वर्तमान के समय में किसी भी चीज़ की मौलिकता को समझना उतना ही जरूरी हैं, जितना की उस विषय से जुड़ी किसी जटिल बातों को समझना। अकसर हम यहीं गलती कर बैठते हैं और किसी भी विषय से जुड़ी सरल बातों को समझने से पहले हम उसकी जटिल बातों को समझने का प्रयास करते रहते हैं। यही कारण है कि, बाद में हमें वो विषय कठिन या उबाऊ लगने लगता है। तो, ऐसी परिस्थितियों से बचने का क्या उपाय है? हम चीजों की जड़ तक पहुंचे! जैसे की आज हम प्रोटोन (Proton Full Details in Hindi) से जुड़ी मूल भूत बातों को समझने का प्रयास करेंगे।
आप को एक खास बात बताता हूँ, हमारा ये जीवन और हमारा ये ब्रह्मांड एक-दूसरे परिपूरक है। यानी दोनों ही एक दूसरे से इस तरह जुड़े हुए हैं कि, इन्हें कभी अलग-अलग चीजों कि तरह नहीं देखा जा सकता हैं। हम सभी इस ब्रह्मांड का ही हिस्सा हैं और जो मौलिक कण (Fundamental Particles) हमारे शरीर में हैं, वही मौलिक कण इस ब्रह्मांड में भी मौजूद है। इसलिए अगर हम हमारे शरीर को ही अच्छे से पहचान लें, तो एक हिसाब से हम हमारे ब्रह्मांड को ही पहचान लेंगे। इलेक्ट्रान, प्रोटोन (proton in hindi) और न्यूट्रान जैसे मौलिक कण हमारे शरीर के अंदर भी हैं और पूरे ब्रह्मांड में भी फैले हुए हैं।
तो, क्यों न आज हम हमारे जड़ या मौलिकता को समझ लें!
विषय - सूची
प्रोटोन किसे कहते हैं? – Proton In Hindi :-
प्रोटोन (proton in hindi) के संज्ञा कि बात करें तो, “ये एक स्थिर पॉज़िटिव सबअटॉमिक पार्टिकल हैं जिसके पास एक इलेक्ट्रॉन के ही जितना चार्ज होता हैं, परंतु सकारात्मक चार्ज (Positive Charge)”। इसका वजन लगभग 1.67262 × 10−27 kg के जितना है, जो कि एक इलेक्ट्रॉन के वजन के मुक़ाबले 1,836 गुना ज्यादा है। ज़्यादातर ये कण चार्ज रहित कण न्यूट्रान के पास मौजूद रहते हैं और एक परमाणु का हिस्सा होते है। इसके अलावा प्रोटोन और न्यूट्रान दोनों ही कणों को आपस में मिला कर “न्यूक्लियंस” (Nulcleons) का नाम दिया जाता है।
मित्रों! अपवाद है कि, हाईड्रोजेन न्यूक्लियस को छोड़ कर बाकी सब एटम के अंदर ही प्रोटोन और न्यूट्रान को एक साथ देखा जा सकता है। इसके अलावा आप लोगों को बता दूँ कि, आम तौर पर प्रोटोन और न्यूट्रान परमाणु के न्यूक्लियस के अंदर ही होते हैं। इसलिए कई बार इन्हें न्यूक्लियस का भी अहम हिस्सा कहते हैं। हालांकि! न्यूक्लियस के चारों तरफ इलेक्ट्रॉन भी मौजूद रहते हैं। इसके अलावा किसी भी पदार्थ के लिए प्रोटोन कि संख्या काफी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
क्योंकि प्रोटोन के संख्या से ही तत्व (Element) की अवस्थिति पीरिओडिक टेबल में निर्धारित होती है। कहने का मतलब ये है कि, प्रोटोन नंबर से ही हम एलिमैंट की स्थिति पिरिओडिक टेबल में दर्ज कर सकते हैं। प्रोटोन नंबर को कई बार “अटॉमिक नंबर (Atomic Number)” भी कहते हैं, जिसे “Z” शब्द से सूचित किया जाता है। जब किसी भी पदार्थ के अंदर इलेक्ट्रान और प्रोटोन की संख्या समान हो जाती हैं, तब वो पदार्थ चार्ज के हिसाब से न्यूट्रल (Neutral) हो जाता है। या आप कह सकते हैं कि, वो इलेक्ट्रिकलि निष्क्रिय होता है।
