आज के जमाने में इंटरनेट और इसकी उपयोगिता हर किसी को पता है। इंटरनेट के बिना जीवन अधुरा सा लगने लगता है। युवा पीढ़ी हो या भारत की बाकी आम जनता, हर किसी को इंटरनेट को दैनिक इस्तेमाल करने की आदत लग चुकी है। खैर कोरोना काल में तो इंटरनेट की उपयोगिता काफी ज्यादा बढ़ गई है। खाना ऑर्डर करने से लेकर गाड़ी में इस्तेमाल होने वाले नैविगेशन सिस्टम (ISRO’s Navic In Hindi) तक, हमें इंटरनेट ने काफी मदद की है। घर के अंदर भी और घर के बाहर भी, कभी इसने हमें अकेला नहीं छोड़ा है; हमेशा इसने एक सच्चे दोस्त की तरह अपना कर्तव्य निभाया है।
खैर नैविगेशन (ISRO’s Navic in hindi) की जब भी बात होती है, तब हमारे मन में सबसे पहले “Google Maps” की ही तस्वीर आती है। गूगल मैप्स के हम लोग इतने आदि हो चुके हैं कि, अगर हमें कहीं जाना हो, तब सबसे पहले हमारे स्मार्टफोन में इसी ऐप को हम खोलते हैं। परंतु सवाल उठता है की, क्या गूगल मैप्स ही विश्व की एकमात्र नेविगेशन ऐप है? क्या भारत के पास सिर्फ इस विदेशी ऐप को ही इस्तेमाल करने का विकल्प है?
तो, मित्रों! मैं आप लोगों को बता दूँ की, हमारे आज के लेख का विषय इन्हीं सवालों पर ही आधारित है। इसलिए आप लोगों से अनुरोध है कि, मेरे साथ आप लेख के अंत तक बने रहिए।
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भारत की स्वदेशी नैविगेशन सिस्टम “नैविक”! – ISRO’s Navic In Hindi! :-
वो जमाना जा चुका है, जब हम लोगों को पूछ-पूछ कर रास्ता ढूंढते थे। पर आज के जमाने में तो लोग गूगल मैप्स और सिरी का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए भारत के वैज्ञानिकों ने सोचा कि, इन विदेशी ऐप्स को इस्तेमाल करने कि जगह अगर कोई स्वदेशी ऐप को बना लिया जाए तो, इससे भारतीय कितने ज्यादा सुरक्षित व फ़ायदे में रहेंगे। क्योंकि अकसर देखा गया है कि, विदेशी कंपनियाँ अपने फ़ायदे के चलते उनके यूजर्स के डेटा को लीक कर देती हैं। इसलिए भारत के लिए भी “नैविक” (ISRO’s Navic in hindi) को विकसित करना काफी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया था।
खैर कई बार “नैविक” को “Indian Regional Navigation Satellite System (IRNSS)” भी कहते हैं। ये सिस्टम रियल टाइम आपकी पोजीशन को बताने के साथ ही साथ आपको दिशा भी दिखाता है। एक हिसाब से ये गूगल मैप्स कि तरह स्वचालित सिस्टम ही है। वर्तमान समय में ये सिस्टम पूरे भारत और इसके आस-पास के 1500 km के क्षेत्र को कवर करता है, परंतु भविष्य में ये और भी ज्यादा व्यापक होगा। नैविक को चलाने के लिए अभी कुल 8 कृत्रिम उपग्रहों को काम में लिया जा रहा है और बैकअप के लिए दो ग्राउंड स्टैशन भी मौजूद हैं। मूलतः नैविक अभी दो सेवाओं को प्रदान करता है।
पहली सेवा के तौर पर ये आम नागरिकों को “Standard Positioning Service” मुहैया करवाता है। वहीं दूसरी सेवा के तौर पर ये कुछ खास भारतीय संस्थाओं को कुछ विशेष जगहों कि “Restricted Services” भी प्रदान करता है। बता दूँ कि, ये रेस्ट्रिक्टेड़ सर्विसेस आम नागरिकों के लिए उपलब्ध नहीं हैं, ये खास तौर पर भारतीय सेना के लिए उपलब्ध रहती है।
ये सिस्टम आखिर कैसे काम करता है? –
नैविक (ISRO’s Navic in hindi) के सिस्टम को मूल रूप से दो भागों में बाँटा गया है। पहला भाग हैं “स्पेस सेगमेंट” और दूसरा भाग हैं “ग्राउंड सेगमेंट”। स्पेस सेगमेंट के अंदर अब 8 सैटेलाइट्स या कृत्रिम उपग्रह मौजूद हैं। इन 8 सैटेलाइट्स में से तीन सैटेलाइट्स पृथ्वी के “Geostationary Orbit” (GEO) में मौजूद हैं, जो कि पृथ्वी की सतह से लगभग 36,000 km की ऊँचाई पर रहती है। वैसे बाकी बचे पाँच सैटेलाइट्स पृथ्वी के “Geosynchronous Orbit” (GSO) में रहते हैं। मित्रों! ये तो था नैविक के स्पेस सेगमेंट के बारे में, चलिये अब एक नजर इसके ग्राउंड सेगमेंट के ऊपर भी ड़ाल लेते हैं।
ये हैं इसके काम करने का ढंग! :-
