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ब्रिटिश नागरिक एचआईवी वायरस से मुक्त होन वाला दूसरा व्यक्ति बना

HIV Virus Case In Hindi

HIV Virus Case In Hindi – बारह साल पहले  पहली बार दुनिया में एक व्यक्ति को स्टेम सेल आधान (Stem cell transfusion) की मदद से खतरनाक एचआईवी वायरस (HIV Virus)  से बचाया गया था। वो इस तकनीक से एचआईवी से कार्यात्मक रूप से ठीक हो गया था। पर दुर्भाग्य से इस आश्चर्यजनक सफलता को दोहराना हमारे लिए अब बहुत कठिन साबित हुआ है।

पर अब दूसरा ऐसा मामला सामने आया है जो स्टेम सेल आधान की इस तकनीक से  एचआईवी  से दूर होता हुआ देखा गया है। ये ब्रटिश नागरिक ट्रीटमेंट के बाद पिछले 18 महीनों से ठीक है और इसके रक्त में एक भी एचआईवी  नहीं मिला है । इस सफलता से अब वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इससे आगे हम एचआईवी  वायरस से लड़ पायेंगे।

CCR5 White Blood Cell Receptor

CCR5 एक सफेद रक्त कोशिका रिसेप्टर है जो एचआईवी -1 वायरस के लिए प्रवेश बिंदु के रूप में कार्य करता है, ज्यादातर  एचआईवी -1 वायरस के लिए इसे ही जिम्मेदार माना जाता है। हालांकि CCR5 जीन के Δ32 म्यूटेशन की दो प्रतियों वाले लोग एचआईवी -1 संक्रमण के प्रतिरोधी होते हैं।  चूंकि Δ32 दुर्लभ है, इसकी प्रतियां को अपने माता-पिता दोनों से आनुवंशिक रूप से प्राप्त करना एक लॉटरी जीतने जैसा है।  वैज्ञानिक हैरान हैं और सोच रहे हैं कि अगर इस  Δ32 की प्रतियों को स्टीम सेल के माध्यम से किसी में डाल दें तो शायद हम  एचआईवी -1  वायरस को रोक सकते हैं। 

“बर्लिन रोगी”

इस दृष्टिकोण ने 2007 में उल्लेखनीय मामले को जन्म दिया, जहां टिमोथी रे ब्राउन, जिसे “बर्लिन रोगी” के रूप में जाना जाता था, को कार्यात्मक रूप से एक एचआईवी संक्रमण से ठीक किया गया था जो कि उन्हें कम से कम 13 वर्षों से था। ब्राउन को स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करके, अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावी ढंग से प्रत्यारोपण करने के लिए इलाज किया गया था। हालांकि उन्हें पहले से कैंसर था तो उनकी कीमोथेरेपी एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं के साथ हस्तक्षेप कर रही थी , जिसे बाद में उन्हें लेना बंद कर दिया, जिसके बाद आज तक उन्हें दुबारा इस वायरस का सामना नहीं करना पड़ा है। 

“London patient”

बर्लिन रोगी के बाद एक नया मामला सामने आया और इसे “London patient” का नाम दिया गया, इस मरीज को 2003 में ये पता चला कि इसे एचआईवी -1 वायरस है और 2012 तक वो इसका उपचार परंपरागत तरीके से एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं के साथ करता रहा। इसी वर्ष इस रोगी को Hodgkin’s Lymphoma  नाम का ब्लड कैंसर हो गया जिसके बाद उसका एंटीरेट्रोवाइरल उपचार रोक दिया गया और कैंसर के निदान के लिए  कीमोथेरेपी दी गई।  वायरस दुबारा ना बनें तो उसे Δ32 stem cell की दो प्रतियों  का प्रत्यारोपण किया गया  जिसके साथ-साथ उसकी एंटीरेट्रोवाइरल दवाई भी चलती रही। 

एचआईवी -1 वायरस की श्वेत रक्त कोशिकाओं में प्रवेश करने की क्षमता CCR5 रिसेप्टर पर निर्भर करती है।  Via : Shutterstock

18  महीनों से HIVवायरस नहीं पनपा

इसके बाद 16 महीनों तक उसे किसी भी तरह का कोई वायरस नहीं पनपा तो उसका एंटीरेट्रोवाइरल उपचार रोक दिया गया।   अब 18 महीनों तक उसे एचआईवी -1 वायरस से कोई खतरा नहीं है, वैज्ञानिक मानते हैं कि इससे उन्होंने इस मरीज के एचआईवी -1 वायरस को लगभग खत्म कर दिया है। 

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और स्टडी के मुख्य लेखक रवींद्र गुप्ता ने कहा, “एचआईवी वायरस पीड़ित मरीज के साथ इलाज का यह तरीका अपनाते हुए हमने साबित कर दिया कि पहला मामला कोई अनोखा नहीं था.” उन्होंने लिखा है कि अब तक एचआईवी से निपटने का तरीका सिर्फ दवाइयों को ही माना जाता है. वायरस को शरीर के अंदर दबाए रखने के लिए मरीज को दवाएं लेनी पड़ती है. गुप्ता के मुताबिक, “यह विकासशील देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है, जहां लाखों लोगों के पास इलाज का कोई साधन ही नहीं है।”

– मानव जीन में बदलाव करने वाली तकनीक CRISPR (CRISPR-Cas9) क्या होती है?

Shivam Sharma

शिवम शर्मा विज्ञानम् के मुख्य लेखक हैं, इन्हें विज्ञान और शास्त्रो में बहुत रुचि है। इनका मुख्य योगदान अंतरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान में है। साथ में यह तकनीक और गैजेट्स पर भी काम करते हैं।

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