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विश्व में मलेरिया को एक आम बीमारी माना जाता है जो कि मच्छरों के काटने से फैलती है. यदि इसका इलाज समय रहते ना किया जाये तो यह बीमारी गंभीर रुप धारण कर सकती है। मलेरिया ज्यादातर विकासशील देशो में ही देखने को मिलता है, यह बीमारी ज्यादातर गंदगी के कारण और रहन- सहन सही ना होने की वजह से फैलती है। वैसे इसपर कई शोध होते रहे हैं पर दिल्ली के वैज्ञानिकों ने हाल में ही एक नये शोध से दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा है।
वैज्ञानिकों ने पहली बार यह पता लगाया है कि मलेरिया के परजीवियों की संख्या में इतनी तेज गति से वृद्धि कैसे होती है. यह खोज वैश्विक तौर पर लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली घातक बीमारी से निपटने के लिए नई दवाएं बनाने में मददगार हो सकती है।
मलेरिया के परजीवी मादा एनोफेलिस मच्छरों के काटने से लोगों के शरीर में पहुंच जाते हैं. ये मच्छर प्लाज्मोडियम नामक परजीवी को इंसान में प्रवेश कराते हैं।
नई दिल्ली स्थित जेएनयू के स्पेशल सेंटर फॉर मॉलिक्यूलर मेडिसिन में प्रोफेसर सुमन कुमार धर ने कहा, ‘गुणन के हर चक्र के दौरान परजीवी के जीनोम का प्रतिरूपण डीएनए प्रतिरूपण के जरिए हो जाता है. यह प्रतिरूपण जीनोम के साथ के कुछ विशिष्ट स्थानों पर शुरू होता है. इसे प्रतिरूपण का उद्गम स्थल (ओरआरआईसी) कहा जाता है।’
धर ने कहा, ‘बैक्टीरियाई जीनोमों में आम तौर पर एक ओरआरआईसी होता है लेकिन इंसान जैसे उच्च जीवों में कई ओआरआईसी हो सकते हैं. किसी जीनोम में इन उद्गगभ स्थलों में की पहचान बेहद मुश्किल काम है।’
गणनात्मक एवं प्रायोगिक प्रमाणन का इस्तेमाल करके छह साल तक किए गए अध्ययन में आईआईटी दिल्ली के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर कुशाल शह समेत शोधकर्ताओं ने पाया कि परजीवी जीनोम में कई स्थानों से प्रतिरूपित होते हैं।
ढार ने कहा कि इस प्रक्रिया में शामिल प्रोटीनों का भी पता लगा लिया गया है। यह समझा जा सकता है कि इन प्रोटीनों की क्रियात्मकता और इन प्रतिरूपण स्थलों से उनके जुड़ाव को रोककर परजीवियों की वृद्धि रोकी जा सकती है. ये नतीजे एफईबीएस जर्नल में प्रकाशित किए गए।
साभार – जीन्यूज