वर्तमान आधुनिक युग में हमारी पृथ्वी आज कई तरह के समस्याओं से जूझ रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग और कोरोना जैसी महामारियों के कहर झेलती पृथ्वी के ऊपर अब एक और कठिनाई आन पड़ी है। जी हाँ मित्रों! पृथ्वी के ऊपर ये जो नई कठिनाई आन पड़ी है, ये इतनी खतरनाक है की, इसके बारे में सोच कर भी आत्मा तक काँप उठती हैं। क्योंकि ये हम लोगों से यानी सिर्फ और सिर्फ इन्सानों से ही जुड़ा हुआ है। दोस्तों! वैसे इस मुसीबत का नाम हैं जनसंख्या में बेहिसाब बुद्धि, जिससे आज पृथ्वी पर आबादी (how many people can earth support) काफी बढ़ गई है।
आबादी (how many people can earth support) के बढ्ने से कई अलग-अलग तरह के मुसीबतें भी बढ़ रही हैं। जंगलों की कटाई, वातावरण दूषित होना और ओज़ोन लेयर (Ozone Layer) को क्षति पहुंचने जैसे कई तरह के दिक्कत बढ़ते ही जा रहें हैं। मित्रों! हम मानवों ने पृथ्वी के साथ इतना खिलवाड़ कर दिया है कि, पृथ्वी अब हम पर ही अनेक प्राकृतिक आपदाओं के रूप पर कहर बरपा रहे हैं। खैर आज पृथ्वी पर लगभग 775 करोड़ लोग रह रहें हैं और हर एक बीतते सेकंड के साथ ये आबादी और 4 अंक बढ़ता ही जा रही है।
तो, अब ये सवाल खड़ा हो चुका है कि, आखिर इस पृथ्वी पर सर्वाधिक कितने लोग रह सकते हैं और क्या हम इस पृथ्वी पर रहने के लायक भी हैं या नहीं?
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पृथ्वी पर सर्वाधिक आखिर कितने लोग रह सकते हैं? – How Many People Can Earth Support? :-
हर एक चीज़ की अपनी एक सर्वाधिक सीमा होती है, जिससे आगे चीज़ें भयानक रूप लेने लगती हैं। हमारी पृथ्वी की भी एक सीमा है, जिस सीमा के आगे न तो वो नए बढ़ती आबादी (how many people can earth support) को झेल सकती है और न ही पहले से रहने वाले लोगों की जरूरतों को पूरा कर सकती है। खैर मित्रों! मैं आप लोगों को बता दूँ कि, हमेशा से हमारी आबादी पृथ्वी पर इतनी अधिक नहीं थी। आज से लगभग 3 लाख साल पहले इंसानो की जनसंख्या केबल 100 से 10,000 के अंदर ही थी। उस समय पृथ्वी पर बसने वाले लोगों की संख्या काफी कम थी।
उच्च जनसंख्या से खराब होते हुए हालत! :-
इसलिए जनसंख्या काफी कम होने के कारण उस समय मौजूदा आबादी को दो गुना होने के लिए लगभग 35,000 साल लग गए थे। वैसे अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, आज ले लगभग 10,000 से 15,000 साल पहले इंसानों ने खेती करना शुरू किया था, फिर तभी से ही आबादी में बुद्धि होना शुरू हुआ। उस समय कृषि के प्रारम्भिक दौर में पृथ्वी कि आबादी लगभग 10 लाख से 1 करोड़ के अंदर सीमित थी। 16 वीं शताब्दी आते-आते लोगों की आबादी इतनी बढ़ चुकी थी कि, हर 300 सालों में ये दोगुनी होने लगी, जरा सोचिए कहाँ 35,000 साल और कहाँ 300 साल।
खैर बात तब जाकर गंभीर हुई, जब आबादी 19 वीं शताब्दी में मात्र 130 सालों के अंदर ही दोगुनी हो गई। मित्रों! उस समय ये बात इतनी बड़ी नहीं लगी, जैसे कि आज लग रहीं है। क्योंकि अभी तो असल मुसीबत आना बाकी था। 1930 से 1974 के अंदर पृथ्वी की आबादी चिंताजनक रूप से बढ़ने लगी। मात्र 44 सालों में ही पृथ्वी की आबादी दोगुनी हो गई थी। जो की हर किसी के लिए चिंता की बात बन गई।
पृथ्वी के ऊपर मात्र इतने ही लोग रह सकते हैं, सुनकर आपके होश ही उड़ जाएंगे! :-
16 वीं शताब्दी में कुछ वैज्ञानिकों ने ये भविष्यवाणी की थी कि, पृथ्वी पर सर्वाधिक (how many people can earth support) 1340 करोड़ लोग जिंदा रह सकते हैं। इससे अधिक लोगों को न तो पृथ्वी संभाल सकती हैं और न ही पृथ्वी पर इनके जिंदा रहने के लिए जरूरी प्राकृतिक सम्पदा मौजूद हैं। बता दूँ कि, ये गणना उस समय वैज्ञानिकों ने निदरलैंड्स के जनसंख्या को मद्दे नजर रखते की थी। 16 वीं शताब्दी में निदरलैंड की आबादी 10 लाख थी और उस समय पृथ्वी कि 1,340 रहने लायक जमीनी हिस्से का 1% हिस्सा इस देश के पास था। तो उसी हिसाब से पृथ्वी की सर्वाधिक लोगों कि संख्या (100 x 1,340 = 1340 करोड़) का आकलन किया गया था।
