अंतरिक्ष के बारे में बातें करना मुझे तो व्यक्तिगत रूप से बहुत ही ज्यादा पसंद हैं, इसलिए मेरा हमेशा से ही ये प्रयास रहता है कि, कैसे ज्यादा से ज्यादा अंतरिक्ष से जुड़ी विषयों के बारे में आप लोगों को बता पाऊं। यूं तो शायद ही कभी इंसान ब्रह्मांड के छोर तक पहुँच पाये, क्योंकि हर क्षण ये बहुत ही तेजी से फैलता ही जा रहा हे जिसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते हैं। खैर आज का विषय मैंने इसी ब्रह्मांड के फैलाव यानी रेड शिफ्ट और ब्लू शिफ्ट (red shift and blue shift in hindi) के ऊपर ही रखा है।
हम लोग आज के इस लेख में रेड शिफ्ट और ब्लू शिफ्ट (red shift and blue shift in hindi) की परिभाषा तथा यह कैसे काम करते हैं इसके बारे में जानेंगे। इसके अतिरिक्त हम लोग इसके हर एक पहलू को ब्रह्मांड के फैलाव के साथ भी जोड़ कर देखेंगे, ताकि हम इससे जान पाएँ की आखिर कैसे यह ब्रह्मांड के फैलाव को हमें समझाने में मदद करता है। मित्रों! यह लेख बहुत ही ज्यादा ज्ञानवर्धक होने वाला हैं, इसलिए आप लोगों से अनुरोध हैं की लेख के किसी भी भाग को बिना पढ़ें न जाएं।
तो, चलिये अब लेख को शुरू करते हैं और रेड शिफ्ट और ब्लू शिफ्ट (red shift and blue shift in hindi) के बारे में जानते हैं।
विषय - सूची
रेड शिफ्ट और ब्लू शिफ्ट क्या हैं? – What Is Red Shift And Blue Shift In Hindi? :-
मैंने आगे लेख में पहले रेड शिफ्ट के बारे में आप लोगों को बताया हैं और बाद में ब्लू शिफ्ट के बारे में, जिसके कारण आप लोगों को इनके बारे में बहुत ही ज्यादा आसानी होगा।
रेड शिफ्ट की परिभाषा – Definition Of Red Shift In Hindi :-
“स्पेक्ट्रल लाइंस (Spectral Lines) की लंबे तरंग दैर्ध्य (Longer Wavelengths) की और विस्थापन के प्रक्रिया को रेड शिफ्ट कहते हैं”। मूल रूप इस प्रक्रिया में विस्थापित तरंगों का रंग स्पेक्ट्रम (Spectrum) में लाल रंग का होता हैं, इसलिए इसे “रेड शिफ्ट” कहा जाता हैं। मुख्य रूप से रेड शिफ्ट पृथ्वी से बहुत दूर मौजूद आकाशगंगाओं और खगोलीय पिंडों में दिखाई देता हैं। ऐसे में इस प्रक्रिया के जरिये इनकी दूरी का अंदाजा हमें पर पृथ्वी पर बैठे-बैठे ही मिल जाता हैं। वैसे बता दूँ की, यह प्रक्रिया डोप्लर इफैक्ट (Doppler Effect) पर आधारित हैं। डोप्लर इफैक्ट के बारे में आप लोगों ने अपने स्कूली किताबों में अवश्य ही पढ़ा होगा, जिसमें मुख्य रूप से संवेग और दूरी काम करती हैं (दो वस्तुओं के मौजूद)।
रेड शिफ्ट कैसे काम करता हैं? – How Red Shift Works In Hindi? :-
मित्रों! रेड शिफ्ट (red shift and blue shift in hindi) को आसानी से समझने के लिए आपको मेँ यहां पर एक बहुत ही सरल तरीका बता देता हूँ। जब भी कोई खगोलीय चीज़ पृथ्वी से दूर चली जाती हैं तो वह चीज़ “Red shift” अंतर्गत आती हैं। इस समय उस चीज़ से आने वाली तरंगें स्पेक्ट्रम के अनुसार लाल रंग में परिवर्तित हो जाता हैं, क्योंकि लाल रंग का वेवलेंथ सबसे ज्यादा होता हैं।
रेड शिफ्ट को समझने के लिए हम लोगों को समय में थोड़ा पीछे यानी 19 वीं शताब्दी में जाना पड़ेगा। “Christian Andreas Doppler” सबसे पहले रेड शिफ्ट के बारे में लोगों को बताया था। हालांकि इसके बारे में भूतपूर्व नासा के वैज्ञानिक Edwin Hubble ने बेहतर जानकारी दी थी (बाद में साल 1929 में)। उनके हिसाब से हम लोग आज जीतने भी आकाशगंगाओं को अंतरिक्ष में देख रहें हैं, वह सब समय के बीतने के साथ ही साथ एक दूसरे से काफी दूर हो जा रहें हैं।
इस प्रक्रिया को नासा ने “Red shift Galaxy Spectrum” का नाम दिया हैं। यहां पर बता दूँ की, पृथ्वी से बहुत ही ज्यादा दूर मौजूद आकाशगंगाओं पर रेड शिफ्ट का असर बहुत ही ज्यादा होता हैं। इसलिए यह दूरवर्ती आकाशगंगाएं हमें बहुत ही ज्यादा धुंधली व लाल दिखाई पड़ती हैं।
