“बाल समय रवि भक्ष लिहेव तब तीनहु लोक भयो अंधियारो”
श्री हनुमान जी का जन्म हुआ, जब बारह घन्टे के हुए तो उन्हें बहुत जोर की भूँख लगी। सूर्य देव उदय हो रहे थे। सूर्य की लालिमा को देख कर हनुमान जी बहुत खुश हुए। सूर्य को फल समझकर उसका भक्षण कर लिया।
मंगलमय कपि मंगलकारी मंगल मारूति पूत।
सकल सिद्धि कर कमल तल, विमल बुद्धि प्रभु दूत ।।
बारह घन्टे के हनुमान ने सूर्य को फल क्यों समझा ?
पूर्व कल्प की बात है। भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र “हर” माँ भुवनेश्वरी की तपस्या में लीन थे। तपस्या से खुश होकर माता जी ने श्री हर को बारह कलाओं से पूर्ण बारह आम के फल दिये और बोलीं– इन फलों का भक्षण करने से अदभुत तेज प्राप्त होगा। आप जब चाहें सूर्य बनकर ब्रम्हांड को प्रकाशित कर सकते हैं। अंधेरा आप के आगे नही टिकेगा।
श्री हर उन फलों को लाकर एक जगह रख दिया। और सोंचा संध्या वंदन करनेके बाद इन फलों को खाऊँगा। श्री हर संध्या वंदन करने लगे। इतने में सूर्य देव आये और उन फलों का भक्षण कर लिया। श्री हर की तपस्या का फल सूर्य देव खा गये। श्री हर को क्रोध आ गया और श्री हर ने सूर्य को श्राप दे दिया तुमने चोरी से मेरे फलों को खाया है, लेकिन अगले हनुमान अवतार मे मै सम्पूर्ण श्रृष्टि के सामने तुम्हारा भक्षण करके माता के दिये इस तेज को प्राप्त करूँगा।
इस लिए श्री हर रूपी हनुमान जी ने सूर्य का किया भक्षण ।
जय सियाराम
जय हनुमान
प्रेषक :-
डा.अजय दीक्षित “अजय”
एम.ए.पीएच.डी (संस्कृत) आयुर्वेदाचार्य