हिन्दू धर्म में 16 संस्कारों की बात कही जाती है जिसमें कई तरह के संस्कार शामिल हैं। सजने-सवरने के लिए हिन्दू महिलाएं अपने पैरो में पायल और बिछवा पहनती हैं, पर ये सभी चीजें चांदी की बनी होती है।
दोस्तों इस बात से तो हर कोई भली – भांति वाकिफ होगा कि हिंदू धर्म की महिलाएं अपने पैरों में सोना नहीं पहनती। पायल हो या बिछवे वो चांदी या किसी अन्य धातु के होते हैं, क्योंकि सोना पहनना वर्जित माना गया है। लेकिन क्या आपको ये पता है कि, आखिर महिलाएं अपने पैरों में सोना क्यों नहीं पहनती? इसके पीछे कई मान्यता है कुछ धार्मिक है तो कुछ वैज्ञानिक आइए जानते हैं इसके कारण।
धार्मिक कारण
भारत एक ऐसा देश है जहां धर्म के प्रति लोगों की आस्था अटूट है. यहां हर छोटी – से – छोटी और बड़ी – से – बड़ी बातों को धर्म से जोड़कर देखा जाना आम बात है. पैरों में सोना नहीं पहनने के पीछे धर्मिक कारण ये है कि, भारत देश में सोने को पूजनीय माना जाता है. किसी भी शुभ कार्यों में सोना को पूजा जाता है. और इसे लक्ष्मी का प्रतीक भी माना गया है. इसलिये सोने में पैर नहीं लगाने की भावना से महिलाएं पैरों में सोना नहीं पहनतीं।
वैज्ञानिक कारण
विज्ञान के नजरिए से जानें तो सोने के बने आभूषणों की तासीर गर्म होती है, और चांदी की तासीर शीतल. जैसा कि आप जानते हैं कि मनुष्य का पैर गर्म होना चाहिए और सिर ठंडा. इसलिए सिर पर सोना और पैरों में चांदी के गहने हीं पहनने चाहिए. इससे चांदी से उत्पन्न ठंडक सिर में पहुंचती है, और सोने से उत्पन्न ऊर्जा पैरों में जाएगी. जिससे पैर गर्म और सिर ठंडा बना रहता है.
पैरों में चांदी से बनी चीजें पहनने से इंसान कई बीमारियों से बच जाता है. चांदी की पायल और बिछिया पहनने से पीठ, घुटनों के दर्द, एड़ी और हिस्टीरिया रोगों से काफी राहत मिलता है. जबकि सिर और पैर दोनों में सोने के गहने पहनने के कारण मस्तिष्क और पैर दोनों में एक समान ऊर्जा प्रवाहित होती है. जिससे इंसान के रोगी होने की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए शरीर के ऊर्जा का नियंत्रण बनाए रखने के लिए, सिर में सोना और पैरों में चांदी के गहने पहनने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.