Heart Transplant – मेडिकल साइंस में आज भी अंग प्रत्यर्पण के लिए अंगदाताओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है। पर अब सर्जनों और वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है जिसमें उन्होंने सुअर के दिल को एक बंदर में प्रत्यर्पण किया और नतीजा चौकाने वाला था। सूअर के दिल को लंगूर में सफलतापूर्वक प्रत्यर्पित कर जल्द ही सुअरों का दिल इंसानों में धड़काने की संभावना भी जगा दी है।
समाचार पत्रिका डॉयचे वेले से बातचीत के कुछ अंश –
डॉयचे वेले: पहली बार लंगूर के शरीर में सूअर के दिल का प्रत्यर्पण उम्मीद जगाता है कि यह इंसान के साथ भी संभव हो सकेगा. सवाल है कि जानवरों में सूअर को ही डोनर के रूप में क्यों चुना गया?
ब्रूनो राइषार्ट: यहां नैतिकता अहम है. हम सुअरों को लंबे समय से खा रहे हैं. इन्हें मारने को लेकर समाज में स्वीकार्यता भी है. एक सूअर हर चार महीने में बच्चे पैदा करने की स्थिति में होता है. इतना ही नहीं जन्म के छह महीने बाद ही सूअर प्रजनन के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं. वहीं सूअर का दिल इंसान के दिल से काफी मिलता-जुलता है. वैसे भी पिछले 40 सालों से इंसानों के शरीर में सूअर के हृदय के वॉल्व का इस्तेमाल तो हो ही रहा है।
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इस प्रक्रिया अंग लेने वाले के रूप में लंगूर को ही क्यों चुना गया?
ये प्रशासन की मांग थी. उनका कहना था कि प्रत्यर्पण सूअर या कुत्ते के शरीर में नहीं किया जाना चाहिए. इसके बजाय किसी ऐसे को चुना जाना चाहिए जो जैविक रूप से इंसानों के करीब हो ताकि यह समझा जा सके कि इस तरह की प्रक्रिया इंसानों के साथ कितनी सफल होगी।
क्या इस प्रक्रिया में किसी भी साधारण सूअर को बतौर डोनर चुना जा सकता है?
सूअर का दिल इंसान स्वीकार करें, इसके लिए पहले डोनर के अंग को इसके अनुकूल बनाना होगा. यही कारण है कि प्रत्यर्पण से पहले सूअर के दिल में अनुवांशिक रूप से बदलाव किया जाता है.
इस तरह के प्रत्यर्पण से क्या फायदा होगा?
सबसे बड़ी बात तो यह है कि इससे अंगदाताओं की भारी कमी की समस्या में लाभ मिलेगा.
क्या इसे सफलता का क्षण कहा जा सकता है?
कुछ और भी सफलताएं मिलनी चाहिए. मुझे डर भी है. दरअसल अब हमें पैसा चाहिए, क्योंकि इस तरह के प्रयोग महंगे हैं. हमें निवेशक चाहिए, और यूरोप में निवेशक खोज पाना बहुत मुश्किल है. जर्मन रिसर्च फाउंडेशन ने अब तक काफी वित्तीय सहायता दी है. लेकिन आगे की पायलट स्टडी के लिए हमें अतिरिक्त धन, साधन के साथ-साथ अस्पताल भी चाहिए।
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