कहते हैं इंसान का दिमाग (Native Language May Effect The Brain) एक पहेली जैसा है। माने इसको आप जितनी भी समझने की कोशिश क्यों न करो, आपको ये हर बार किसी उलझन में जरूर डाल ही देता है। इसलिए, कई बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने भी इंसानी दिमाग को समझने में अपनी पूरी जिंदगी लगा डाली, पर इसे लेकर आज भी उलझे रहते हैं। ऐसे में आज के इस युग में जहां हर कुछ डिजिटल होता जा रहा है, वहाँ इंसानी दिमाग के विकसित होने की प्रक्रिया काफी धीमी होने लगी है और इसके पीछे कई तरह के कारण भी मौजूद हैं। हालांकि! इस बात के बारे में हर कोई बात नहीं करता है।
आर्टीफ़िशियल इंटेलिजेंस के आने के बाद इंसान अब सब काम उसी से ही करवाने लगा है। ऐसे में अब वैज्ञानिक इस उधेड़-बुन में हैं की, आखिर किस वजह से इंसानी दिमाग (Native Language May Effect The Brain) धीरे-धीरे अपनी पुरानी शक्ति गवाने लगा है। खैर ये विषय एक अलग ही मुद्दा है, परंतु हाल ही में छपे एक रिपोर्ट में पाया गया है कि, आपकी मातृ-भाषा भी आपके दिमाग के ऊपर काफी ज्यादा गहरा प्रभाव डालती है। इसलिए तो, मैंने आज के हमारे इस लेख का विषय इसी मातृ-भाषा और इंसानी दिमाग के बारे में रखा है।
तो, मित्रों! मेरे साथ आज इस लेख में अंत तक बने रहिए और इस विषय को बहुत ही अच्छे तरीके से समझने का प्रयास जरूर करें।
भाषा से पड़ सकता है दिमाग के ऊपर गहरा प्रभाव! – Native Language May Effect The Brain! :-
बचपन से ही हम एक बात सुनते आ रहें है की, आप के आसपास का माहौल ही आपके दिमाग (Native Language May Effect The Brain) के ऊपर सबसे अधिक प्रभाव डालता है। आप के बचपन में आपके चारों ओर हो रही घटनाओं से ही आपका मस्तिष्क विकसित होने लगता है, इसलिए किसी भी बच्चे के लिए एक स्वस्थ परिवेश में रहना अनिवार्य है। मित्रों! वैज्ञानिकों ने भी इस बात को माना है कि, मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए आपको एक स्वस्थ परिवेश में रहने की जरूरत होती है। परंतु क्या आप जानते हैं, आपके द्वारा बोली गई भाषा भी आपके दिमाग के अंदर काफी कुछ असर डालती है।
हम अकसर जिस भाषा का ज्यादा प्रयोग करते हैं, हमारा दिमाग भी उसी भाषा के अनुसार अपने-आप को बदलने लगता है। कहने का सीधा सा मतलब ये है कि, आपकी मातृ भाषा जिस तरह की होगी, ठीक उसी हिसाब से ही आपका व्यक्तित्व बनेगा। खैर यहाँ पर एक रोचक बात ये भी है कि, इंसान का दिमाग किसी भी बोली गई भाषा को प्रोसेस करने के लिए दिमाग के कई हिस्सों की मदद एक साथ लेता है। इससे उस इंसान का बोलने का ढंग बाकी इन्सानों से अलग होने के साथ ही साथ, उसका जीवन जीने का ढंग भी बदल जाता है।
इन्सानों के अंदर एक खास बात ये भी है कि, उनका दिमाग एक चीज़ को प्रोसेस करने के लिए दिमाग के अलग-अलग हिस्सों को एक साथ जोड़ कर देखता हैं। इससे वो चीज़ बड़े ही आसानी से सुलझ जाती हैं। परंतु इस प्रोसेस को अंजाम देने के लिए व्यक्ति की मातृ-भाषा एक बहुत ही बड़ी किरदार अदा करती है।
एक चौंका देने वाला प्रयोग! :-
इंसानी दिमाग (Native Language May Effect The Brain) के ऊपर भाषा किस तरीके से प्रभाव डालती है, इसको जानने के लिए वैज्ञानिकों ने एक खास तरह का प्रयोग किया। मित्रों! मैं आप लोगों को बता दूँ कि, इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने अरबी और जर्मन भाषा को चुना था। वैज्ञानिकों के हिसाब से दोनों भाषा बोलने वाले लोगों का दिमाग एक-दूसरे से काफी ज्यादा अलग था और दिमाग के अंदर मौजूद इस बदलाव का मूल कारण भौगोलिक न हो कर भाषा में भिन्नता था।
