जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering in Hindi) सही या गलत? इस विषय पर ना सिर्फ सामान्य व्यक्तियों में बल्कि वैज्ञानिकों के बीच भी काफी मतभेद है | हम अक्सर विज्ञान परीकथाओ या उनपर आधारित हॉलीवुड फिल्मो के आधार पर यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं की जेनेटिक इंजीनियरिंग के द्वारा किसी दिन ऐसे जीव उत्पन्न हो जायेंगे जो पुरे मानव जाति को नष्ट कर देंगे |
हालांकि ये मात्र कल्पना है पर अगर इस कल्पना का एक अंश भी सच हो जाता है तो ये पुरे मानव जाति के लिए विनाशकारी होगा | ये ऐसा विषय है जिसपर तथ्यों से ज्यादा भ्रान्तिया फैली है | इसलिए इससे पहले की हम किसी निष्कर्ष पर पंहुचे, हमें इसके सम्बन्ध में पूरी जानकारी होना बहुत ही जरूरी है | तो चलिए आज इसी विवादित विषय के बारे में जानते हैं |
विषय - सूची
जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) की शुरुवात
इंसानी दिमाग खुराफाती होता है ! वाट्सन और क्रिक द्वारा डीएनए (DNA) के बारे में पूरी जानकारी दुनिया के सामने लाने से बहुत पहले से ही, डीएनए (DNA) पर अपनी आधी अधूरी जानकारी के आधार पर ही साइंस फिक्शन (Science Fiction) लेखकों द्वारा अपनी कहानियों में डीएनए को बदल कर, यानी जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering In Hindi) द्वारा कभी इंसान को सर्व शक्तिशाली तो कभी दानव बनाए जाने की कल्पना की जाने लगी |
“जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) ” शब्द पहली बार जैक विलियम्सन द्वारा उनके साइंस फिक्शन उपन्यास ड्रैगन आइलैंड में 1951 में प्रकाशित किया गया था, यानी आनुवंशिकता में डीएनए की भूमिका की पुष्टि होने से एक साल पहले और जेम्स वाटसन और फ्रांसिस क्रिक द्वारा डीएनए अणु में डबल-हेलिक्स संरचना के बारे में बताये जाने से दो साल पहले | हालांकि स्टेनली जी वेनबौम की विज्ञान कथा प्रोटियस आइसलैंड में जो की 1936 में प्रकाशित हुई थी में ही जेनेटिक इंजीनियरिंग की सामान्य अवधारणा की कल्पना की गई थी ।
डीएनए (DNA) क्या है ?
जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering in Hindi) को समझने से पहले हमे ये समझना जरूरी है की डीएनए (What Is DNA) क्या है | डीएनए या डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid) , मनुष्यों और लगभग सभी अन्य जीवों में पायी जाने वाला एक वंशानुगत ( Hereditary) तत्व है। किसी व्यक्ति के शरीर की लगभग हर कोशिका (Cells) में एक डीएनए होता है।
डीएनए में वो सारी आनुवंशिक जानकारी होती है जो जीवन के सभी रूपों को कार्य करने, बढ़ने और प्रजनन करने की अनुमति देती है। हम इन्सान या कोई भी जीव कैसा दिखेगा, उसका स्वाभाव कैसा होगा, उसके गुण क्या होंगे ये सारी जानकारी पहले से ही उसके डीएनए में संचित रहती है और ये सुचना डीएनए (DNA) के माध्यम से माता पिता से उनके संतान में स्थान्तरित होती जाती है |
वैसे तो कई लोगों का मानना है, कि अमेरिकी जीवविज्ञानी जेम्स वाटसन (James Watson) और अंग्रेजी भौतिक विज्ञानी फ्रांसिस क्रिक (Francis Crick) ने 1953 में डीएनए (DNA) की खोज की | पर वास्तव में, डीएनए (DNA in Hindi) की पहचान सबसे पहले 1860 के दशक में स्विस रसायनज्ञ फ्रेडरिक मिसेचर द्वारा की गई थी | जबकि वाट्सन और क्रिक ने डीएनए के डबल हेलिक्स मॉडल (Double -Helix Model) के बारे में बताया या यूँ कहिये की डीएनए की पूरी और सटीक जानकारी दुनिया के सामने लायी |
पृथ्वी पर डीएनए की उत्पत्ति कब और कैसे हुई ये भी एक बहस का विषय है और नासा द्वारा प्रायोजित शोधकर्ताओं के एक दावे ने इस बहस को और बढ़ा दिया है | उन्होंने ये दावा किया है कि डीएनए के कुछ मूल तत्व /अणु जो जीवन के लिए आनुवंशिक निर्देशों को वहन करते हैं, संभवतः अंतरिक्ष में बने थे। शोध इस सिद्धांत का भी समर्थन करता है कि अंतरिक्ष में बने ये तत्व उल्कापिंड और धूमकेतु के प्रभाव से पृथ्वी पर पहुंचने के कारण ही जीवन की उत्पत्ति संभव हो सकी ।
अनुवांशिक अभियांत्रिकी (Genetic Engineering in Hindi) क्यों खतरनाक है ?
