो ये हैं कि; तकनीक में इतनी तरक्की करने के बाद भी हम काफी पीछे हैं। कहने का मतलब ये हैं कि, हम अपने सौर-मंडल के ग्रहों के बारे में ही नहीं जानते हैं।
मित्रों! नेपच्यून (Why There is No Space Mission on Neptune) जैसे ग्रहों पर हमने आज तक एक भी स्पेस मिशन को अंजाम नहीं दिया हैं। ऐसे में आप खुद ही समझ सकते हैं कि, हमारे हाथ आज भी कितने बंधे हुए हैं। एक तरफ जहां हम अरबों-खरबों प्रकाश वर्ष दूर चीजों के बारे में जानने का प्रयास कर रहें हैं, वहीं दूसरी और हमसे महज कुछ करड़ों किलोमीटर दूर मौजूद ग्रहों के बारे में हम कुछ अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं।
सोचने भर से ही ये बात कितनी अजीब लग रहीं हैं। परंतु क्या आप इसके पीछे छुपे रहस्यों को जान रहें हैं! शायद नहीं, क्योंकि इसके बारे में कभी इतनी बारीकी से बताया ही नहीं गया हैं। मित्रों! नेपच्यून जैसे ग्रहों के बारे में जानना अपने-आप में ही एक खास बात हैं, क्योंकि इसके लिए अभी तक कोई डेडिकटेड मिशन को अंजाम ही नहीं दिया गया हैं।
ये कारण हैं नेपच्यून पर स्पेस मिशन न हो सकने के! :-
नेपच्यून (Why There is No Space Mission on Neptune) पर स्पेस मिशन्स के न होने कि सबसे पहली वजह हम खुद ही हैं। दरअसल बात ये हैं कि, हमारे लिए नेपच्यून जैसे ग्रह मंगल या बुध जैसे ग्रहों से कम दिलचस्प हैं। क्योंकि नेपच्यून जैसे गैस जायंटस में जीवन के होने की संभावना लगभग न के बराबर ही हैं। इसलिए हम उस जगह पर अपनी दिलचस्पी पहले क्यों दिखाएँ, जहां हमारे लिए कुछ खास हैं नहीं! इसके अलावा और एक वजह “फंडिंग” की भी हैं। मित्रों! इन सुदूर ग्रहों पर स्पेस मिशनों को अंजाम देना कोई सरल बात नहीं हैं।
साथ ही साथ, इन ग्रहों पर स्पेस मिशनों को अंजाम देने की लागत काफी ज्यादा आती हैं। इसलिए सही व जरूरी फंडिंग के बिना यहाँ मिशन कर पाना बहुत ही मुश्किल हैं। पृथ्वी से चाँद तक एक स्पेस क्राफ्ट को भेजने में ही हमारे पसीने छूट जाते हैं और यहाँ नेपच्यून तक स्पेस क्राफ्ट को भेजने की बात तो वर्तमान के लिए कल्पना ही हैं। इसके अलावा हमारे पास आज इतनी भी उन्नत तकनीक नहीं हैं कि, हम आसानी से एक स्पेस क्राफ्ट को नेपच्यून तक भेज दें।
मित्रों! यहाँ एक बात ये भी हैं कि, पृथ्वी से नेपच्यून की दूरी लगभग 30 AU की हैं। इतनी लंबी दूरी के लिए एक स्पेस क्राफ्ट को तैयार करना ही, अपने-आप में एक काफी बड़ी चुनौती हैं। साथ में स्पेस क्राफ्ट के लिए जरूरी मात्रा में ईंधन को रैडि करना भी बहुत ही कठिन काम हैं। क्योंकि पृथ्वी से नेपच्यून तक सिर्फ पहुँचने के लिए ही हमें 10 से भी अधिक सालों का समय लग सकता हैं।
नासा और इस्रो क्यों नेपच्यून पर स्पेस मिशनों को अंजाम नहीं दे रहें हैं! :-
