सबसे पहले तो रथ यात्रा के इस पावन अवसर पर आप सभी लोगों को ढेर सारी बधाइयाँ, प्रभु जगन्नाथ आप लोगों की हर एक इच्छा पूर्ण करें। वैसे आज के इस खास दिन में चलिये कुछ विशेष और अनोखी बातों के बारे में जानते हैं। आज हम जानेंगे पेड़-पौधे और जानवरों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली भाषाओं (do plant and animals talk) के बारे में। मैंने इससे पहले भी पशुओं और पेड़-पौधों से जुड़े कई रोचक तथ्यों के बारे में आप लोगों को बताया है, तो अगर इन सभी चीजों के बारे में पढ़ना चाहते हैं तो आप मेरे पिछले लेख को पढ़ सकते हैं।
वैसे मित्रों! आज के इस लेख में हम पेड़-पौधे और जानवर (do plant and animals talk) क्या बात करते हैं? जब वो बात करते हैं तो कैसे करते हैं और कौन सी भाषा का प्रयोग करते हैं, तथा क्या इंसान इनकी भाषाओं के बारे में समझ पाते हैं? इन सभी चीजों के बारे में हम प्रकाश डालेंगे। तो, एक विरल विषय पर आधारित इस अद्भुत लेख में मेँ आप लोगों का हार्दिक स्वागत करते हुए इससे जुड़े रहने का आग्रह करता हूँ।
मेरा पूर्ण विश्वास हैं की इस लेख में आप लोगों को कई अनजान बातों को जानने का मौका मिलेगा जिसके बारे में शायद कोई बात ही नहीं करता हैं। मित्रों! आप लोगों की सुविधा के लिए बता दूँ की, मैंने आगे इस लेख दो भागों में बांटा हैं जिससे आपको पेड़-पौधे तथा जानवरों की भाषा शैली के बारे में अलग-अलग और बेहतर तरीके से जानकारी मिल पाए।
विषय - सूची
क्या सच में पेड़-पौधे और जानवर एक दूसरे से बात करते हैं? – Do Plant And Animals Talk?
मित्रों! जैसा की मैंने ऊपर ही बताया हैं, सबसे पहले हम लोग पेड़-पौधे की भाषा (do plant and animals talk) के बारे में जानेंगे और बाद में जानवरों की बारे में। तो, चलिये अब लेख को आगे बढ़ाते हैं।
पेड़-पौधे करते हैं एक दूसरे से बात! :-
शीर्षक पढ़ कर ज़्यादातर लोगों को झटका लगने वाला हैं, क्योंकि हम बचपन से देखते व सुनते आए हैं की पेड़-पौधे बात ही नहीं कर सकते हैं। परंतु मित्रों! ये बात पूर्ण तरीके से सत्य नहीं हैं। विज्ञान हमेशा बदलता रहता हैं और इसके सिद्धांत भी। कई सारे शोधों से मिली तथ्य को इकट्ठा करके इस बात को समझा गया की, पेड़-पौधे जो होते हैं दोस्तों वो अपने जड़ों (Root) के जरिये एक-दूसरे से बात करते हैं। जी हाँ! इस बात को वैज्ञानिकों ने कई सारे प्रयोगों के बाद ढूंढ कर निकाला हैं।
कुछ वैज्ञानिक ये भी कहते हैं, न बल्कि पेड़-पौधे एक दूसरे से बात करते हैं परंतु वो इंसान तथा उनके आसपास मौजूद हर किसी चीज (जो ध्वनि उत्पन्न करता हो) को सुन सकते हैं। इसलिए पेड़-पौधों के चारों तरफ मौजूद परिवेश उनके विकास पर सीधा-सीधा प्रभाव डालता हैं। जिस परिवेश में पेड़-पौधों का घनत्व ज्यादा होता हैं तो, वो लोग एक तरह के रासायनिक पदार्थ का क्षरण करते हैं जिससे वहाँ मौजूद हर एक पौधा एक-समान भांति बढ़ पाए। इसके साथ ही साथ पौधे कई प्रकार के सिग्नल को भी बातचीत करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
अब इंसान भी सुन सकते हैं पेड़-पौधों की बातों को! :-
पेड़-पौधों की बातों को (do plant and animals talk) सुनना कितना गज़ब का अनुभव होगा न! सोच कर ही उत्साह से मेरे रोंगटे खड़े हो जा रहें हैं। मित्रों! अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसे डिवाइस को ढूंढ लिया हैं जिसके जरिये हम पेड़-पौधों की बातों को सुन सकते हैं। जी हाँ! इस डिवाइस के जरिये हम पेड़-पौधों के भाषा के शैली तथा ये किस तरीके से सिग्नल को प्रेरित करते हैं इन सभी चीजों के बारे में जान पाएंगे।
माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) के द्वारा बनाए गए इस बेहद ही खास डिवाइस का नाम हैं “प्रोजेक्ट फ्लोरेन्स” (Project Florence)। इसको खास तौर पर पेड़-पौधों की बातें करने की ढंग को समझ कर उनसे बात चित करने के लिए बनाया गया हैं। आप इस डिवाइस के जरिये पेड़-पौधों से सीधे तरीके से बात कर सकते हैं।
