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डीएनए परीक्षण वाकई में कैसे की जाती है? – How DNA Testing Really Works?

एयर इंडिया-171 क्रैश में आखिर कैसे की गयी थी डीएनए टेस्टिंग!

आज के इस आधुनिक युग में विज्ञान काफी आगे बढ़ चुका हैं। हम लोगों ने आज-तक विज्ञान के कई चमत्कार देखें हैं और इसकी हम पूरी तरीके से सराहना भी करते हैं। परंतु क्या आपको कभी DNA टेस्टिंग (How DNA Testing Really Works) जैसे, जटिल विज्ञान के कृतियों के बारे में पता हैं? शायद नहीं, क्योंकि ज़्यादातर लोगों को इसके बारे में ऊपर-ऊपर से सुनने को तो मिलता हैं; परंतु अंदर से इसके बारे में हमें कुछ नहीं पता होता हैं। आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि, इंटरनेट पर भी आप लोगों को इसके बारे में ज्यादा कुछ पढ़ने को नहीं मिलेगा (सिवाए हमारे वैबसाइट के)।

डीएनए परीक्षण वाकई में कैसे की जाती हैं? - How DNA Testing Really Works?
एयर इंडिया-171 क्रैश। | Credit: CNBC.

मित्रों! शायद आप लोगों ने आखरी बार डीएनए टेस्टिंग (How DNA Testing Really Works) की बात एयर इंडिया-171 के दुखद हादसे में सुना होगा। जहां, पीड़ित व्यक्तियों की पहचान डीएनए टेस्टिंग से की जा रहीं थी। हालांकि! कई सारे न्यूज चैनलों में इस चीज के बारे में काफी ज्यादा चर्चाएँ तो हो रहीं थी, परंतु इसके बारे में आप लोगों को कोई सरल तरीके से नहीं बताएगा, जितना आज हम आप लोगों को समझाएँगे।

तो, क्या आप आज रैडि हैं? एक अलग ही तरीके के लेख को पढ़ने के लिए? अगर हाँ, तो लेख में आगे बढ्ने से पहले हमारे वैबसाइट को बूक-मार्क कर लीजिए ताकि आप लोगों को भी इस तरीके के लेख आगे पढ़ने को मिलते रहें। तो, चलिये अब लेख में आगे बढ़ते हुए; इसके असल मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

डी.एन.ए टेस्टिंग क्या है? –  How DNA Testing Really Works! :-

बहुत ही सरल भाषा में अगर मैं आप लोगों को समझाने की कोशिश करूँ तो, डीएनए टेस्टिंग (How DNA Testing Really Works) एक तरीके से एक बहुत ही आधुनिक तकनीक हैं; जिसके जरिये हम किसी भी बहुत बड़े दुर्घटना से सामूहिक रूप से जान गवाने वाले पीड़ितों की पहचान कर सकते हैं। पिछले ही महीने, हम लोगों ने इसके असल प्रयोग के बारे में देखा हैं। दुखद एयर इंडिया क्रैश के कारण लगभग 260 लोगों की जान चली गयी और विमान में इस्तेमाल होने वाले ईंधन के कारण लगभग हर एक पीड़ित का शरीर बाहरी रूप से पहचानने योग्य नहीं रहा। बताते हैं कि, हादसे में पीड़ितों का शरीर इतना जल गया था कि; वो किसी भी रूप में पहचान करने के लिए योग्य नहीं था।

डीएनए परीक्षण वाकई में कैसे की जाती हैं? - How DNA Testing Really Works?
डीएनए टेस्ट। | Credit: SKY News.

