एलन मस्क (Elon Musk) का नाम तो आप सब ने सुना ही होगा | अगर जूनून, कड़ी मेहनत और लीक से हटकर प्रयोग करने, जोखिम उठाने और अंततः सफलता पाने का कोई प्रतिक चिन्ह हो सकता है तो वो है एलन मस्क | एलन मस्क ने विज्ञान के क्षेत्र में जो भी प्रयोग किये वो समय से काफी आगे हैं, उनके प्रयोगों ने दुनियां को अचंभित कर दिया | पेपल (Paypal), स्पेसएक्स (Space-X) और टेस्ला मोटर्स जैसे क्रांतिकारी प्रोजेक्ट के फाउंडर एलन मस्क द्वारा विज्ञान के नए प्रयोगों की लिस्ट में नया नाम है नयूरोलिंक तकनीक (NeuraLink Technology in Hindi), जो मानव जाति के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होने जा रही है | तो चलिए जानते है क्या है ये नयूरोलिंक तकनीक और कैसे ये पुरे मानव जाति के सामर्थ्य को बदल कर रख देने की क्षमता रखती है |
विषय - सूची
न्यूरोलिंक तकनीक (NeuraLink Technology in Hindi) क्या है?
न्यूरोलिंक, एलन मस्क के नेतृत्व वाली एक स्टार्टअप कंपनी है, जिसे वर्ष 2017 में स्थापित किया गया था | इस कंपनी का उद्देश्य ऐसी तकनीक का अविष्कार करने और उसके वाणिज्यिक उपयोग की है, जिससे हम सीधे अपने दिमाग को कंप्यूटर से जोड़ सके |
मनुष्य आम तौर पर डिजिटल सिस्टम के साथ इंटरैक्ट करने के लिए इनपुट अपनी उंगलियों, आवाज या चेहरे के हाव भाव के माध्यम से प्रदान करते हैं जो कंप्यूटर या सिस्टम में जाता है और प्रोसेस होता है | परन्तु इनपुट का ये तरीका काफी धीमा है और इसकी काफी सीमाए हैं | जैसे कोई विकलांग व्यक्ति, दृष्टिहीन या मूक बधिर व्यक्ति के लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल करना उतना सहज नहीं जितना एक आम इन्सान के लिए है |
इसीलिए न्यूरोलिंक कंपनी एक नई तकनीक, जिसे नयूरोलिंक तकनीक कहा जा रहा है, का इस्तेमाल करके एक ऐसे डिवाइस को विकसित कर रही है जो किसी भी डिजिटल सिस्टम और मस्तिष्क के बीच एक इंटरफ़ेस का कार्य करेगा | जिससे सिर्फ सोचने भर से ही वो जानकारी सीधे कंप्यूटर में चली जाएगी जिसे कंप्यूटर द्वारा अलग अलग कार्यो को संपन्न करने के लिए इनपुट के तौर प्रयोग किया जायेगा |
क्या ये एकदम नई तकनीक है ?
ऐसा नहीं है की न्यूरेलिंक यानी दिमाग को सीधे कंप्यूटर से जोड़ने की तकनीक अचानक एकदिन प्रकट हो गई हो, इसके पीछे शैक्षणिक अनुसंधान का एक लंबा इतिहास है |
सबसे पहले 2006 में, रीढ़ की हड्डी की चोट के कारण पक्षाघात के शिकार मैथ्यू नागले ने ऐसी ही एक तकनीक की सहायता से केवल अपने दिमाग का उपयोग करके पिंग पोंग गेम खेला था | सिर्फ अपने दिमाग का इस्तेमाल कर कंप्यूटर से इंटरैक्ट करना सिखने में उन्हें मात्र चार दिन लगे थे | इसके बाद ही वैज्ञानिको ने लकवाग्रस्त लोगों के लिए सीधे दिमाग से संचालित रोबोटिक अंग विकसित करने का प्रयास आरंभ कर दिया था |
मैथ्यू नागल पर जिस डिवाइस/इंटरफ़ेस का उपयोग किया गया था उसे ब्रेनगेट कहा जाता है जिसे शुरू में ब्राउन विश्वविद्यालय में विकसित किया गया था | ब्रेनगेट तकनीक में, 128 इलेक्ट्रोड चैनलों वाली ठोस सुई की एक श्रृंखला होती है जिसे मनुष्य के सर में फिट कर दिया जाता है | ये 128 इलेक्ट्रोड मस्तिष्क में विद्युत संकेतों का पता लगाते हैं रिकॉर्ड करते हैं और इस जानकारी को शरीर के बाहर कंप्यूटर तक पंहुचता है |
परन्तु इस तकनीक में एक समस्या ये है की कम इलेक्ट्रोड होने के कारण मस्तिष्क से बहुत कम सुचना ही प्राप्त हो सकती है, जो जटिल कार्यों को संपन्न करने के लिए पर्याप्त नहीं है | इसकी दूसरी समस्या ये है की दीर्घकालिक इस्तेमाल में इसके ठोस सुइयां दिमाग को नुकसान भी पंहुचा सकती हैं |
न्यूरोलिंक तकनीक (NeuraLink Technology in Hindi) कैसे काम करती है?
