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क्या होता है गैलेक्टिक हेलो? – Galactic Halo In Hindi

क्या हेलो की मदद से ही आकाशगंगा अपने आकार में बनी रहती है?

हमारी मिल्की वे और अन्य आकाशगंगाएँ यानि गैलेक्सीस अंतरिक्ष में अकेली नहीं हैं। वे एक विशाल, अदृश्य संरचना में बंधी हुई हैं जिसे गैलेक्टिक हेलो (Galactic Halo) कहते हैं। अगर आकाशगंगा को एक शहर मानें, तो हेलो उसके चारों ओर फैला हुआ एक विशाल, धुंधला उपनगर है। आकाशगंगा का जो हिस्सा हम देख सकते हैं, वह तारों, गैस और धूल से बना है। लेकिन हेलो (Galactic Halo In Hindi) बहुत बड़ा और रहस्यमय है। यह आकाशगंगा के दिखने वाले हिस्से से कहीं दूर तक फैला हुआ है और इसके संतुलन और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इस लेख में हम गैलेक्टिक हेलो (Galactic Halo In Hindi) के बारे में गहराई से जानेंगे: यह क्या है, किससे बना है, कैसे बना और कैसे आकाशगंगाओं को स्थिर रखने में मदद करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हेलो के बारे में जानकर हमें डार्क मैटर और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में भी बेहतर समझ मिलेगी।

गैलेक्टिक हेलो क्या है? – Galactic Halo In Hindi

गैलेक्टिक हेलो (Galactic Halo In Hindi) एक विशाल, गोलाकार क्षेत्र है जो गैलेक्सी को घेरता है और उसके दिखाई देने वाले हिस्से से बहुत दूर तक फैला होता है। यह क्षेत्र तारों, गैस और डार्क मैटर से बना होता है। हेलो का ज्यादातर हिस्सा अदृश्य होता है, लेकिन इसका प्रभाव गैलेक्सी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र और विकास पर एकमद दिखाई देता है। गैलेक्टिक हेलो आमतौर पर गैलेक्सी के भीतर तीन मुख्य घटकों में बंटा होता है:

  1. डार्क मैटर हेलो (Dark Matter Halo)
  2. स्टेलर हेलो (Stellar Halo)
  3. गैसीय हेलो (Gaseous Halo)

ये हेलो गैलेक्सी को स्थिर रखते हैं और बाहरी प्रभावों से उसकी संरचना को टूटने से बचाते हैं। इसके बिना, गैलेक्सियाँ अपनी तेज़ घूर्णन गति (Rotational Speed) के कारण बिखर सकती हैं।

Galactic Halo In Hindi - क्या होते हैं गैलेक्टिक हेलो?
मिल्की वे आकाशगंगा का हेलो, जिसे आप इस छवि में देख सकते हैं।

गैलेक्टिक हेलो के प्रकार – Types Of Galactic Halo In Hindi

एक गैलेक्सी में सामान्य मैटर से लेकर डार्क मैटर, तारों के विशाल ग्रूप ग्लोब्यूलर क्लस्टर और बहुत सी चीजें होती हैं, ये चीजें अधिकतर गैलेक्सी में ही हमें देखने को मिलती हैं, पर इनका प्रभाव गैलेक्सी से भी बाहर होता है, जिस वजह से इनसे गैलेक्टिक हेलो बनता है। आइये इनके प्रकारों के बारे में जानते हैं :-

3.1 डार्क मैटर हेलो (Dark Matter Halo)

डार्क मैटर हेलो गैलेक्सी का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है, लेकिन यह पूरी तरह अदृश्य है। यह न तो प्रकाश को उत्सर्जित (Emit) करता है और न ही अवशोषित (Absorb) करता है, जिससे इसे सीधे देखना संभव नहीं है। वैज्ञानिकों को इसका अस्तित्व केवल गुरुत्वीय प्रभावों (Gravitational Effect) के आधार पर समझ में आता है। गैलेक्सी के घूर्णन वक्र (Rotation Curve) में असमानता और ग्रेविटेशनल लेंसिंग जैसी घटनाएँ डार्क मैटर हेलो की उपस्थिति का संकेत देती हैं।

  • डार्क मैटर का महत्व: यह गैलेक्सी के कुल मास का लगभग 85% होता है और गैलेक्सी को संतुलित रखता है।
  • गैलेक्सी का घूर्णन प्रभाव: अगर डार्क मैटर हेलो न होता, तो गैलेक्सियों की बाहरी तारों की परतें (Stellar Plates) अपनी उच्च गति के कारण अंतरिक्ष में बिखर जातीं।

3.2 स्टेलर (तारकीय) हेलो (Stellar Halo)