अब लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल ये आ रहा होगा कि, आखिर क्यों नासा और इस्रो जैसे बड़ी स्पेस एजेंसियां नेपच्यून (Why There is No Space Mission on Neptune) पर अपना मिशन नहीं कर रहें हैं? तो, मित्रों! आप लोगों को अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, वर्तमान के समय में हमारे पास संसाधन उतने नहीं हैं; जीतने की नेपच्यून पर जाने के लिए लगेंगे। क्योंकि पहले से ही हम दूसरे ग्रहों के मिशनों में इतना ज्यादा उलझ चुके हैं कि, अब हमारे पास न तो समय हैं और न ही पैसा।
हालांकि! भविष्य में क्या होगा, ये तो अभी से सटीक तौर पर कह पाना मुश्किल हैं। इसके अलावा यहाँ एक रोचक बात ये भी हैं कि, हमारे पास नेपच्यून और यूरेनस जैसे सुदूर ग्रहों के बारे में वोएजर के फ़्लाइ-बाई डैटा हैं। इसलिए यहाँ ये कहना उचित होगा कि, हमारे पास भले ही नेपच्यून के बारे में ज्यादा डैटा न हो; परंतु कुछ डैटा जरूर हैं। जो की शायद आने वाले समय में हमारी मदद भी करेगा।
मित्रों! यहाँ एक बात ये भी हैं कि, किसी भी ग्रह के बारे में अच्छे से जानने के लिए हमें उस ग्रह पर ओर्बिटर भेजने की जरूरत होती हैं। तो, अगर हम किसी भी तरीके से नेपच्यून पर ओर्बिटर भेज देते हैं; तब शायद हमें इन सुदूर ग्रहों के बारे में काफी अच्छी जानकारी मिल सकेगी। हालांकि! ये मिशन हद से ज्यादा महंगी और जटिल होगी। इसलिए इन मिशनों को अभी तक अंजाम नहीं दिया गया हैं।
क्या-क्या हैं चुनौतियाँ! :-
आम तौर पर किसी भी ग्रह के ऊपर दो तरीके से स्पेस मिशनों को अंजाम दिया जा सकता हैं। पहला हैं फ़्लाइ-बाए और दूसरा हैं ओर्बिटर मिशन। मित्रों! सरल तरीके से कहूँ तो, फ़्लाइ-बाए मिशन से हमें ग्रह की उतनी अच्छी जानकारी नहीं मिल पाती हैं; जितने की किसी ओर्बिटर के मिशन से। इसलिए किसी भी नए ग्रह के ऊपर ओर्बिटर मिशन को अंजाम देना हमारे लिए बहुत ही जरूरी हो जाता हैं। ये ही वजह हैं कि, आज के जीतने भी बड़े स्पेस मिशन हैं; उनमें से ज़्यादातर ओर्बिटर मिशन ही होते हैं।
वैसे यहाँ एक बात ये भी हैं कि, ओर्बिटर मिशन में एक स्पेस क्राफ्ट कुछ खास समय के लिए किसी भी ग्रह के ओर्बिट में घूमता रहेगा; इससे वैज्ञानिकों को उस ग्रह के बारे में कई बारीक जानकारियाँ भी मिल जाएंगे। परंतु यहाँ एक रोचक बात ये भी हैं कि, किसी भी ओर्बिटर मिशन को अंजाम देने से पहले हमें ग्रह के बारे में कुछ मूल भूत बातों जानना होगा और इन्हीं मूल भूत बातों को जानने में हमारी मदद फ्लाई-बाए मिशन करते हैं। तो आप एक तरीके से कह सकते हैं कि, फ़्लाइ-बाई और ओर्बिटर दोनों ही मिशन एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
खैर आप लोगों को जानकर खुशी होगी कि, वर्तमान के समय में हमने अपने सौर-मंडल में मौजूद सभी ग्रहों पर फ़्लाइ-बाए मिशनों को सफलता पूर्वक अंजाम दे दिया हैं और इसमें हमारी मदद न्यू होरीज़ोन और वोएजर ने की हैं। तो, एक बात तो तय हैं कि; आने वाले समय में हमारे पास सभी ग्रहों की बेसिक डैटा तो जरूर होगी। आप लोगों को क्या लगता हैं, कमेंट कर के बताइएगा।
नेपच्यून का चाँद “Triton”, आखिर क्यों हैं इतना अजीब? :-
