हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि हर मनुष्य को हवन जरूर करना चाहिए , हवन देवताओं के लिए भोजन की तरह से हैं जिससे वह अपनी अनमोल कृपा अपने भक्तों को देते हैं। हवन में सात पेड़ों की समिधाएँ (लकड़ियाँ) सबसे उपयुक्त होतीं हैं- आम, बड़, पीपल, ढाक, जाँटी, जामुन और शमी. हवन से शुद्धता और सकारात्मकता बढ़ती है. रोग और शोक मिटते हैं. इससे गृहस्थ जीवन पुष्ट होता है।
हवन करने के लिए किसी वृक्ष को काटा नहीं जाता, ऐसा करने वाले धर्म विरुद्ध आचरण करते हैं. जंगल से समिधाएँ बीनकर लाई जाती है अर्थात जो पत्ते, टहनियाँ या लकड़िया वृक्ष से स्वत: ही धरती पर गिर पड़े हैं उन्हें ही हवन के लिए चयन किया जाता है।
वैश्वदेवयज्ञ को भूत यज्ञ भी कहते हैं. पंच महाभूत से ही मानव शरीर है. सभी प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा और कर्त्तव्य समझना उन्हें अन्न-जल देना ही भूत यज्ञ या वैश्वदेव यज्ञ कहलाता है. अर्थात जो कुछ भी भोजन कक्ष में भोजनार्थ सिद्ध हो उसका कुछ अंश उसी अग्नि में होम करें जिससे भोजन पकाया गया है।
अर्जित धन को सत्कर्मों में लगाने को ‘यज्ञ’ कहा गया है. यज्ञ का अर्थ केवल अग्नि को समिधा समर्पित करना मात्र नहीं है.भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, यज्ञशिष्टाशिनः संतो कारणात् यानी, हम जो अर्पित करते हैं, उसमें देवता, ऋषि, पितर, पशु-पक्षी, वृक्ष-लता आदि का भाग है।
हम इन सभी से कुछ न कुछ प्राप्त करते हैं, अतः इन सभी के ऋणी हैं. अतएव इनका भाग इन्हें यथायोग्य दे देना यज्ञ है. इसलिए प्राचीन काल से ही भोजन तैयार करते समय पहली रोटी गाय के लिए, एक रोटी कुत्ते आदि मूक प्राणी के लिए रखने का प्रचलन है. कहा गया है, ‘जो मनुष्य अपनी अर्जित आय में से सभी का भाग देने के बाद बचे हुए अन्न को खाता है, वह अमृत खाता है. जो ऋण न चुकाकर, धन को अपना समझ अकेला हड़प जाता है, वह पाप का भागी बनता है।’