तारकीय हेलो में प्राचीन और धातु-निर्धन (मेटल-पुअर) तारे,  ग्लोब्यूलर क्लस्टर और तारकीय अवशेष (Stellar Remnant) शामिल होते हैं। ये तारे गैलेक्सी के शुरुआती दौर में बने थे या फिर उन छोटी गैलेक्सियों के अवशेष हैं जो बाद में मुख्य गैलेक्सी में समाहित हो गईं।

  • प्राचीन तारे: गैलेक्टिक हेलो (Galactic Halo In Hindi) के तारे गैलेक्सी के मुख्य डिस्क और बुल्ज (गैलेक्सी के केंद्र में चमकता तारों का ग्रूप) के तारों की तुलना में पुराने होते हैं।
  • ग्लोब्यूलर क्लस्टर: गोल तारागुच्छ (ग्लोब्यूलर क्लस्टर) तारों के घने समूह होते हैं जो गैलेक्सी के चारों ओर हेलो में परिक्रमा करते हैं और गैलेक्सी के इतिहास की झलक देते हैं।

3.3 गैसीय हेलो (Gaseous Halo)

गैसीय हेलो  में अत्यंत गरम और आयनित गैस होती है, जिसका तापमान लाखों केल्विन तक पहुँच सकता है। यह गैस गैलेक्सी के आसपास परिगैलेक्सीय माध्यम (Circumgalactic Medium या CGM) बनाती है, जो गैलेक्सी के विकास और तारा निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। ये गैस का रीजन गैलेक्सी के बाहरी क्षेत्र को कवर कर लेता है, और ग्लो करता हुआ दिखाई देता है, इसे गैलेक्टिक कोरोना (Galactic Corona) भी कहा जाता है।

  • तारा निर्माण के लिए ईंधन: हेलो की गैस भविष्य में नए तारों के निर्माण के लिए आवश्यक पदार्थ प्रदान करती है।
  • गैसीय पुनर्चक्रण: गैलेक्सी के भीतर से बाहर निकलने वाली गैसें वापस हेलो में जाती हैं और फिर से गैलेक्सी में लौटती हैं, जिससे तारा निर्माण चक्र चलता रहता है।

गैलेक्टिक हेलो  का निर्माण कैसे होता है?

गैलेक्टिक हेलो (Galactic Halo In Hindi) का निर्माण ब्रह्मांड के प्रारंभिक काल में हुआ था, जब ब्रह्मांड में छोटे घनत्वीय उतार-चढ़ाव (Density Fluctuations) उत्पन्न हुए थे। इन क्षेत्रों में डार्क मैटर के प्रभाव से धीरे-धीरे गुरुत्वाकर्षण बल बढ़ता गया, और समय के साथ ये क्षेत्र विशाल डार्क मैटर हेलो के रूप में विकसित हुए।

  • गुरुत्वीय आकर्षण: डार्क मैटर हेलो ने ब्रह्मांडीय धूल और गैस को आकर्षित किया, जिससे तारों और गैलेक्सियों का निर्माण शुरू हुआ।
  • गैलेक्सीय मर्जर: कई गैलेक्सियाँ एक-दूसरे से टकराकर और विलय कर गैलेक्सी के हेलो में अपने तारों और पदार्थों को जोड़ती चली गईं। इस प्रक्रिया ने स्टैलर हेलो को और बढ़ाया।
Galactic Halo In Hindi - क्या होते हैं गैलेक्टिक हेलो?
हबल स्पेस टेलीस्कोप द्वारा कैप्चर की गई, “द माइस” नामक दो टकराती आकाशगंगाओं की एक जोड़ी। जब आकाशगंगाएँ विलय होती हैं, तारों के टकराने की संभावना अविश्वसनीय रूप से कम होती है, क्योंकि उनके बीच बहुत अधिक दूरी होती है। Credit: NASA, Holland Ford (JHU), the ACS Science Team and ESA

गैलेक्टिक हेलो और गैलेक्सी के विकास में इसकी भूमिका

गैलेक्टिक हेलो (Galactic Halo In Hindi) गैलेक्सियों के विकास और स्थायित्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • घूर्णन वक्र (Rotation Curve) को संतुलित करना: डार्क मैटर हेलो के बिना गैलेक्सी के तारों का घूर्णन असंतुलित हो जाता और गैलेक्सी बिखर जाती।
  • गैसीय पुनर्चक्रण: हेलो में मौजूद गैस तारा निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री प्रदान करती है और पुरानी गैसों का पुनर्चक्रण (Recycling) करती है।
  • गैलेक्सीय विलय (Galaxy Merger): तारकीय हेलो में अन्य गैलेक्सियों के अवशेष होते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि गैलेक्सी ने अपने विकास में कई बार विलय का अनुभव किया है।

