Religion

विचित्र महात्मा, जो अपने रहस्यमय और असामान्य अंत को प्राप्त हुए

संसार का नियम है कि जो भी पैदा होता है वह एक दिन मरता जरूर है। यह नियम सनातन नियम है, ब्रह्मांण्ड के किसी भी कौने में चले जाओ यह लागू होगा ही।  लेकिन इस दुनिया में ऐसे भी महापुरुष पैदा हुए जिन्होंने अपने अंत समय में, रहस्य के आवरण को लपेटे इस दुनिया से ऐसे विदा ली कि पूरी दुनिया चकित हो गयी।

वल्लभाचार्य जी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने अग्निस्वरूप में स्थित होकर अपने अराध्य श्रीकृष्ण के धाम में प्रवेश किया | उन्होंने अंतिम दिन में मौन ले लिया था।  वे बनारस में हनुमान घाट पर गंगा की धारा में दोपहर का स्नान करने गए थे।

थोड़ी ही देर में वहां पर उपस्थित लोगों ने प्रत्यक्ष रूप से देखा कि गंगा जी की बीच धारा में वल्लभाचार्य के शरीर के स्थान पर एक अलौकिक अग्निशिखा आकाश की ओर उठती जा रही है।  उनका लौकिक शरीर अलौकिक अग्नि-तेज में बदल चुका था और इस मृत्यु लोक को छोड़ चुका था।

चैतन्य महाप्रभु के विषय में भी ऐसे ही कहा जाता है कि अपने अंत समय में वे जगन्नाथ जी के विग्रह में ही स-शरीर समा गये | उस दिन वो गरुड़स्तम्भ के पीछे से दर्शन न कर सीधे मंदिर के भीतर चले गए | मंदिर के दरवाज़े अपने आप बंद हो गये,  और वे जगन्नाथ जी में अन्तर्हित हो गए।

राजरानी मीराबाई को कौन नहीं जानता | कृष्ण प्रेम और भक्ति में ऐसा विह्वल हुई वो की अंत में भगवान को स्वयं आना पड़ा | उस दिन वो संगीत के विभिन्न पद गा-गाकर और नृत्य करके उन्हें (भगवान कृष्ण के श्रीविग्रह को) रिझा रही थीं | अचानक उसी श्रीविग्रह से एक दिव्य ज्योति निकल उनके सामने आती है और वो उस ज्योति में स-शरीर समा जाती हैं।

दक्षिण-भारत के प्रसिद्ध योगी संत रामलिंगम ने अपने अंत के दो वर्ष पहले ही बता दिया था कि मै 54 वर्ष की अवस्था में इस शरीर से ही अदृश्य हो जाऊँगा | नियत अंतिम समय आने पर शिष्यों ने उनको आराम से सुला दिया | सोने से पहले उन्होंने सबसे कहा कि “मै कुछ समय के लिए अदृश्य हो रहा हूँ।

यह शरीर जलाने अथवा समाधि के लिए नहीं मिल सकेगा | मै शुद्ध निर्विकल्प समाधि में जा रहा हूँ |….खिड़की और दरवाज़े चारो ओर से बंद कर दीजियेगा” | उनकी आज्ञा के अनुसार दरवाजे बंद कर दिए गए | ताले लगा दिए गए | बाहर लोग खड़े होकर सावधानी से देख रहे थे | दरवाजा खोले जाने पर कुटी में शून्य के अलावा कुछ भी न दिखाई पड़ा।

दक्षिण भारत के ही एक संत हुए महात्मा तिरुमूल नायनार ! इनको वहां के 63 नायनार संतों में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है इनके जीवन के अंत के बारे में भी एक रहस्यमय विवरण मिलता है | कहा जाता है कि एक दिन वो कावेरी नदी के तट पर भ्रमण कर रहे थे | वहां उन्होंने पशुओं यानि गायों और बछड़ों को अपने चरवाहे, ‘मूलन’ की मृत्यु हो जाने पर उसके शरीर को घेरकर करुण विलाप करते देखा | पशु अपने चरवाहे की मृत शरीर की परिक्रमा कर रहे थे और जोर-जोर से कारुणिक आवाज़ निकाल रहे थे | उनकी आँखों से अश्रु बह रहे थे।

यह भी जानें – क्या है हिमालय के चमत्कारिक महात्मा का रहस्य, जिन्होंने कर रखा है वैज्ञानिकों को हैरान

संत तिरुमूल के लिए यह शोकपूर्ण दृश्य असह्य हो उठा | उन्होंने अपने शरीर को एक सुरक्षित स्थान पर छोड़कर अपने योगबल से, परकाया प्रवेश द्वारा, मूलन के मृत शरीर में प्रवेश किया | मूलन को जीवित देखकर पशुओं की ख़ुशी की कोई सीमा नहीं रही | शाम को गायों के पीछे-पीछे गाँव में आकर चौराहे पर मूलन के शरीर में स्थित तिरुमूल खड़े हो गए | फिर बाद में उन्होंने गाँव के एक मठ में निवास कर कुछ दिनों तक साधना की लेकिन उन्हें अपनी पूर्व शरीर का कुछ पता नहीं चला | अपने पूर्व शरीर के न मिलने पर उन्होंने शिव की उपासना में अपना शेष जीवन सार्थक किया..

स्रोत – रहस्यमय.कॅाम

Pallavi Sharma

पल्लवी शर्मा एक छोटी लेखक हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान, सनातन संस्कृति, धर्म, भारत और भी हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतीं हैं। इन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button