हालांकि! इस पहले आकलन के 40 सालों के अंदर ही अंदर कई अलग-अलग वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर इनसानों कि सर्वाधिक रहने लायक संख्या को 100 करोड़ से ले कर 10,000 करोड़ तक बताया है। हालांकि! जैसे-जैसे समय बीतता गया, पृथ्वी पर इन्सानों की सर्वाधिक रहने लायक संख्या काफी बढ़ने लगी। क्योंकि नियमित रूप से विज्ञान में विकास की वजह से मनुष्यों की आयु पहले से काफी ज्यादा बढ़ने लग गई थी। अब इन्सानों के मरने कि संख्या के तुलना जन्म लेने कि संख्या काफी ज्यादा बढ़ने लगी।
परिवेश विज्ञानिओं ने पृथ्वी की जलवायु और उपलब्ध हो सकने वाले प्राकृतिक सम्पदा को मद्दे नजर रखते हुए, पृथ्वी पर इन्सानों की सर्वाधिक रह सकने वाली संख्या का अनुमान लगाना शुरू कर दिया है। वैसे परिवेश अगर स्वस्थ रहें तो, जनसंख्या आम तौर पर स्थिर रहती है। परंतु परिवेश आज जिस तरीके से प्रदूषित हो रहा है, उसमें जनसंख्या के ऊपर प्रभाव पड़ना कोई चौंका देने वाली बात नहीं है।
पृथ्वी पर आखिर कितनी हो सकती हैं सर्वाधिक आबादी! :-
भविष्य में पृथ्वी की आबादी (how many people can earth support) लोगों की बचने और प्रजनन की क्षमता के ऊपर निर्भर करेगी। इसलिए इसके बारे में सटीक तौर पर कुछ भी कह पाना बेहद ही ज्यादा मुश्किल है। अगर एक पीढ़ी में दो बच्चों को जन्म देने की प्रथा लागू है तब आने वाले पीढ़ियो में भी लोगों की संख्या स्थिर रहेगी। हालांकि! अगर बच्चों की संख्या दो से घट कर एक हो जाती है, तब जन संख्या में कटौती होना निश्चित है। परंतु अगर बच्चों की संख्या में बढ़ौत्रि होगी तब, जन संख्या में भी बढ़ौत्रि होगी। पृथ्वी के ज़्यादातर हिस्सों में आज जनसंख्या काफी तेजी से बढ़ रही है।
विकासशील और अविकसित देशों में जनसंख्या में बढ़ौत्रि एक काफी बड़ी मुसीबत बन चुकी है। उच्च जन्म दर और मूलभूत चिकित्सा सेवाओं के अभाव से इन देशों में बच्चों के मरने का दर काफी ज्यादा रहती है। 1960 के दशक में पृथ्वी की आबादी अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी और अब ये धीरे-धीरे घटने लगी हैं। United Nation के एक रिपोर्ट के अनुसार 1950 में हर एक महिला औसतन 5.05 बच्चों को जन्म देती थी। परंतु 2020 तक ये दर घट कर अब 2.44 तक ही सीमित रह गई है।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है की, इस शताब्दी के अंत तक वाकई में पृथ्वी की जनसंख्या अपने चरम सीमा तक पहुँच जाएगी। अनुमानों के हिसाब से 2080 तक पृथ्वी की जन संख्या लगभग 1040 करोड़ तक हो जाएगी और 22 वीं शताब्दी तक ये स्थिर ही रहेगी। हालांकि! ये अनुमान आने वाले समय में काफी ज्यादा बदल भी सकते हैं। तो, हम सब को इसके लिए तैयार रहना पड़ेगा।
निष्कर्ष – Conclusion :-
पृथ्वी पर सर्वाधिक लोगों की बचने की संख्या (how many people can earth support) लोगों की खान-पान, जीवन शैली और प्रजनन करने के दर के ऊपर निर्भर करती है। हमारे पास भोग करने के लिए क्या है और हम किस रफ्तार इ्हें भोग रहें हैं, ये दोनों ही बातें आने वाले समय में पृथ्वी की जनसंख्या को निर्धारित करेंगीं। खैर अगर सिर्फ अमेरिका में ही सारे लोग शाकाहारी हो जाएंगे, तब और 35 करोड़ लोगों की खान-पान के लिए देश पर बोझ बढ़ जाएगा।
जिन देशों में आर्थिक स्थिति अच्छी है, वहाँ की महिलाएं फॅमिली प्लैनिंग कर के जन्म के दर को नियंत्रण में ला रहीं हैं। वहीं जिन देशों में आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं हैं, वहाँ महिलाएं ज्यादा बच्चा पैदा कर रहीं हैं। क्योंकि वहाँ बच्चों के मरने की तादाद काफी ज्यादा बढ़ जाती है। वैसे वैज्ञानिकों के हिसाब से वर्तमान के लिए इस सर्वाधिक संख्या का पता लगा पाना काफी ज्यादा मुश्किल है। इसलिए इस संख्या के बजाए हमें पहले ये देखना चाहिए कि, क्या हम खुद इस पृथ्वी पर रहने लायक हैं।
क्योंकि पृथ्वी पर आज हो रहें ज़्यादातर विनाश के पीछे इंसान ही छुपा हुआ है। क्या सच में हम लोगों को पृथ्वी पर रहने का हक है?
Source – www.livescience.com