न्यूरोलिंक द्वारा विकसित किया जा रहा डिवाइस या इंटरफ़ेस “थ्रेड्स” पर आधारित तकनीक पर काम करता है, जिसे मानव मस्तिष्क के ऊतकों को बिना प्रभावित किये हुए उन ऊतकों के आस पास प्रत्यारोपित किया जायेगा | इस डिवाइस में ऐसे 96 थ्रेड्स हैं जिनमे कुल 3,072 इलेक्ट्रोड शामिल हो सकते हैं | ये थ्रेड पॉलीमर फाइबर से बने है इसलिए काफी लचीले हैं और दिमाग को बिना नुकसान पंहुचाये लम्बे समय तक मस्तिष्क के साथ जुड़े रह सकते हैं | इन थ्रेड की मोटाई मात्र 4 से 6 माइक्रोन है यानी हमारे बाल से भी तीन गुना पतला |
पर इन लचीले थ्रेड्स को मस्तिष्क के कठोर आवरण के भीतर ले जाना भी एक समस्या है, जिसके लिए न्यूरलिंक स्टार्टअप ने एक न्यूरोसर्जिकल रोबोट भी बनाया है जो मानव मस्तिष्क में प्रति मिनट ऐसे छह थ्रेड्स डालने में सक्षम है | ये न्यूरोसर्जरी रोबोट अपने आप में एक तरह का कंप्यूटर और सिलाई मशीन का मिश्रण है | यह रोबोट मस्तिष्क के विशिष्ट भागों को पहचानने और किसी भी रक्त वाहिकाओं को बिना नुकसान पंहुचाये इन थ्रेड्स को मस्तिष्क तक ले जाने में सक्षम होगा |
न्यूरोलिंक तकनीक में ऐसे प्रत्येक थ्रेड में 192 इलेक्ट्रोड का समूह होता है, जो एक छोटे इम्प्लांटेबल डिवाइस के साथ संलग्न होता है जिसमें कस्टम वायरलेस चिप्स होते हैं, जिसका आकार 4×4 मिलीमीटर होता हैं | यानी एक बार थ्रेड को मस्तिष्क के साथ फिट कर देने के बाद इस चिप को सर पर फिक्स किया जा सकता है |
परन्तु इतना कुछ होने के बावजूद ये डिवाइस जितना डाटा मस्तिष्क से रिकॉर्ड कर पायेगी वो किसी भी जटिल कार्य को करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा | इसलिए इस डिवाइस को आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (AI) के साथ जोड़ा जायेगा जो कम सूचनाओ को संवर्धित कर इस लायक बना देगा जिससे जटिल कार्यो को भी आसानी से किया जा सके |
इस तकनीक के पीछे का विज्ञानं क्या है?
