
सनातन संस्कृति में हमेशा हमें कहा जाता है कि जब भी घर के अंदर प्रवेश करना हो तो अपने जूते और चप्पल हमेशा बाहर ही उतारों। घर वाले तब बहुत नाराज हो जाते हैं जब हम जूते पहनकर ही घर में सीधा अंदर तक आ जाते हैं।
गलती से कभी कोई मेहमान या बाहर का आदमी जूते या चप्पल पहन कर आ भी जाये, तो सब उसे ऐसे देखते हैं कि बेचारा खुद इतना शर्मिंदा हो जाता है कि खुद ही चप्पल उतार कर आता है और ऐसे देखता है जैसे अपने किये पर माफ़ी मांग रहा हो. पर क्या कभी आपने सोचा है कि घर में चप्पल लाने को अपने यहां मना क्यों किया जाता है? अपने कल्चर की एक खासियत ये है कि चाहे धर्म हो या कोई रीति, हर चीज़ के पीछे एक साइंटिफिक लॉजिक होता है, जिसे हम लोग धर्म से जोड़ देते हैं।

घर में चप्पल या जूते न लाने के पीछे भी एक साइंटिफिक लॉजिक है, जिसे यूनिवर्सिटी ऑफ़ एरिज़ोना की एक स्टडी ने हमारे सामने रखा है।
इस स्टडी के मुताबिक, हमारे जूतों और चप्पलों में 421,000 बैक्टीरिया होते हैं, जिनमें से 90% हमारे खाने और पानी के साथ मिल जाते हैं. इस स्टडी में एक और बात सामने आई है कि हमारे जूतों-चप्पलों में 7 अलग-अलग तरह के 27% बैक्टीरिया होते हैं, जो हमारे पाचन तंत्र से ले कर श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ एरिज़ोना के माइक्रो बायोलॉजिस्ट Charles Gerba इस बारे में कहते हैं कि “जूतों और चप्पलों में आमतौर पर 96% तक बैक्टीरिया होते हैं, जो हमारे सम्पर्क में आ कर स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं. घर के बाहर रखने पर हमारा फ्लोर और प्राइवेट रूम इनसे प्रभावित होने से बच जाता है।”
इस रिसर्च से यह सामने आया है कि हम जिन पब्लिक टॉयलेट्स का इस्तेमाल करते हैं, उसमें 2 मिलियन बैक्टीरिया प्रति स्क्वायर इंच के हिसाब से पाए जाते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ एरिज़ोना की एक अन्य माइक्रो बायोलॉजिस्ट Kelly Reynolds का कहना है कि ‘आप सड़क पर पड़े कुत्ते की गंध और अन्य गन्दी चीज़ों से खुद को साफ समझते हैं, पर बारिश और पानी के सम्पर्क में आने पर उनके बैक्टीरिया आपके जूतों तक पहुंच जाते हैं, जिनसे बचने का एकमात्र तरीका यह है कि आप उन्हें साफ़ रखे और अपने सम्पर्क से दूर रखें।’