वैसे रेड शिफ्ट को हम लोग “इलेक्ट्रोमग्नेटिक स्पेक्ट्रम” (Electromagnetic Spectrum) के हिसाब से भी पहचान सकते हैं। इस स्पेक्ट्रम में मौजूद किसी भी तरंग के आवृत्ति (Frequency) में आने वाली गिरावट सीधे-सीधे रेड शिफ्ट को ही दर्शाता हैं। उदाहरण के तौर पर आप गामा किरणों की रेडियो वेव में परिवर्तन को ही देख सकते हैं, जो की रेड शिफ्ट को सूचित करता हैं। वैसे रेड शिफ्ट की तीव्रता वस्तु के तरंगों को (Emission Spectrum के तरंग) सोखने की काबिलियत पर निर्भर करता हैं।
ब्लू शिफ्ट की परिभाषा – Definition Of Blue Shift In Hindi :-
“दूरवर्ती खगोलीय चीजों से आने वाली स्पेक्ट्रम (Spectrum) के तरंगों की कम दैर्ध्य (Shorter Wavelength) की और विस्थापन के प्रक्रिया को ही ब्लू शिफ्ट कहते हैं”। ब्लू शिफ्ट (red shift and blue shift in hindi) की प्रक्रिया रेड शिफ्ट के प्रक्रिया के विपरीत हैं और इसके तहत स्पेक्ट्रम में तरंग नीले रंग में परिवर्तित हो जाती हैं।
ब्लू शिफ्ट भी “Doppler Effect” के आधार पर काम करता हैं। इसलिए यहां पर भी खगोलीय वस्तु की पृथ्वी से दूरी और संवेग एक बहुत ही बड़ा भूमिका निभाता हैं। ब्लू शिफ्ट के जरिये न बल्कि वैज्ञानिक सिर्फ एक खगोलीय पिंड के दूरी का अंदाजा लगा सकते हैं बल्कि पूरे आकाशगंगा के दूरी का भी अनुमान लगा सकते हैं। मित्रों! ध्यान में रखने वाली बात यहां यह हैं की, रेड शिफ्ट के विपरीत ब्लू शिफ्ट में मौजूद खगोलीय पिंडों तथा चीजों के बारे में जानना थोड़ा आसान हैं। ब्लू शिफ्ट वाली वस्तुओं को हम थोड़ा अच्छे से देख सकते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों को ब्लू शिफ्ट में मौजूद वस्तुओं के बारे में थोड़ा ज्यादा जानकारी जुटाने में आसानी होती हैं।
ब्लू शिफ्ट कैसे काम करता हैं? – How Blue Shift Works In Hindi? :-
रेड शिफ्ट की तरह (red shift and blue shift in hindi) ही ब्लू शिफ्ट के बारे में जानने के लिए कोई रॉकेट साइन्स की जरूरत नहीं हैं दोस्तों। यहां आपको बस इतना याद रखना होगा की, ब्रह्मांड में मौजूद जितनी भी खगोलीय चीजें हमारे और यानी पृथ्वी की और बढ़ रहीं हैं वह सब ब्लू शिफ्ट के अंतर्गत आती हैं।
जब भी किसी दूरवर्ती आकाशगंगा से विकीरित तरंग हमारे धरती तक पहुँचती हैं, तब उस तरंगों में मौजूद “फोटोन” के कणों में Doppler Effect काम करता हैं। इसके तहत एमिसन स्पेक्ट्रम में फोटोन के कण छोटे वेवलेंथ की और आकर्षित हो कर चले जाते हैं। जिसे हम विज्ञान की भाषा में ब्लू शिफ्ट कहते हैं। वैसे बता दूँ की, एमिसन स्पेक्ट्रम में नीले रंग का वेवलेंथ छोटा होता हैं तो इस शिफ्ट का रंग नीला दिखाई पड़ता हैं। मित्रों! ब्रह्मांड की गति भी ब्लू शिफ्ट के लिए जिम्मेदार हैं, बिना इसके ब्लू शिफ्ट के लिए जरूरी Doppler Effect नहीं हो सकता हैं।
वैसे गौरतलब बात यह भी हैं की, ब्लू शिफ्ट (red shift and blue shift in hindi) में तरंगों में मौजूद फोटोन के कण अपने असल स्थान से काफी निकट दिखाई देते हैं। इसके वजह से इनका वेवलेंथ काफी ज्यादा छोटा हो जाता हैं जो की बाद में ब्लू शिफ्ट के होने का मूल कारण बनता हैं। मित्रों! हम इन शिफ्ट्स को खुले आँखों से नहीं देख सकते हैं, इनका मूल आधार खगोलीय वस्तुओं का प्रकाश के साथ होने वाले अलग-अलग प्रक्रियाओं के ऊपर निर्भर करता हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
वर्तमान के समय में वैज्ञानिक ब्रह्मांड में होने वाली छोटी सी छोटी बदलाव के आधार पर ब्लू शिफ्ट का अंदाजा लगा ले रहें है। वैसे इन शिफ्ट्स को समझने व खोजने के लिए वैज्ञानिक “Spectrometer” का इस्तेमाल करते हैं। यह उपकरण स्पेक्ट्रम के तरंगों को तोड़ कर बारीकी से होने वाली बदलाव दिखाने में सक्षम हैं। इस उपकरण के अलावा वैज्ञानिक “Spectrograph” का भी इस्तेमाल करते हैं। इससे भी वह लोग तरंगों की आवृत्ति के आधार पर शिफ्ट्स का अंदाजा लगा सकते हैं। आपका ब्लू शिफ्ट और रेड शिफ्ट के बारे में क्या राय हैं जरूर ही कमेंट करके बताइएगा।
Sources :- www.thoughtco.com, www.space.com.