नेपच्यून (Why There is No Space Mission on Neptune) का चाँद ट्राइटन अपने-आप में ही एक रहस्य हैं। कहने का मतलब ये हैं कि, नेपच्यून के पास लगभग 14 चाँद मौजूद हैं और उनमें से ट्राइटन ही सिर्फ एक ऐसी चाँद हैं जो की आकार में काफी ज्यादा बड़ा हैं। इसके अलावा एक अजीब बात ये भी हैं कि, ट्राइटन नेपच्यून के पास नहीं बल्कि काफी दूर मौजूद हैं; जो की किसी भी ग्रह के चाँद के लिए भी काफी ज्यादा अजीब बात हैं।
ट्राइटन का आकार नेपच्यून के बाकी बचे उपग्रहों के आकार को मिलाने के बाद भी 200 गुना ज्यादा बड़ा हैं। तो, यहाँ आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि; ये उप-ग्रह आखिर आकार में कितना ज्यादा विशाल होगा। इसके अलावा आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि, ये नेपच्यून के परिक्रमा के दिशा के विपरीत घूमता हैं। कुछ वैज्ञानिकों ने ये भी नोटिस किया हैं कि, नेपच्यून के चारों तरफ घूमते वक़्त ये नेपच्यून के कक्षा से लगभग 90 डिग्री का कोण बना कर चलता हैं। जो की एक बहुत ही दुर्लभ बात हैं।
वैसे वैज्ञानिकों को ट्राइटन की एक और बात से सबसे ज्यादा हैरानी हो रहीं हैं और वो ये हैं कि, ट्राइटन की कक्षा काफी ज्यादा गोल हैं। जब की ये 67 डिग्री कोण में झुका हुआ हैं और नेपच्यून के चारों तरफ घूमते वक़्त उससे 90 डिग्री का कोण भी बनाता हैं। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार ट्राइटन की कक्षा पूरे सौर-मंडल में सबसे ज्यादा गोलाकार हैं।
“Triton” पर छुपे हो सकते हैं कई राज! :-
इस चाँद की सबसे बड़ी खूबी इसके सतह में छुपा हुआ हैं। कहने का मतलब ये हैं कि, ट्राइटन की सतह काफी ज्यादा लाजवाब हैं। वैसे अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, इसकी सतह एक हिस्से में काफी ज्यादा ऊबड़-खाबड़ हैं तो, दूसरे हिस्से में काफी ज्यादा सपाट। शोधकर्ता बताते हैं कि, ट्राइटन पर क्रेटर्स देखने को नहीं मिलते हैं; जो की एक हैरान कर देने वाली बात भी हैं। मित्रों! एक रोचक बात ये भी हैं कि, ट्राइटन अपने सतह को री-सर्फ़ेस कर सकता हैं। जिसका सीधा सा मतलब ये हैं कि, ये अभी भी काफी गरम हैं।
वैसे ट्राइटन की सबसे बड़ी राज उसके ऑरिजिन को ले कर के हैं। कहने का मतलब ये हैं कि, ट्राइटन असल मेँ पहले प्लूटो का उप-ग्रह था। परंतु कुछ कारणों के चलते जब ये नेपच्यून के गुरुत्वाकर्षण फील्ड के अंदर आ गया, तब इसे न चाहते हुए भी नेपच्यून का चाँद बनना पड़ा। और शायद ये ही कारण हैं कि, नेपच्यून से ट्राइटन की इतनी बनती नहीं। वाकई में इस तरह की घटनाएं हमारे सौर-मंडल में देखने को काफी कम ही मिलते हैं।
खैर रिपोर्ट्स के अनुसार ट्राइटन की सतह आज भी काफी ज्यादा एक्टिव नजर आती हैं। इसलिए वैज्ञानिक मानते हैं कि, इसके सतह के नीचे वर्तमान समय में भी तरल पानी का समंदर बहता होगा। हालांकि! अभी ये सिर्फ कुछ अटकलें ही हैं; परंतु आने वाले समय में इसके ऊपर से भी पर्दा जरूर हटेगा।
Sources :- www.quora.com, www.space.com, www.livescience.com.