पूर्वजन्म का अर्थ होता है पुराना या पिछला जन्म (Previous BIrth) , सनातन धर्म(Sanatan Dharma) में सिंद्धात है कि आत्मा कभी नहीं मरती है वह बस एक शरीर से निकलकर किसी दूसरे शरीर में प्रवेश करती है।
नया जन्म लेने के बाद पिछले जन्म कि याद बहुत हि कम लोगो को रह पाती है। इसलिए ऐसी घटनाएं कभी कभार ही सामने आती है।लेकिन यदि कोई इंसान चाहे तो वो अपने पूर्वजन्म की घटनाओं (Rebirth In Hindi) को देख सकता है। माना जाता है कि मनुष्य अगर प्रयास करे वर्तमान जीवन से पहले के 9 जन्मों तक के बारे में जान सकता। हालांकि इसके लिए एक प्रशिक्षित गुरु और कठिन अभ्यास की जरुरत पड़ती है। इसके लिए मुख्यतः तीन तरीके है जो इस प्रकार है-
सम्मोहन से पूर्वजन्म का सफर
पूर्वजन्म की घटनाओं का साक्षात्कार करने के लिए सम्मोहन का भी प्रयोग किया जाता है। भारतीय ऋषियों ने सम्मोहन को योगनिद्रा कहा है। सम्मोहन की प्रकिया आप खुद भी कर सकते हैं इसे स्वसम्मोहन कहा जाता है।
दूसरों के द्वारा भी आप सम्मोहन की स्थिति में पहुंच सकते हैं इसे परसम्मोहन कहा जाता है और तीसरा तरीका है योग है जिसमें त्राटक द्वारा व्यक्ति सम्मोहन की स्थिति में पहुंच जाता है।
सम्मोहन के द्वारा आप गहरी निद्रा में पहुंच जाते हैं और अपने पूर्वजन्म की स्मृतियों को टटोल सकते हैं।
इसके लिए आपको किसी शांत कमरे में पलथी मारक बैठना चाहिए इसके बाद अपना ध्यान दोनों भौहों के मध्य में केन्द्रित करें। आपको चारों ओर अंधेरा दिखेगा और एक गुदगुदी सी महसूस होगी। लेकिन अपना ध्यान केन्द्रित रखें।
नियमित अभ्यास से अंधेरा छंटने लगेगा और उजला बढ़ने लगेगा और आप इस शरीर की सीमाओं से पार निकलकर पूर्वजन्म की घटनाओं में झांकने लगेंगे।
कायोत्सर्ग द्वारा प्रवेश करें पूर्वजन्म (Previous Birth) में
पूर्वजन्म की यादों में प्रवेश करने का एक साधन कायोत्सर्ग है। अपने नाम के अनुसार इस प्रक्रिया में व्यक्ति को अपनी काया यानी शरीर की चेतना से मुक्त होना पड़ता है। कायोत्सर्ग शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव मुक्त करने की प्रक्रिया है।
इसमें शरीर की चंचलता दूर होकर शरीर स्थिर होने लगता है। शरीर का मोह और सांसारिक बंधन ढीला पड़ने लगता है और शरीर एवं आत्मा के अलग होने का एहसास होता है। इसके बाद व्यक्ति पूर्वजन्म की घटनाओं के बीच पहुंच जाता है।
अनुप्रेक्षा से पूर्वजन्म का ज्ञान
पूर्वजन्म (Previous Birth) की स्मृतियों में प्रवेश करने का एक तरीका अनुप्रेक्षा है। जैन परंपरा में बताया गया है कि अनुप्रेक्षा ऐसी प्रक्रिया है जिसके प्रयोग से व्यक्ति स्वतः सुझाव और बार-बार भावना से पूर्वजन्म की स्मृति में प्रवेश कर जाता है। अनुप्रेक्षा से भावधारा निर्मल बनती है। पवित्र चित्त का निर्माण होता है।
साधन ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि उसे ज्ञात भी नहीं रहता कि वह कहां है। अतीत की घटनाओं का अनुचिंतन करते-करते वे स्मृति पटल पर अंकित होने लगती है और साधक उनका साक्षात्कार करता
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