प्रोटोन को किसने और कैसे खोजा? – Who Discovered Proton In Hindi? :-
लोगों के मन में ज़्यादातर यहीं सवाल होता है कि, प्रोटोन (proton in hindi) को आखिर किसने (who discovered proton in hindi) और कैसे खोजा? वैसे अगर आप लोगों ने स्कूल के दिनों में पढ़ा होगा तो, आप लोगों को याद होगा कि प्रोटोन को “Ernest Rutherford” ने खोजा था। साल 1909 कि बात है जब इस कीवी वैज्ञानिक ने पहली बार प्रोटोन के बारे में दुनिया भर को खोज कर के बताया था। मित्रों! 19 वीं और 20 वीं ही वही दौर हैं जिसमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रान जैसे कणों को खोजा गया था।
खैर रदरफोर्ड ने अपने मशहूर “Gold Foil” एक्सपेरिमेंट में प्रोटोन को खोजा था। तो, सवाल है कि, आखिर ये गोल्ड फोइल एक्सपेरिमेंट क्या है? मित्रों! इसी से ही तो हम प्रोटोन के आविष्कार के बारे में जान पाएंगे। इस एक्सपेरिमेंट में रदरफोर्ड ने बहुत ही पतली सोने के चादर पर “अल्फा पार्टिकल्स” को टक्कर करवाया। इस एक्सपेरिमेंट में रदरफोर्ड ने हाइड्रोजन के परमाणु को इस्तेमाल किया था और बाद में हाइड्रोजन न्यूक्लियस को ही प्रोटोन का नाम दिया।
मित्रों! इस एक्सपेरिमेंट से पहले किसी भी पदार्थ के अंदर मौजूद न्यूक्लियस की संरचना के बारे में किसी को कुछ नहीं पता था। लोगों को पदार्थ के न्यूक्लियस के गुण तथा इसके अंदर मौजूद मौलिक कणों के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं था। इसलिए 1898 में एक वैज्ञानिक ने हाइड्रोजन के न्यूक्लियस यानी प्रोटोन को एक हिसाब से “आयोनाइज़्ड़ गैस स्ट्रीम” के तौर से ही दर्शाया था। बाद में 1920 में रदरफोर्ड ने इसे एक कण बता कर प्रोटोन का नाम दिया।
शोध में कैसे हुई प्रोटोन की खोज? :-
अब ऊपर हमने प्रोटोन (proton full details in hindi) किसने खोजा और कब खोजा, उसके बारे में जान लिया। परंतु अब हम लेख के इस भाग में रदरफोर्ड के द्वारा किए गए शोध को थोड़ा विस्तार से देखेंगे। जैसे कि मैंने पहले से ही बता रखा है कि, रदरफोर्ड ने पतली सोने के चादर पर अल्फा पार्टिकल्स को टकराया था। परंतु, सवाल उठता है कि, क्या यहीं पर ये शोध समाप्त हो जाता है? क्या केवल इतने से ही शोध से प्रोटोन को खोज लिया गया था? तो, मित्रों आपको बता दूँ कि, इतने में शोध खत्म नहीं होता और इतने ही शोध से रदरफोर्ड ने प्रोटोन को नहीं खोजा था।
अल्फा पार्टिकल्स को सोने के चादर पर टकरा कर टक्कर के बाद इधर-उधर बिखर चुके अल्फा पार्टिकल्स को रदरफोर्ड ने “ज़िंक सल्फाइड़” के स्क्रीन पर पकड़ के रखा। मित्रों! इसी के बाद से ही ये शोध असल में शुरू होता हैं, जिसके आधार पर रदरफोर्ड ने प्रोटोन का आविष्कार किया था। मैंने नीचे कुछ विंदुओं को आप लोगों को बताया हैं, जिसको कि रदरफोर्ड ने अपने शोध में ढूंढा था।
- ज़्यादातर अल्फा पार्टिकल्स चादर के मध्य से हो कर गुजर गए।
- कुछ अल्फा पार्टिकल्स बहुत ही कम एंगल बनाकर बिखरे हुए थे।
- हर 20,000 में से सिर्फ 1 अल्फा पार्टिकल चादर से टकरा कर पीछे कि और उछल कर वापस आया था।
- परमाणु का ज़्यादातर हिस्सा खाली होता हैं।
