Religion

ये हैं भारत के 5 सबसे रहस्मयी मंदिर, जिनका राज विज्ञान भी नहीं जानता..

Top 5 Mysterious Temples – भारत मंदिरों का देश है, यहां हर गली में एक ना एक मंदिर देखने को मिल ही जाता है। मंदिर देवताओं की पूजा करने के लिए बनाये जाते हैं। सनातन परंपरा में इनका निर्माण हजारों सालों से होता आ रहा है। भारत में लाखों मंदिर हैं जिनमें से कुछ इतने रहस्यमयी हैं कि इनका रहस्य हम तो क्या आजतक विज्ञान भी नहीं जान पाया है, आज जानिए भारत के ऐसे ही 5 रहस्यमयी मंदिरों के बारे में। 

1. कामाख्या देवी मंदिर, गुवाहाटी (Kamakhya Devi temple, Guwahati)

कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है। कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है सती का योनिभाग कामाख्या में गिरा। उसी स्थल पर कामाख्या मन्दिर का निर्माण किया गया।

इस मंदिर में प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें देश भर के तांत्रिक और अघोरी हिस्सा लेते हैं। माना जाता है कि सालभर में एक बार अम्बुबाची मेले के दौरान मां कामाख्या रजस्वला होती हैं और इन तीन दिन में योनि कुंड से जल प्रवाह कि जगह रक्त प्रवाह होता है। इसलिए अम्बुबाची मेले को कामरूपों का कुंभ कहा जाता है।

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2. काल भैरव मंदिर, मध्य प्रदेश (Kaal bhairav temple, Madhya pradesh)

मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से करीब 8 कि.मी. दूर कालभैरव मंदिर स्थित है। भगवान कालभैरव को प्रसाद के तौर पर केवल शराब ही चढ़ाई जाती है। शराब से भरे प्याले कालभैरव की मूर्ति के मुंह से लगाने पर वह देखते ही देखते खाली हो जाते हैं। मंदिर के बाहर भगवान कालभैरव को चढ़ाने के लिए देसी शराब की आठ से दस दुकानें लगी हैं।

मंदिर में शराब चढ़ाने की गाथा भी बेहद दिलचस्प है। यहां के पुजारी बताते हैं कि स्कंद पुराण में इस जगह के धार्मिक महत्व का जिक्र है। इसके अनुसार, चारों वेदों के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना का फैसला किया, तो उन्हें इस काम से रोकने के लिए देवता भगवान शिव की शरण में गए। ब्रह्मा जी ने उनकी बात नहीं मानी। इस पर शिवजी ने क्रोधित होकर अपने तीसरे नेत्र से बालक बटुक भैरव को प्रकट किया। इस उग्र स्वभाव के बालक ने गुस्से में आकर ब्रह्मा जी का पांचवां मस्तक काट दिया। इससे लगे ब्रह्म हत्या के पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की। शिव ने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है। कालांतर में यहां एक बड़ा मंदिर बन गया। मंदिर का जीर्णोद्धार परमार वंश के राजाओं ने करवाया था।

3. करणी माता मंदिर, राजस्थान (Karni mata temple, Rajasthan)

करणी माता मंदिर राजस्थान में बीकानेर से कुछ दूरी पर देशनोक नामक स्थान पर है। यह स्थान मूषक मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भक्तों से ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं। इनके बीच अगर कहीं सफेद चूहा दिख जाए तो समझें कि मनोकामना पूरी हो जाएगी। यही यहां की मान्यता है।

वैसे, इसे चूहों को काबा भी कहा जाता है। चूहों को भक्त दूध, लड्डू आदि देते हैं। आश्चर्यजनक बात यह भी है कि असंख्य चूहों से पटे मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी चूहा नजर नहीं आता। इस मंदिर के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश नहीं करती है। कहा तो यह भी जाता है कि जब प्लेग जैसी बीमारी ने अपना आतंक दिखाया था, तब यह मंदिर ही नहीं, बल्कि यह पूरा इलाका इस बीमारी से महफूज था।