जैसा की हमने पहले ही बताया डीएनए की खोज होने के पहले से ही, डीएनए को बदल कर इंसान के रूप, गुण, योग्यता को बदलने का सपना देखा जाने लगा था पर इस क्षेत्र में पहली सफलता मिली वर्ष 1974 में जब रुडोल्फ जेनिश्च ने एक डीएनए वायरस को चूहे के भ्रूण में शामिल करके पहला जेनेटिक रूप से संसोधित जानवर बनाया | हालाँकि रुडोल्फ जेनिश्च, जेनेटिक रूप से संसोधित इस चूहे के डीएनए को उसके बच्चो में स्थान्तरित करने में विफल रहे |
पर वहीँ दूसरी तरफ जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering in Hindi) की रेकोम्बिनेंट तकनीक विकसित करने वाले पहले व्यक्तियों में से एक पॉल बर्ग नाम के स्टैनफोर्ड के जैव रसायनविद भी थे। 1974 में अपने प्रयोगात्मक डिजाइन में, उन्होंने पहले चरण में बंदर के SV40 वायरस (SV40 Virus) के टुकड़े करने (वायरस से डीएनए को अलग करने में ) में सफलता पाई। फिर उन्होंने बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) लैम्ब्डा नाम के एक और वायरस के दोहरे हेलिक्स को अलग करने में सफलता पाई |
तीसरे चरण में, उन्होंने SV40 के डीएनए के साथ बैक्टीरियोफेज लैम्बडा के डीएनए को जोड़ने में सफलता पाई । अंतिम चरण में इस जेनेटिक मॉडिफाइड डीएनए को प्रयोगशाला में ई० कोलाई जीवाणु में संश्लेशित करना था । हालाँकि, यह अंतिम चरण का प्रयोग कभी पूरा नहीं हुआ | क्योंकि इस प्रयोग ने पुरे दुनिया में जेनेटिक इंजीनियरिंग के भविष्य को लेकर विवाद खड़ा कर दिया था | पूरी दुनिया के वैज्ञानिक दो खेमो में बंट गए पहले वो जो जेनेटिक इंजीनियरिंग को वरदान मानते थे और दुसरे जो इसे मानवता के लिए खतरनाक |
जैविक खतरा (Bio Hazard)
बर्ग ने अपने अंतिम कदम को कई साथी जांचकर्ताओं की दलीलों के कारण पूरा नहीं किया, जो अंतिम चरण से जुड़े जैविक खतरे (Bio Hazard) को लेकर चिंतित थे। क्योंकि SV40 वायरस को चूहों में कैंसर के ट्यूमर के कारण के लिए जाना जाता था, इसके अतिरिक्त, ई० कोलाई जीवाणु मानव आंतों में निवास करता है। अतः जांचकर्ताओं को डर था कि अंतिम चरण में क्लोन SV40 डीएनए बन जाएगा जो पर्यावरण में फ़ैल सकता है और मनुष्य को संक्रमित कर सकता है, जिससे वे लोग कैंसर के शिकार बन सकते थे।
इस संभावित खतरे को देखते हुए, प्रमुख शोधकर्ताओं के एक समूह ने नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस (NAS) के अध्यक्ष को एक पत्र भेजा। इस पत्र में, उन्होंने अनुरोध किया कि वह इस नई तकनीक के जैव-सुरक्षा प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक तदर्थ समिति नियुक्त करें।
1974 में आयोजित नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस, यू.एस.ए. के रिकॉम्बिनेंट डीएनए तकनीक की समिति ने यह निष्कर्ष निकाला कि इस मुद्दे को हल करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आवश्यक है और तब तक, वैज्ञानिकों को जेनेटिक इंजीनियरिंग से जुड़े प्रयोगों को रोक देना चाहिए।
असिलोमर सम्मेलन में स्थापित सिद्धांत
1975 में कैलिफोर्निया के मोंटेरी प्रायद्वीप पर असिलोमर सम्मेलन केंद्र में असिलोमर सम्मेलन आयोजित किया गया था। सम्मेलन का मुख्य लक्ष्य पुनः संयोजक डीएनए तकनीक द्वारा किये गए जेनेटिक इंजीनियरिंग प्रयोगों की वजह से होने वाले संभावित खतरे से बचने के उपाय तलाशना |
