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जानिए GPS क्या है?–यह काम कैसे करता है और कितने प्रकार का होता है?

आजकल हर मोबाइल पर आपको GPS (GPS In Hindi)  का आप्शन देखने को मिलता है, अधिकतर स्मार्टफोनो में यह लोकेशन के नाम से भी जाना जाता है। इसका इस्मेमाल हम जानते हैं कि इसे आन रखने से हमें हमारी लोकेशन का सटीक पता चलता रहता है। आईये अब बात करते हैं कि यह जीपीएस होता क्या है, और यह अपना कार्य कैसे करता है?

GPS – ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम एक सैटेलाइट आधारित नेविगेशन सिस्टम है जो लोकेशन और समय जैसी सूचना बताता है। यह सिस्टम यूनाइटेड स्टेस्ट के डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस की ओर से बनाया गया था जो कि 24 और 32 मिडियम अर्थ आॅर्बिट सैटेलाइट के माइक्रोवेट सिग्नल की सटीक जानकारी के काम आता है। GPS लोकेशन और समय के साथ ही किसी भी जगह का पूरे दिन का मौसम भी बताने के काम आता है।

GPS कैसे काम करता है?

GPS रिसीवर के साथ काम करता है जो सैटेलाइट से मिले डाटा की गणना करता है। गणना को ट्राइएंगुलेशन कहते हैं जहां पोजिशन कम से कम एक बार में तीन सैटेलाइट की मदद से पता की जाती है। पोजीशन लोंगीट्यूड और लैटीट्यूड से दर्शाई जाती है। यह 10 से 100 मीटर की रेंज में सही होती है। इसे ही विभिन्न एप्लिकेशन और साॅफ्टवेयर अपने हिसाब से काम में ले लेते हैं। जैसे कि किसी यूजर को एक जगह की डायरेक्शन बताना।

कम से कम तीन सैटेलाइट के साथ एक GPS रिसीवर की 2D(लोंगीट्यूड और लैटीट्यूड) पोजीशन पता की जाती है। 3D(जिसमें ऊंचाई शामिल है) पोजीशन पता करने के लिए कम से कम चार सैटेलाइट का सहारा लेना पड़ता है। एक बार जब इन सभी का पता चल जाता है और GPS रिसीवर सैटेलाइट से सिंक हो जाता है अन्य जानकारियां जैसे गति, दूरी और किसी जगह पर पहुंचने में लगने वाला समय की भी मुमकिन गणना कर ली जाती है।

GPS लाॅकिंग

इससे ही किसी भी चीज की जगह का बिल्कुल सही पता लगाया जाता है। GPS लाॅक ट्रैकर की गति पर निर्भर करता है। जैसे कि यदि कोई गाड़ी चला रहा है तो एक्यूरेसी कम होगी और उसकी सही लोकेशन का पता लगाने में भी समय लगेगा। GPS लाॅकिंग इस बात पर निर्भर करती है कि किस तरह से GPS रिसीवर को शुरु किया गया है। यह तीन तरह से होता है – हाॅट, वार्म और कोल्ड।

हाॅट स्टार्ट – अगर GPS को अपनी अंतिम पोजिशन और सैटेलाइट के साथ ही UTC टाइम पता है तो यह उसी सैटेलाइट की मदद लेता है और उपलब्ध जानकारी के हिसाब से नई पोजिशन का पता लगाता है। यह कार्यप्रणाली इस आपकी पोजिशन पर भी निर्भर करती है। अगर GPS रिसीवर पहले वाली लोकेशन के आसपास ही है तो ट्रैकिंग बहुत जल्दी हो जाती है।

वार्म स्टार्ट – इसमें GPS रिसीवर पहले वाली GPS सैटेलाइट के अलावा पूरानी जानकारी याद रखता है। इस प्रकार, रिसीवर सारा डाटा रिसेट कर देता है और नई पोजिशन पता करने के लिए सैटेलाइट सिग्नल का इस्तेमाल करता है। हालाकि यह सैटेलाइट ढूंढता है लेकिन सैटेलाइट की जानकारी इसे जल्दी ही मिल जाता है। यह हाॅट स्टार्ट से धीमा है लेकिन सबसे धीमा भी नहीं है।

कोल्ड स्टार्ट – इस स्थिति में कोई भी जानकारी नहीं होती है इसलिए डिवाइस सभी तरह की जानकारी जैसे GPS सैटेलाइट, पोजिशन आदि पता करना शुरु करता है। इसलिए इसमें इसे पोजिशन पता करने में बहुत समय लगता है।

GPS (GPS In Hindi) के इस्तेमाल

GPS का इस्तेमाल पहले केवल मिलटरी में ही होता था लेकिन बाद में इसे आम लोगों के इस्तेमाल के लिए भी शुरु किया गया। और तब से ही इसे कई जगहों पर इस्तेमाल किया जाने लगा है।

एस्ट्रोनॉमी, कार्टोग्राफी, ऑटोमेटेड व्हीकल्स, मोबाइल फ़ोन्स, फ्लीट ट्रैकिंग, जियोफेंसिंग, जियो टेगिंग, GPS एयरक्राफ्ट ट्रैकिंग, डिजास्टर रिलीफ, इमरजेंसी सर्विसेज, व्हीकल्स के नेविगेशन, रोबोटिक्स, टेक्टोनिक्स समेत कई जगहों पर GPS का इस्तेमाल होता है।

मोबाइल फोन इंडस्ट्री में GPS (GPS In Hindi)  के प्रकार

A-GPS (असिस्टेड GPS) – इस तरह के GPS का इस्तेमाल GPS ही आधारित पोजिशनिंग सिस्टम के शुरु होने वाले समय को कम करने के लिए किया जाता है। जब सिग्नल कमजोर होता है तो A-GPS लाॅक करने में रिसीवर की सहायता करता है। ऐसा करने के लिए हालांकि मोबाइल फोन में एक नेटवर्क कनेक्शन की भी जरुरत होती है क्योंकि A-GPS असिस्टेंट सर्वर का इस्तेमाल करता है।

S-GPS (साइमलटेनियस GPS)– एक नेटवर्क कैरियर के लिए सैटेलाइट आधारित रिपोर्टिंग को सुधारने के लिए यह तरीका अपनाया जाता है। S-GPS से ही मोबाइल फोन को GPS और वाॅइस डाटा दोनों एक ही समय पर मिलते हैं। इससे ही नेटवर्क प्रोवाइडर लोकेशन आधारित सर्विस दे पाते हैं।

Source – Phoneradar

Team Vigyanam

Vigyanam Team - विज्ञानम् टीम

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2 Comments

  1. माननीय मित्र यदि इमेज ब्राइट आयेगी तो हमारी लिखी हुई हैडिंग धूँधली नजर आयेगी, जो कोई समझ नहीं पायेगा, यदि आपको ब्राइट करना है तो आपको कोडिंग करनी पड़ेगी.. Style.css file main

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