हमारे मस्तिष्क के न्यूरॉन्स, सिनेप्स के माध्यम से एक दुसरे के बीच सूचनाओ का आदान प्रदान करते हैं | इन कनेक्शन बिंदुओं पर, न्यूरॉन्स न्यूरोट्रांसमीटर नामक रासायनिक संकेतों का उपयोग करते हुए एक दूसरे के साथ संवाद करते हैं, जो “एक्शन पोटेंशिअल” नामक एक विद्युत स्पाइक के जवाब में जारी किए जाते हैं |
जब एक न्यूरॉन सही प्रकार के न्यूरोट्रांसमीटर इनपुट को पर्याप्त रूप से प्राप्त करता है, तो एक चेन रिएक्शन शुरू हो जाता है जिसमें न्यूरॉन्स सिनाप्सेस(Neuron Synapses) को संदेश पास करते जाते हैं जो एक्शन पोटेंशिअल का कारण बनता है |
ये एक्शन पोटेंशिअल एक विद्युत क्षेत्र का उत्पादन करते हैं जिसके पास में इलेक्ट्रोड रखकर पता लगाया जा सकता है और जिससे एक न्यूरॉन द्वारा उत्पन्न की गई सूचना को रिकॉर्ड किया जा सकता है |
न्यूरोलिंक तकनीक (NeuraLink Technology in Hindi) का उपयोग
फ़िलहाल तो इस तकनीक का उद्देश्य चिकित्सा ही है, जैसे पक्षाघात के शिकार लोगो के लिए ऐसी सुविधा उपलब्ध करना जिससे वो केवल अपने दिमाग की मदद से अपने जरूरी काम कर सके या विकलांग लोगो के लिए और बेहतर रोबोटिक अंग बनाना जो सीधे उनके दिमाग द्वारा संचालित होंगे | इसके अलावा दृष्टि, श्रवण या अन्य संवेदी कमियों को दूर करने में भी इसका उपयोग किया जा सकता है |
पर ये उपयोग अभी सैधांतिक स्तर पर ही है, हालाँकि कुछ सफल प्रयोग चूहे और बन्दर पर किये जा चुके हैं पर मनुष्यों पर इसका प्रयोग वर्ष 2020 से ही प्रारम्भ हो सकेगा | वास्तव में कंपनी यह उम्मीद कर रही है की, स्टैनफोर्ड और अन्य संस्थानों के न्यूरोसर्जन के साथ संभावित सहयोग के माध्यम से, अगले वर्ष के प्रारम्भ में ही मनुष्यों पर इसका प्रयोग कर लिया जाएगा |
यानी भविष्य में, न्यूरालिंक का उपयोग मस्तिष्क की चोटों और कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जा सकता है, जिसमें लकवा से लेकर अल्जाइमर तक सभी शामिल हैं | और इसी तकनीक का इस्तेमाल कर हम, भविष्य में हॉलीवुड फिल्मों में दिखाए जाने वाले, आधे मानव आधे मशीन यानी Cyborg भी बना सकेंगे |
न्यूरोलिंक तकनीक (NeuraLink Technology in Hindi) का भविष्य
एलन मस्क के लिए नयूरोलिंक तकनीक वर्तमान और संभावित भविष्य से कहीं आगे का प्रोजेक्ट है, जिसमे अपार सम्भावनाये हैं | मस्क के शब्दों में, “लंबी अवधि में इस तकनीक का उपयोग एआई (Artificial Intelligence) से हमारे अस्तित्व संबंधी खतरे को दूर करने में किया जायेगा” |
मस्क ने एक कार्यक्रम में ये बताया की “आखिरकार, हम पूर्ण रूप से मस्तिष्क और मशीन का समायोजन कर सकते हैं, जिसका अर्थ है, की हम एआई(Artificial Intelligence) के साथ एक प्रकार का सहअस्तित्व प्राप्त कर सकते हैं,” । मस्क के अनुसार “यह मानव सभ्यता के लिए एक महत्वपूर्ण आयाम होगा क्यूंकि वर्तमान बौद्धिक स्तर पे हम एआई से हमेशा पीछे रह जाएंगे, जबकि एक उच्च बैंडविड्थ मस्तिष्क-मशीन इंटरफ़ेस के साथ, हमारे पास एआई से मुकाबला करने का विकल्प होगा। ”
आसान शब्दों में कहें तो यहाँ मस्क शायद हॉलीवुड फिल्म “द मैट्रिक्स” की तरफ इशारा कर रहे थे, जिसमे एआई (Artificial Intelligence) वाला कंप्यूटर प्रोग्राम पूरी दुनिया पर कब्ज़ा कर लेता है और मनुष्य अपने दिमाग में ऐसा ही कोई डिवाइस कनेक्ट कर मस्तिष्क के स्तर पर उस कंप्यूटर प्रोग्राम से लड़ते हैं और जीतते हैं | यानी नयूरोलिंक तकनीक हमें भविष्य में एआई (AI in Hindi) से लड़ने में सक्षम बनाने वाली तकनीक है।.