नैविक का ग्राउंड सिस्टम मूलतः नैभिक के काम करने के लिए जिम्मेदार रहता हैं। इसके बिना सिस्टम काम ही नहीं कर सकता हैं। इसके अलावा नैभिक का ग्राउंड सिस्टम इसके रख-रखाव के लिए भी जिम्मेदार रहता हैं। मित्रों! इसका ग्राउंड सेगमेंट मूलतः 7 भागों में बंटा हुआ हैं। पहला हैं IRNSS Spacecraft Control Facility (IRSCF), दूसरा है ISRO Navigation Centre (INC), तीसरा है IRNSS Range and Integrity Monitoring Stations (IRIMS), चौथा हैं IRNSS Network Timing Centre (IRNWT), पाँचवां हैं IRNSS CDMA Ranging Stations (IRCDR), छठा हैं Laser Ranging Stations और सातवाँ हैं IRNSS Data Communication Network (IRDCN)।
IRSCF को नैविक का मास्टर कोंट्रोलर या कमांड सेंटर भी कह सकते हैं, जो की भोपाल में मौजूद है। INC सिस्टम नैभिक (नैविक) के लिए डेटा संग्रह और रिमोट ऑपरेशन के लिए जिम्मेदार रहता है। नैविक को और भी ज्यादा सक्षम बनाने के लिए 14 IRIMS सिस्टम्स को काम में लिया जा रहा है। CDMA और IRCDR, सैटेलाइट्स से नैविक के लिए आ रहें सिग्नल्स को कलैक्ट करते हैं। लैजर रेंजिंग के लिए लेजर रेंजिंग स्टेशन्स का इस्तेमाल किया जाता है। IRDCN सभी ग्राउंड स्टैशन्स और सैटेलाइट्स के बीच सिग्नल को बना कर रखता है।
इस सिस्टम के सिग्नल्स कैसे रहते हैं?:-
नैभिक (ISRO’s Navic in hindi) का सिग्नल एक काफी चर्चाओं से भरा विषय रहा है। क्योंकि ये दो प्रकार के सिग्नल के आधार पर काम करता है। पहला हैं “Standard Positioning Service” और दूसरा है “Precision Service”। बता दूँ कि, ये दोनों ही सेवाएं L5 (1176.45 MHz) और S band (2492.028 MHz) के ऊपर काम करती हैं। खैर इन सिग्नल्स को SPS सिग्नल कहते हैं और ये आसानी से BPSK सिग्नल में मोडुलैटेड़ हो सकते हैं। हालांकि! Precision Service BOC(5,2) नाम के एक खास सिग्नल के ऊपर भी काम करते हैं। वैसे ये सब सिग्नल “फेज़्ड़ एरे एंटीना” के द्वारा ब्रॉडकास्ट किए जाते हैं, ताकि दूर-दूर तक इनका कवरेज बना रहें और सिग्नल में कोई दिक्कत न आए।
इन सिग्नल्स के ब्रॉडकास्टिंग का फ्रिक्वेंसि S-बैंड यानी लगभग (2-4 GHz) के अंदर ही रहता है। वैसे ऐसे सिग्नल्स को पैदा कर रहें एक सैटेलाइट का वजन 1,330 kg तक रहता है और इन्हें चलाने के लिए लगभग 1,400 W बिजली कि जरूरत पड़ती है। वैसे नैविक के अंदर मैसेज भेजने के लिए एक स्वतंत्र इंटरफेस को भी लगाया गया हैं। ये उपकरण किसी भी इलाके में होने वाले प्राकृतिक आपदाओं के बारे में अलर्ट भेजने के काम में आता हैं।
नैविक आखिर कितना सटीक है? :-
अब लोगों के मन में ये सवाल आ रहा होगा कि, अगर हमारे देश में बने ये नैविगेशन सिस्टम इतना ही काबिल है तो, इसके सटीकता के बारे में भी कुछ बताइए? मित्रों! ये सवाल वाकई में काफी ज्यादा अच्छा हैं, क्योंकि नैविक (ISRO’s Navic in hindi) बस तभी आम लोगों के काम में आ सकता है, जब ये काफी सटीक हो। किसी भी नैविगेशन सिस्टम कि सटीकता ही, उसके सफलता को दर्शाता हैं। अगर हम भारत के बारे में बात करें तो, नैभिक भारत के क्षेत्रफल के अंदर लगभग 10 मीटर तक के सटीकता को रखता हैं।
अगर जगह भारत के क्षेत्रफल से बाहर हो, तब इसकी सटीकता 20 मीटर तक हो जाती है। वैसे गौर करने वाली बात ये है कि, 20 मीटर कि सटीकता भारत के आसपास 1,500 km तक मौजूद क्षेत्रों और भारत महासागर के इलाकों में ही है। आने वाले समय में इसकी सटीकता और भी ज्यादा बढ्ने वाली है। कई सारे सूत्रों से पता चला है कि, भविष्य में नैभिक (नैविक) के उपयोगकर्ताओं को 5 मीटर तक के सटीकता को प्रदान करे पाएंगे। अगर ये बात सच होती है, तो तब ये हम भारतीयों के लिए एक काफी गौरव करने वाली बात हो जाएगी। क्योंकि, स्वदेशी चीजों में आनंद ही कुछ अलग है।.
मित्रों! आज के समय में बाकी नैविगेशन सिस्टम 20 से 30 मीटर तक के सटीकता को प्रदान करते हैं। तो आप खुद सोच सकते हैं कि, हमारा नैविक विदेशी नैविगेशन सिस्टम से कितना ज्यादा उन्नत और विकसित हो सकता है।
Source :- www.isro.gov.in
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