इसलिए पीड़ितों की पहचान के लिए, सरकार ने डीएनए टेस्टिंग करने का ऐलान किया। यहाँ एक जरूरी बात बता दूँ कि, डीएनए टेस्टिंग के लिए पीड़ितों के परिवार सदस्यों की मदद लगती हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार क्रैश के लगभग 2 हफ्तों बाद, हर एक पीड़ित की पहचान डीएनए टेस्टिंग के जरिये सफल रूप से किया गया। तो, अब आप समझ ही रहें होंगे कि; ये टेस्टिंग किसी भी हादसे में कितनी महत्वपूर्ण हैं।

पूरे विश्व में किसी भी बड़े हादसे में जान गवाने वाले पीड़ितों की पहचान डीएनए टेस्टिंग के जरिये ही संभव हो पाता हैं। इसलिए इस प्रक्रिया को प्राकृतिक आपदा, आतंकवाद या किसी भी तरह के हादसे में पीड़ितों की पहचान के लिए इस्तेमाल किया जाता हैं। अब यहाँ काफी सारे लोगों के मन में ये सवाल जरूर ही आ रहा होगा कि, आखिर ये प्रक्रिया कैसे कि जाती हैं?

आखिर डीएनए टेस्टिंग कैसे की जाती हैं? :-

आप लोगो के तरह ही मेरे मन में भी ये सवाल हमेशा से आता था कि, आखिर किस तरीके से डीएनए टेस्टिंग (How DNA Testing Really Works) को किया जाता होगा। और शायद ये समय बिलकुल सही हैं, जब हम इसके बारे में कुछ जान लें। मूलतः डीएनए टेस्टिंग के लिए दो तरह के सैंपल का इस्तेमाल किया जाता हैं, पहला हैं पोस्टमोर्टम और दूसरा हैं एंटी-मोर्टम। जब भी डीएनए टेस्टिंग की प्रक्रिया शुरू होती हैं, तब इसमें कई चरण होते हैं। कुछ एक्स्पर्ट्स हादसे के जगह से बायोलोजिकल सैंपल्स इक्कठा करते हैं (दाँत के अवशेष आदि), तो कुछ एक्स्पर्ट्स पीड़ित के कपड़े तथा उसके फिंगरप्रिंट और सामान के बारे में पता लगाते हैं।

Blood test tubes. Senior female scientist examining blood test tubes at her laboratory dna testing analysis profession specialist clinician experienced medicine healthcare doctor concept copyspace
DNA प्रोफाइलिंग। | Credit: Endeavour DNA.

वैज्ञानिकों के अनुसार डीएनए सैंपल शरीर के किसी भी हिस्से से लाए गए टिसु से संभव हो सकता हैं। बहरहाल इसके लिए सैंपल से डीएनए को निकालने के लिए उसे प्रयोगशाला में भेजा जाता हैं। इस प्रक्रिया के दौरान ये बिलकुल भी संभव हैं कि, इक्कठा किए गए सैंपल दूषित हो जाएँ। इसलिए इसके लिए काफी बड़े-बड़े एक्स्पर्ट्स की जरूरत रहती हैं। सैंपल की अच्छी स्थिति में विश्लेषण ही, इसके सफल होने का राज हैं। इसलिए किसी भी तरीके से डीएनए सैंपल नष्ट होना नहीं चाहिए।

अतीत में ऐसे कई सारे हादसे हुए हैं, जहां पर पीड़ित का शरीर या उससे लिया गया डीएनए सैंपल बाहरी कारकों से काफी ज्यादा प्रभावित हो कर खराब हो गया हैं। इसलिए किसी भी डीएनए आनालाइसिस में सबसे जरूरी बात होती हैं, सैंपल को किस तरीके से और किस वातावरण में रखा गया हैं। क्योंकि इससे डीएनए रिपोर्ट्स में काफी ज्यादा असर पड़ सकता हैं। मित्रों! आप लोगों को इसके बारे में क्या लगता हैं, कमेंट कर के जरूर ही बताइएगा।