गैलेक्टिक हेलो से जुड़े साक्ष्य – Galactic Halo In Hindi

गैलेक्टिक हेलो (Galactic Halo In Hindi) का ज्यादातर हिस्सा हमारी आंखों से अदृश्य होता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने इसे साबित करने के लिए कुछ खास तरीकों का इस्तेमाल किया है:

  1. गैलेक्सी का घूर्णन (Rotation Curve):
    जब वैज्ञानिक गैलेक्सी के तारों की गति मापते हैं, तो वे पाते हैं कि गैलेक्सी के बाहरी हिस्से में भी तारे काफी तेज़ी से घूमते हैं। यह तब भी होता है जब वहाँ उतने तारे या गैस नज़र नहीं आते, जितनी इस गति को संभालने के लिए ज़रूरी होती है। इसका मतलब है कि वहाँ कुछ अदृश्य पदार्थ, यानी डार्क मैटर, मौजूद है जो इस घूर्णन को संतुलित करता है।
  2. गुरुत्वीय लेंसिंग (Gravitational Lensing):
    गैलेक्टिक हेलो का गुरुत्वीय बल (Gravity) इतना शक्तिशाली होता है कि यह पृष्ठभूमि में मौजूद किसी तारे या आकाशगंगा से आने वाले प्रकाश को मोड़ देता है, जैसे एक बड़ा लेंस। इस मोड़ से वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि उस क्षेत्र में डार्क मैटर की कितनी मात्रा है।
  3. एक्स-रे विकिरण (X-Ray Emission):
    हेलो के अंदर बेहद गरम गैस होती है, जिसका तापमान लाखों डिग्री तक पहुँच जाता है। यह गैस एक्स-रे विकिरण उत्पन्न करती है, जिसे अंतरिक्ष में मौजूद विशेष दूरबीनों से देखा जा सकता है। इस विकिरण से वैज्ञानिक समझते हैं कि हेलो में कितनी गैस है और यह कैसे गैलेक्सी के विकास में मदद करती है।

गैलेक्टिक हेलो का प्रभाव

गैलेक्सीय हेलो (Galactic Halo In Hindi) का प्रभाव न केवल गैलेक्सी के अंदर बल्कि उसके आसपास के अंतरिक्ष और दूसरी गैलेक्सियों पर भी गहराई से महसूस किया जाता है। हेलो का गुरुत्वाकर्षण बल गैलेक्सी को स्थिर रखता है और इसकी संरचना को टूटने से बचाता है। इसके अलावा, यह गैलेक्सी के अन्य पिंडों और इंटरगैलेक्टिक स्पेस (आकाशगंगाओं के बीच का स्थान) के साथ भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।

एंड्रोमेडा गैलेक्सी का हेला - अगर हम इसे देख पायें
यह दृष्टांत दिखाता है कि यदि एंड्रोमेडा का गैसीय हेलो (Galactic Halo In hindi) मनुष्यों के लिए पृथ्वी पर दिखाई देता तो कैसा दिखता। Credit: NASA, ESA, J. DePasquale and E. Wheatley (STScI), and Z. Levay (background image)

पड़ोसी गैलेक्सियों के हेलो आपस में ग्रेविटी से जुड़े होते हैं और वे गैलेक्सीय समूहों (Galaxy Cluster) का निर्माण करते हैं। इसके साथ-साथ वे  गैलेक्सियों के टकराव और विलय (Merger) को नियंत्रित करते हैं।

गैलेक्टिक हेलो का सर्वे

मिल्की वे आकाशगंगा, जो कि लगभग 1 लाख प्रकाशवर्ष व्यास की है, अगर हम इसमें इसके पुराने ग्लोब्युलर क्लस्टरों से बने हेलो (Galactic Halo In Hindi) और हाइड्रोजन गैस के बादल (यानी गैलेक्टिक कोरोना) को भी शामिल करें, तो इसका आकार और 50,000 प्रकाशवर्ष बढ़ जाता है। इस बढ़े हुए क्षेत्र को ही वैज्ञानिक गैलेक्टिक हेलो (Galactic Halo In Hindi) कहते हैं। यानी मिल्की वे का वह बाहरी हिस्सा जो हमें चमकदार दिखाई देता है, उसके बाहर का एक और विशाल क्षेत्र है।

वैज्ञानिक कई सालों से ‘Haloes and Environments of Nearby Galaxies (HERON)‘ सर्वे के माध्यम से मिल्की वे के गैलेक्टिक हेलो और आसपास की 123 आकाशगंगाओं के डेटा का गहन अध्ययन कर रहे हैं।

Shivam Sharma

शिवम शर्मा विज्ञानम् के मुख्य लेखक हैं, इन्हें विज्ञान और शास्त्रो में बहुत रुचि है। इनका मुख्य योगदान अंतरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान में है। साथ में यह तकनीक और गैजेट्स पर भी काम करते हैं।

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