वैसे और भी बता दूँ की, जब भी कोई संदेश आप इस डिवाइस पर टाइप करते हैं तो वो लाइट स्पेक्ट्रम के आधार पर प्रकाश के कई तरंगों में बंट कर एक निर्धारित तीव्रता के अनुपात में पौधे के पास पहुंचता हैं। जिससे पौधों को पता चलता हैं की, आप उससे कुछ कहना चाहते हैं। इसके अलावा आप इलेक्ट्रो-केमिकल (Electro-chemical Signal) सिग्नल के आधार पर भी पौधों को अपना संदेश दे सकते हैं। खैर ध्यान रहे की ये डिवाइस अभी धीरे-धीरे विकसित हो रही हैं, इसलिए इसकी कार्य-दक्षता के बारे में अभी से ज्यादा कुछ कहना सही नहीं होगा।
बहुत ही सूक्ष्म तरीके से वैज्ञानिक पौधों की परिवेश के साथ मौजूद रिश्ते के बारे में समझने का प्रयास कर रहें हैं। जिससे वो लोग पौधों की बात करने की ढंग को ज्यादा से ज्यादा विश्लेषण कर पाएं। खैर अब तक के लिए इस डिवाइस के जरिये पौधा हम लोगों से पानी और प्रकाश का मांग कर सकता हैं।
क्या जानवर भी एक दूसरे से बात करते हैं, क्या हैं इसका रहस्य! :-
वैज्ञानिक मानते हैं की, पेड़-पौधों की तरह जानवर भी (do plant and animals talk) एक दूसरे से बात कर सकते हैं, परंतु जिस भाषा में वो लोग बात करते हैं उस भाषा को समझने के लिए शायद हमारे अंधार उस तरह के कोशिका ही मौजूद नहीं हैं। हालांकि, दूसरे जीव विज्ञानी ये भी कहते हैं की, जानवर आमतौर पर अपने शरीर के अलग-अलग मुद्रा के जरिये एक दूसरे से बातें करते हैं।
मित्रों! हर कोई जानता हैं की, जानवर अपने मुंह से आवाज निकाल सकते हैं। परंतु आखिर क्यों वो लोग हमारी तरह बात नहीं कर सकते हैं? इसके पीछे एक सीधा सा जवाब जुड़ा हुआ हैं और वो हैं जानवरों की स्वर-तंत्र उतना लचीला नहीं हैं की वो इंसानों की तरह बात कर पाएं।
जब भी हम बात करते हैं तो, हमारे गले और मुंह में मौजूद कई सारे मांसपेशी इसके लिए काम करते हैं। हमारे श्वसन तंत्र में मौजूद ज़्यादातर अंग हमारे बातों को स्वर में बदल कर भाषा में परिवर्तित करता हैं। इसलिए बोलने के समय बिना हवा के मदद से हम शब्दों का उच्चारण नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा हमारे स्वर पेटिका में “Vocal Cords” जिसे हम हवा के दवाब के जरिये हिला कर अपने मन मुताबिक शब्दों के तीव्रता में बदलाव ला सकते हैं। परंतु जानवर ऐसा नहीं कर सकते हैं, वो चाह कर भी अपने वोकल कॉर्ड में एक नियमित तथा स्थिर कंपन पैदा नहीं कर सकते हैं, जिसकी वजह से वो ध्वनि तो निकाल सकते हैं परंतु बोल नहीं सकते हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
जानवरों (do plant and animal talk) का जो “Vocal Tract” होता हैं; जिसके अंदर उनका होंठ, जीभ, होंठ और जबड़ा भी शामिल हैं वो सब इंसानों की वोकल ट्राक्ट की तरह जटिल शब्द उच्चारण नहीं कर सकते हैं। अगर आप गौर से देखेंगे तो आपको पता चलेगा की, जानवर अपने जबड़े को इंसानों की भांति ज्यादा खुला या बंद आसानी के साथ नहीं कर सकते हैं। जिससे उन्हें शब्द उच्चारण करने में काफी दिक्कत आता हैं।
वैसे इस बात को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता हैं की, एक दूसरे से बात करने के लिए न पौधों को और न ही जानवरों को कोई भाषा की जरूरत हैं। वो लोग अपने निराले तरीके से एक-दूसरे से बात कर सकते हैं, जिसको की हम इन इंसानों ने अभी तक नहीं समझा हैं। मित्रों! जरा सोच कर तो देखिये, अगर इंसान और पौधे तथा जानवर एक-दूसरे से बात कर पाते तो कितना अच्छा होता। पूरे जीव-मंडल में आज जो उथल पुथल मची हुई हैं, वो कब का चला जाता और सारे जीव पृथ्वी पर मिल जुल कर रह पाते।
Sources :- www.scienceabc.com, www.curbed.com, www.theguardian.com.