काफी जटिल है ये प्रक्रिया! :-

जैसा की मैंने आप लोगों को पहले ही कहा हैं, डीएनए टेस्टिंग की प्रक्रिया काफी ज्यादा जटिल होता हैं। इसलिए मूलतः खून या सॉफ्ट टिसु के सैंपल को ही डीएनए टेस्टिंग के लिए इस्तेमाल में लिया जाता हैं। हालांकि! अगर किसी हादसे में एक से ज्यादा लोगों की जान गई हैं और हादसे की तीव्रता काफी ज्यादा हैं तो; उस स्थिति में शरीर के शख्त हिस्से जैसे हड्डी या दाँतों का सैंपल लिया जाता हैं। आप लोगों की अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, पिछले महीने हुए प्लेन क्रैश जैसी दुर्घटना में ये काफी संभव है कि; कई सारे लोगों का अवशेष एक-साथ मिल जाए। जिससे डीएनए टेस्टिंग की प्रक्रिया काफी ज्यादा मुश्किल हो जाता हैं।

Fingerprint.
फिंगेरप्रिंट बायोसाइंस। | Credit: Integra Bioscience.

सैंपल इक्कठा करने के बाद, हर एक पीड़ित के डीएनए सैंपल की प्रोफाइलिंग की जाती हैं; जिसमें पीड़ित के डीएनए की बारीकी से जांच होते हैं। प्रोफाइलिंग के बाद डीएनए के कुछ चुनिंदा हिस्सों को आकार के अनुसार अलग-अलग कर के; उसे आसानी से देखने लायक क्रम में सजाया जाता हैं। इसके बाद इस डीएनए प्रोफाइलिंग को पीड़ित के व्यक्तिगत चीज़ें (जैसे टूथ ब्रश, हेयर कोम्ब, रेजर) आदि से साझा किया जाता हैं। इस प्रक्रिया को एंटी-मोर्टम कहा जाता हैं। इसके अलावा पीड़ित के परिवार के सदस्य के डीएनए सैंपल से भी मैच करवाया जाता हैं।

अगर हम डीएनए टेस्टिंग (How DNA Testing Really Works) के रिपोर्ट्स की बात करें तो, ये काफी ज्यादा सटीक और सफल रहता हैं। यानी इसके अलावा शायद ही आज कोई ऐसा सबूत होगा, जो की इसे गलत साबित कर सके। इसलिए कई बार बड़े-बड़े हादसों और क्राइम में डीएनए टेस्टिंग को इस्तेमाल में लिया जाता हैं। बताते हैं कि, डीएनए टेस्टिंग के जरिये जुड़वा बच्चों को भी हम अलग-अलग पहचान सकते हैं। तो, इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि; ये प्रक्रिया आखिर कितनी ज्यादा भरोसेमंद हो सकती हैं।

निष्कर्ष – Conclusion :-

हालांकि! ऊपर हम लोगों ने पूरे लेख में ये देखा कि, डीएनए टेस्टिंग (How DNA Testing Really Works) वाकई में एक बहुत ही भरोसेमंद और अच्छी तकनीक हैं। परंतु क्या आप जानते हैं, इसके अपने ही कुछ खामियाँ भी हैं! कई बार इसे सफल तरीके से करने के लिए कई अत्याधुनिक उपकरण और अच्छे तरीके से इक्कठा किया गए सैंपल की जरूरत पड़ते हैं। साथ ही अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, इस प्रक्रिया में समय और पैसा दोनों ही काफी ज्यादा लगता हैं। कई बार सैंपल इतनी ज्यादा जल चुकी होती हैं कि, उसमें जांच करने लायक कोई डीएनए बचता ही नहीं हैं।

Scientist viewing DNA sample results on screen during clinical experiment.
DNA आनालाइसिस। | Credit: How Stuff Works.

मित्रों! डीएनए टेस्टिंग के दौरान किस तरीके से इस प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा हैं। ये एक बहुत ही बड़ी बात हो जाती हैं, क्योंकि ये एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया हैं। जो कि, कई बारे बड़े-बड़े मानवधिकार वाले प्रश्न खड़ा कर देता हैं।

Bineet Patel

मैं एक उत्साही लेखक हूँ, जिसे विज्ञान के सभी विषय पसंद है, पर मुझे जो खास पसंद है वो है अंतरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान, इसके अलावा मुझे तथ्य और रहस्य उजागर करना भी पसंद है।

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