इसके अलावा एक गज़ब की बात ये भी है कि, हमारे दिमाग के अंदर भाषा गत तंत्रिका तंत्र अन्य तंत्रिका तंत्रों से काफी ज्यादा उन्नत और सक्षम रहता है। बेहरहाल सक्षम होने के बाद भी ये बचपन में अपने मूल अवस्था में नहीं होता है। जब हम बोलना सीखते हैं, तब धीरे-धीरे इसी प्रक्रिया में हमारे दिमाग के अलग-अलग हिस्से एक दूसरे से जुडने लगते हैं। मित्रों! आप लोगों को बता दूँ कि, इसी प्रक्रिया से हमारा दिमाग वयस्क होते-होते इतना विकसित हो पाता है।
मित्रों! किसी भी भाषा को दिमाग के अंदर प्रोसेस होने के लिए, पहले हमें उस भाषा में मौजूद वर्णों और शब्दों को समझना होता है। उसके बाद उन शब्दों को कैसे बोला जाए, उसके बारे में सीखना पड़ता है और आखिर में उस भाषा के वाक्यों को सहजता के साथ बोलने कि कोशिश करनी पड़ती हैं। इसके अलावा सामने वाले क्या बोल रहा है, उसको भी समझना पड़ता है।
भाषा में बदलाव कर सकता है दिमाग को प्रभावित :-
वैज्ञानिकों के हिसाब से हर एक भाषा अलग होती है और इसका हर एक दिमाग (Native Language May Effect The Brain) पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। कुछ भाषाएँ दूसरे भाषाओं से थोड़ा ज्यादा जटिल होते हैं और इनको बोलने के लिए हमारे दिमाग को थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। कई शोध में ये पाता चला है कि, अलग-अलग भाषाएँ दिमाग के अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग तरीके से एक्टिव करवाती हैं। हालांकि! मैं आप लोगों को बता दूँ कि, ये हिस्से मूलतः दिमाग के “Left Hemisphere” में मौजूद होते हैं।
मित्रों! यहाँ एक और हैरान कर देने वाली बात ये है कि, किसी भी भाषा को ठीक तरीके से प्रोसेस होने के लिए दोनों ही “Left and Right Hemisphere” की जरूरत पड़ती है। हालांकि! कुछ वैज्ञानिकों का अभी भी ये मानना है कि, दुनिया भर में मौजूद हर एक इंसान का दिमाग बनावट में एक समान ही होता है। परंतु मित्रों, आप खुद ही सोचिए अगर ये सच होता तो, हर एक व्यक्ति आज एक महान वैज्ञानिक होता। इसलिए हमारे लिए इंसानी दिमाग के बनावट के ऊपर कोई भी टिप्पणी करना अभी सही नहीं होगा।
क्योंकि आज भी हम, इस दिमाग को समझने कि कोशिश ही कर रहें हैं। खैर कुछ वैज्ञानिक एक ही व्यक्ति के अंदर दो अलग-अलग भाषाएँ किस तरीके से उस व्यक्ति के दिमाग को प्रभावित करती हैं, उसके बारे में भी पड़ताल कर रहें हैं। ऐसे में हमारे लिए इन सभी विषयों के बारे में जानना काफी ज्यादा जरूरी हो जाता है।
निष्कर्ष – Conclusion :-
खैर वैज्ञानिकों ने जब सिर्फ जर्मन बोलने वाले और सिर्फ अरबी बोलने वाले लोगों के दिमाग (Native Language May Effect The Brain) का एमआरआई करा, तब दिमाग के अंदर मौजूद “Axon” कोशिकाओं में उन्हें कई सारे बदलाव नजर आएँ। जैसे की इन कोशिकाओं में मौजूद पानी के बहाव की दिशा का अलग-अलग होना! इसके अलावा सिर्फ जर्मन बोलने वाले लोगों का बायाँ हिस्सा सिर्फ अरबी बोलने वाले लोगों के दिमाग के बाएँ हिस्से से ज्यादा जटिल था।
वैज्ञानिकों का मानना हैं कि, चूंकि जर्मन भाषा एक काफी जटिल भाषाओं में से एक है, इसलिए शायद जर्मन बोलने वाले लोगों के दिमाग की बनावट थोड़ा जटिल है। बेहरहाल अरबी भाषा भी एक काफी जटिल भाषा है, इसलिए अरबी बोलने वाले लोगों के दिमाग के दोनों ही बाएँ और दायाँ हिस्सा काफी ज्यादा विकसित होने के सबूत वैज्ञानिकों को मिले है। इसके अलावा कुछ वैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि, एक व्यक्ति का बर्ताव भी, उसके मातृ भाषा के ऊपर ही निर्भर करता है।
मूलतः हम ये कह सकते हैं कि, व्यक्ति का बचपन जिस भाषा को बोलने में बीता है; उस भाषा का प्रभाव उसके ऊपर पूरे जिंदगी भर रहता है। इसके अलावा कुछ अलग प्रयगों में ये भी पाया गया है कि, इंसान अपनी संस्कृति/ कल्चर में किस तरीके से अपना हाव-भाव प्रदर्शित करता है, इसके ऊपर भी उसका दिमाग निर्भर करता है। ऐसे में इस विषय को हमें कई अलग-अलग एंगल से देखना पड़ेगा, जिससे हमें और भी बेहतर जानकारी मिल सकेगी।
Source – www.livescience.com