4. ज्वाला देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा है ज्वाला देवी का मंदिर। शास्त्रों के अनुसार, यहां सती की जिह्वा गिरी थी। मान्यता है कि सभी शक्तिपीठों में देवी हमेशा निवास करती हैं। शक्तिपीठ में माता की आराधना करने से माता जल्दी प्रसन्न होती है। ज्वालादेवी मंदिर में सदियों से बिना तेल-बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं। नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला चांदी के जाला के बीच स्थित है, उसे महाकाली कहते हैं। अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी ज्वाला देवी मंदिर में निवास करती हैं।

कथा है कि मुगल बादशाह अकबर ने ज्वाला देवी की शक्ति का अनादर किया और मां की तेजोमय ज्वाला को बुझाने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन वह अपने प्रयास में असफल रहा। अकबर को जब ज्वाला देवी की शक्ति का आभास हुआ, तो क्षमा मांगने के लिए उसने ज्वाला देवी को सवा मन सोने का छत्र चढ़ाया।

5. मेंहदीपुर बालाजी, राजस्थान (Mehandipur balaji, Rajasthan)

मेंहदीपुर बालाजी का मंदिर श्री हनुमान का बहुत जाग्रत स्थान माना जाता है। लोगों का विश्वास है कि इस मंदिर में विराजित श्री बालाजी अपनी दैवीय शक्ति से बुरी आत्माओं से छुटकारा दिलाते हैं। मंदिर में हजारों भूत-पिशाच से त्रस्त लोग प्रतिदिन दर्शन और प्रार्थना के लिए यहां आते हैं, जिन्हें स्थानीय लोग संकटवाला कहते हैं। भूतबाधा से पीड़ित के लिए यह मंदिर अपने ही घर के समान हो जाता है और श्री बालाजी ही उसकी अंतिम उम्मीद होते हैं।

यहां कई लोगों को जंजीर से बंधा और उल्टे लटके देखा जा सकता है। यह मंदिर और इससे जुड़े चमत्कार देखकर कोई भी हैरान हो सकता है। शाम के समय जब बालाजी की आरती होती है तो भूत-प्रेत से पीड़ित लोगों को जुझते देखा जाता है और आरती के बाद लोग मंदिर के गर्भ गृह में जाते हैं। वहां के पुरोहित कुछ उपाय करते हैं और कहा जाता है इसके बाद पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है।

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6. पद्मनाभस्वामी मंदिर

18वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजाओं ने पद्मनाम मंदिर को बनाया था. सबसे अहम बात ये है कि इसका ज़िक्र 9वीं शताब्दी के ग्रंथों में भी आता है. 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को ‘पद्मनाभ दास’ बताया, जिसका मतलब ‘प्रभु का दास’ होता है. इसके बाद शाही परिवार ने खुद को भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर दिया. इस वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी दौलत पद्मनाभ मंदिर को सौंप दिया।

संपत्ति और रहस्य को देखते हुए कई लोगों ने इसके द्वारों को खोलने की मांग की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. 7 सदस्यों की निगरानी में अब तक 6 द्वार खोले जा चुके हैं, जिनसे करीब 1,32,000 करोड़ के सोने और जेवरात मिले. लेकिन सबसे दिलचस्प बात सातवें गेट की है. ये अभी तक पूरी दुनिया के लिए रहस्य बना हुआ है, जिसे अभी तक खोला जाना है।

यह एक गुप्त गृह है, जिसकी रक्षा ‘नाग बंधम्’ करते हैं. इस गेट को कोई 16वीं सदी का ‘सिद्ध पुरूष’, योगी या फ़िर कोई तपस्वी ही ‘गरुड़ मंत्र’ की मदद से खोल सकता है.

नियमानुसार, ‘गरुड़ मंत्र’ का स्पष्ट तरीके से उच्चारण करने वाला सिद्ध पुरूष ही इस गेट को खोल पाएगा. अगर उच्चारण सही से नहीं किया गया, तो उसकी मृत्यु हो जाती है. अभी हाल में याचिकाकर्ता की संदिग्ध अवस्था में मृत्यु हो गई.

Team Vigyanam

Vigyanam Team - विज्ञानम् टीम

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