- परमाणु का ज़्यादातर वजन और चार्ज केंद्र में स्थित एक छोटे से जगह पर सीमित है जिसे कि न्यूक्लियस कहा जाता हैं और इसी न्यूक्लियस के अंदर सकारात्मक चार्ज लिए प्रोटोन के कण होते हैं।
प्रोटोन के क्या-क्या गुण हैं? :-
अब जब हमने प्रोटोन (proton full details in hindi) के बारे में इतना कुछ जान लिया हैं, तो चलिये अब इस मौलिक कण के गुणों के बारे में भी जान लेते हैं। मित्रों! इस भाग में मैंने सबसे पहले प्रोटोन के भौतिक गुणों के बारे में बताया हैं। इसलिए आप सभी लोगों से अनुरोध हैं कि, इस भाग को आप जरा गौर से पढ़िएगा।
प्रोटोन के वजन कि बात करूँ तो, इसका वजन न्यूट्रान से थोड़ा ज्यादा हैं; परंतु इलेक्ट्रान के मुक़ाबले ये लगभग 1,836 गुना ज्यादा हैं। तो, आप सोच सकते हैं कि; इलेक्ट्रॉन प्रोटोन के सामने कैसा प्रतीत होता होगा। हालांकि! प्रोटोन का जो वजन हैं वो 1.6726 x 10^-27 kg होने के बाद भी काफी ज्यादा कम होता हैं। प्रोटोन के पास 1.602×10−19 C का चार्ज रहता है। जो कि एक इलेक्ट्रान के जितना ही हैं, परंतु सकारात्मक ढंग से।
मित्रों! इस कण से जुड़ी और एक बहुत ही खास बात ये हैं कि, बैसिक कण कहे जाने वाले प्रोटोन को हम और भी छोटे-छोटे कणों में बदल सकते हैं। मित्रों! प्रोटोन के इन छोटे-छोटे कणों को “क्वार्क्स” (Quarks) कहते हैं। ये क्वार्क्स आपस में मिल कर प्रोटोन और न्यूट्रान जैसे कणों को बनाते हैं। एक प्रोटोन के अंदर दो अपर क्वार्क्स और एक डाउन क्वार्क रहता हैं जो कि ग्लुओंस नाम के बॉन्ड से आपस में बंधे हुए रहते हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
लोगों के मन में अब ये सवाल आ रहा होगा कि, आखिर प्रोटोन (proton full details in hindi) का काम न्यूक्लियस में क्या होता होगा? मित्रों! प्रोटोन का मुख्य काम न्यूक्लियस को आबद्ध (Bind Together) करके रखने का होता हैं। इसके अलावा वो न्यूक्लियस के चारों तरफ घूम रहे इलेक्ट्रान के कणों को अपनी और आकर्षित कर के निर्धारित किए गए शेल में रखने का होता हैं। इससे परमाणु के अंदर स्थिरता और संतुलन बना रहता हैं।
किसी भी पदार्थ के अंदर मौजूद प्रोटोन कि संख्या उस पदार्थ के गुणों को दर्शाते है, तथा उसके स्थिति को पिरियोडिक टैबल पर सुनिश्चित करते हैं। इसलिए प्रोटोन कि संख्या के अनुसार कोई भी तत्व/ पदार्थ अपने स्थिति को अस्तित्व में ला पाता हैं। इसलिए आप कह सकते हैं कि, बिना प्रोटोन के पदार्थ कि आंतरिक परमाणु संरचना काफी ज्यादा उथल-पुथल और अव्यवस्थित रहता। तथा पदार्थ कभी पीरियोडिक टेबल में अपना स्थान नहीं चुन पाता।
प्रोटोन को कई सारे उच्च कोटी के वैज्ञानिक शोध के लिए इस्तेमाल किया जाता है। स्विट्ज़रलैंड में स्थित “Large Hadron Collider” में भी इसी प्रोटोन को बहुत ही स्पीड में रख कर एक-दूसरे से टकराया जाता है और बाद में इस टक्कर को ही वैज्ञानिक काफी ज्यादा विश्लेषण कर के पढ़ाई करते हैं। मित्रों! खास बात ये है कि, प्रोटोन के इन्हीं टक्कर को अध्ययन कर के “बिग-बैंग” जैसे बड़े-बड़े घटनाओं से परदा उठाने कि कोशिश किया जा रहा है।