आज का समय विज्ञान का है। विज्ञान और उसकी मदद से बनने वाली कई सारी चीजों का महत्त्व आज मानवों को पता चल रहा है। दुनिया समय के साथ बहुत तेजी से बदल रहीं हैं और ये बदलाव कहीं न कहीं मानवों को उनके बेहतरी की और ही ले जा रहीं हैं। प्रदूषण के कारण आज इलैक्ट्रिक गाड़ियों (How Do Electric Batteries Work) का चलन है। पूरी की पूरी गाड़ियों का मार्केट आज ई-व्हिकल की और शिफ्ट हो रहीं है, और ऐसे में इनके बारे में जानना हमारे लिए काफी जरूरी हो जाता है। क्योंकि समय के साथ बदलना मानवों की ही प्रकृति है।
ई-व्हिकल (How Do Electric Batteries Work) की जब भी बात आती है, तब हमारे मन में सिर्फ कुछ गाड़ियों की ही तस्वीरें आने लगती हैं। परंतु क्या आप जानते हैं, ई-व्हिकल की जान या यूं कहें की उसकी धड़कन उसकी बैटरी है! बिना बैटरी के ई- गाड़ियों का कोई महत्व ही नहीं है। जैसे हमारा शरीर जीवन के बिना अधूरा है, ठीक उसी तरह कोई भी ई-व्हिकल बैटरी के बिना अधूरा है। तो, मित्रों आप समझ सकते हैं कि, आज के हमारे इस लेख का विषय ही ई-गाड़ियों के ऊपर होने वाला हैं।
तो, आप लोगों से अनुरोध हैं कि,आप भी इस लेख को आरंभ से ले कर अंत तक जरूर पढ़िएगा। ताकि आप लोगों को ये विषय ज्यादा बेहतर ढंग से समझ में आ जाए।
विषय - सूची
ई-गाड़ियों की बैटरी आखिर कैसे काम करती है? – How Do Electric Batteries Work? :-
आज इस्तेमाल होने वाले ज़्यादातर ई-गाड़ियों (How Do Electric Batteries Work) में “लिथियम आईऑन” की बैटरी इस्तेमाल होती है। हालांकि! इनबैटरियों में लिथियम के साथ-साथ कुछ मात्रा में निकेल, मैंगनीज और कोबाल्ट को भी देखने को मिलता है। वैसे लोगों के मन में ये सवाल जरूर उठ रहा होगा कि, आखिर ये बैटरी काम कैसे करती हैं? तो मित्रों! मैं आप लोगों को बता दूँ कि, बैटरी अपने अंदर ऊर्जा को एक खास तरीके से स्टोर कर के रखती है। बैटरी में लगे दो इलेक्ट्रोड के अंदर चार्ज पार्टिकल्स को आगे-पीछे कर के ऊर्जा को बैटरी के अंदर रखा जाता है।
वैसे बैटरी के इलेक्ट्रोड के अंदर कौन-कौन सी चीजें मौजूद हैं, ये बैटरी की क्वालिटी और आउट-पुट की क्षमता को निर्धारित करता है। खैर एक खास बात ये है कि, हमेशा दो इलेक्ट्रोड के अंदर ऊर्जा का अंतर होना चाहिए, जिसको हम “Voltage” भी कहते हैं। इसलिए अक्सर आप देखेंगे कि, दो इलेक्ट्रोड के अंदर दो अलग-अलग चीजों का इस्तेमाल होता है। जिससे बैटरी के पॉज़िटिव और नैगेटिव टर्मिनल के बीच एक वोल्टेज डिफरेंस हमेशा बना रहे।
मित्रों! यहाँ एक अजीब बात ये भी है कि, दोनों ही इलेक्ट्रोड में इस्तेमाल होने वाले दोनों ही अलग-अलग मैटल्स की रासायनिक संरचना में एक-समान आईऑन मौजूद रहना जरूरी है। ताकि बाद में ये दोनों ही इलेक्ट्रोड आपस में आईऑन की अदला-बदली कर सकते हैं। आप लोगों को मैं बता दूँ कि, आईऑन की अदला-बदली की प्रक्रिया तब होती है, जब बैटरी इस्तेमाल होने लग रही होती है।
इस तरीके से काम करती है ई-व्हिकल की बैटरी! :-
किसी भी ई-व्हिकल की बैटरी (How Do Electric Batteries Work) में इलेक्ट्रोड्स के अलावा एक और महत्वपूर्ण चीज़ होती है और वो है ” Conducting Fluid”। ये एक तरीके से बैटरी में दोनों इलेक्ट्रोड्स के बीच आईऑन के अदला-बदली में मदद करता है। हालांकि! एक खास बात ये भी है कि, किसी भी बैटरी के अंदर आप दोनों इलेक्ट्रोड्स को एक-साथ संपर्क में नहीं ला सकते हैं। अगर आप ऐसा करते हैं, तब आपकी बैटरी खराब हो सकती है। इसके अलावा बैटरी के अंदर शॉर्ट-सर्किट होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
इसलिए अकसर आप बैटरी के अंदर दो इलेक्ट्रोड्स को इलेक्ट्रोलाइट्स में डूब कर एक-दूसरे से काफी दूर स्थित होते हुए देखते हैं। मित्रों! आप लोगों को बता दूँ कि, इलेक्ट्रोलाइट्स एक तरीके से एक तरल पदार्थ होता है, जिसे कि हम “Conducting Fluid” भी कहते हैं। इस तरल पदार्थ के अंदर आप दोनों ही इलेक्ट्रोड्स में मौजूद एक-सामन आईऑन को देख सकते हैं। क्योंकि इसी तरल पदार्थ के जरिये ही, बैटरी के आईऑन की अदला-बदली होती है।