सम्मेलन के दौरान, इस तकनीक का उपयोग करके जेनेटिक इंजीनियरिंग के प्रयोगों का संचालन करने के लिए सख्त दिशा निर्देश वाले कई सिद्धांत स्थापित किए गए थे। संभावित जोखिमों से निपटने के लिए पहला सिद्धांत यह था कि प्रायोगिक डिजाइन में रोकथाम को एक आवश्यक विचार बनाया जाना चाहिए। एक दूसरा सिद्धांत यह था कि रोकथाम की प्रभावशीलता अनुमानित जोखिम से यथासंभव मेल खाना चाहिए | इसके अलावा जेनेटिक इंजीनियरिंग से जुड़े प्रयोगों पर कई सख्त सिद्धांत लागू किये गए |
सिफारिशें
सम्मेलन ने पुनः संयोजक डीएनए के प्रसार को सीमित करने के लिए जैविक बाधाओं के उपयोग का भी सुझाव दिया। इस तरह के जैविक अवरोधों में तेज बैक्टीरिया वाले मेजबान शामिल थे जो प्राकृतिक वातावरण में जीवित रहने में असमर्थ थे। अन्य बाधाएं असंयमी और समान रूप से तेज़ चलने वाले वैक्टर (प्लास्मिड, बैक्टीरियोफेज, या अन्य वायरस) थे जो केवल निर्दिष्ट मेजबानों में बढ़ने में ही सक्षम थे।
जैविक बाधाओं के अलावा, सम्मेलन ने अतिरिक्त सुरक्षा कारकों के उपयोग की भी वकालत की। इसके अतिरिक्त, प्रयोगों में शामिल सभी कर्मियों की शिक्षा और प्रशिक्षण प्रभावी रोकथाम उपायों के लिए आवश्यक होगा। असिलोमर सम्मेलन ने विभिन्न प्रकार के प्रयोगों के लिए आवश्यक नियंत्रण को जांच करने की सिफारिशें भी दीं। ये सिफारिशें प्रयोग से जुड़े जोखिम के विभिन्न स्तरों पर आधारित थीं, जिनके लिए विभिन्न स्तरों के नियंत्रण की आवश्यकता होगी। ये स्तर न्यूनतम, निम्न, मध्यम और उच्च जोखिम वाले थे।
जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering in Hindi) का वर्त्तमान और भविष्य
वर्तमान समय में जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering in Hindi) का उपयोग चिकित्सा, अनुसंधान, उद्योग और कृषि के क्षेत्रो में हो रहा है | चिकित्सा में जहाँ, जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग बड़े पैमाने पर इंसुलिन, मानव हार्मोन विकास, फॉलिस्टिम (बांझपन के इलाज के लिए), मानव एल्ब्यूमिन, टीके और कई अन्य दवाओं के लिए किया जा रहा है। वहीँ कृषि में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों या आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों को बनाने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग का भी उपयोग किया जाता है।
असिलोमर सम्मेलन की पहल से उपजे मानव चेतना और जेनेटिक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में वैज्ञानिकों की अपने जिम्मेदारी के प्रति जागरूकता के कारण ही, अभी तक जेनेटिक इंजीनियरिंग का कोई विनाशकारी प्रयोग नहीं हुआ है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये आशा की जा सकती है की भविष्य में हम मानवता के प्रति और भी लाभदायक जेनेटिक इंजीनियरिंग प्रयोगों के साक्षी बनेंगे |
फिर भी, सख्त दिशा निर्देशों और इस मुद्दे पर पुरे विज्ञानं जगत की एकजुटता के बावजूद ना जाने कब और कौन, विक्टर फ्रैंकेस्टाइन की तरह किसी मॉन्स्टर को जन्म दे देगा ये कोई नहीं बता सकता |
“Man,” I cried, “how ignorant art thou in thy pride of wisdom!”
― Frankenstein