वैसे जब बैटरी के दोनों ही इलेक्ट्रोड्स के साथ तारों को जोड़ा जाता है, तब बैटरी के साथ सर्किट पूरा हो जाता है। अब हाइ एनर्जी इलेक्ट्रोड से आईऑन लो-एनर्जी इलेक्ट्रोड की और ट्रांसफर होने लगता है। इसी दौरान बैटरी में जुड़े हुए तारों के जरिये इलेक्ट्रॉन नेगेटिव टर्मिनल से पॉज़िटिव टर्मिनल की और ट्रैवल करने लगता है। मित्रों! नियंत्रित ढंग से होने वाली इस प्रक्रिया (इलेक्ट्रॉन की नेगेटिव टर्मिनल से पॉज़िटिव टर्मिनल तक आने की प्रक्रिया) के जरिये हम बैटरी से चार्ज ले सकते हैं।
ई-गाड़ियों की बैटरी आखिर कितने साल चलती हैं? :-
जब भी हम कोई भी ई-गाड़ी खरीदते हैं, तब सबसे पहला सवाल हमारे मन में ये आता है कि, आखिर इस गाड़ी की बैटरी (How Do Electric Batteries Work) कितने साल चलेगी? क्योंकि बिना बैटरी के ई-गाड़ियों की अहमियत कुछ भी नहीं है। मित्रों! आप लोगों को बता दूँ की, औसतन एक ई-गाड़ी की बैटरी लगभग 15-20 सालों तक चल सकती है। वैसे अगर हम इलेक्ट्रोड और इलेक्ट्रोलाइट में लगातार अंतराल में एडेटिव मिलाते रहेंगे, तब बैटरी और भी कई साल तक चल सकती है।
बैटरी के अंदर “ethylene sulfate” और “methylene methane disulfonate” तथा “lithium difluorophosphate” जैसे पदार्थों के इस्तेमाल करने से बैटरी के इलेक्ट्रोड जल्द खराब नहीं होते हैं। इससे बैटरी की आयु काफी बढ़ा जाती है। इसके अलावा ये पदार्थ बैटरी के क्षमता को भी काफी ज्यादा बढ़ा देते हैं, जिससे बैटरी काफी देर तक बिना किसी प्रोब्लेम के काम करने लगती है। मित्रों! बैटरी के अंदर इलेक्ट्रोड के ऊपर एक प्रोटेक्टिव लेयर भी इन पदार्थों के जरिये बनाया जा सकता हैं। जिससे इलेक्ट्रोड कई सालों के इस्तेमाल के बाद भी लगभग नए जैसे रहते हैं।
वैसे बैटरी की चार्जिंग स्पीड और उसके आस-पास का तापमान भी बैटरी के काम करने के ऊपर काफी प्रभाव डालते हैं। बैटरी को 0% या 100% चार्ज में रखना या काफी तेजी से चार्ज करने के कारण बैटरी बहुत ही जल्दी खराब हो सकती है। क्योंकि ये बैटरी के इलेक्ट्रोड के ऊपर काफी ज्यादा स्ट्रेस डालता है।
निष्कर्ष – Conclusion :-
ई-गाड़ियों की बैटरी (How Do Electric Batteries Work) काफी ज्यादा सेंसिटिव होती है। क्योंकि ये लिथियम-आईऑन से बना हुआ होता है। वैसे आप लोगों को मेँ बता दूँ कि, लिथियम आइऑन कि बैटरी काफी ज्यादा खास होती है। क्योंकि इन बैटरीओं को एक खास काम के लिए खास ढंग से ट्यून किया जा सकता है। माने ये बैटरी कोई भी काम के लिए सबसे उपयोगी साबित होती हैं। अलग-अलग पदार्थों से बने हुए इलेक्ट्रोड और इलेक्ट्रोलाइट्स के जरिये हम ली-आईऑन बैटरीओं को काफी ज्यादा बदल सकते हैं। इससे बैटरीओं कि अहमियत काफी बढ़ जाती है।
खैर ई-गाड़ियों के अंदर खास तौर से “लिथियम-निकेल-मंगनीज-कोबाल्ट-ऑक्साइड” की बैटरी इस्तेमाल होती हैं। ये बैटरी अलग-अलग आकारों और कैपेसिटी में आती हैं। बड़े-बड़े गाड़ियों के लिए बड़े-बड़े बैटेरीयाँ और छोटे-छोटे गाड़ियों के लिए छोटे-छोटे बैटेरीयाँ। वैसे एक बात ये भी है कि, बैटरी को बनाने की कीमत और वजन के अनुसार किसी भी ई-गाड़ी की फ़ाइनल कीमत तय की जाती है। अगर गाड़ी के अंदर बड़ी बैटरी लगी है तो, उसकी कीमत काफी ज्यादा बढ़ जाती है। मित्रों! अलग-अलग बैटरीयाँ अपने क्षमता के अनुसार अलग-अलग पफर्मांस भी दिखाती हैं।
अगर बैटरी के अंदर निकेल का इस्तेमाल ज्यादा हुआ होता है, तब बैटरी की क्षमता काफी तेजी से बढ़ जाती है। जिससे ई-गाड़ियों का माइलेज भी काफी ज्यादा बढ़ जाता है। इसके अलावा निकेल के कारण बैटरीओं की चार्ज साइकल में भी बढ़ोत्री देखने को मिलती हैं। वैसे आप लोग भी क्या ई-गाडियाँ इस्तेमाल करते हैं ? कमेंट कर के जरूर बताइएगा।