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वैज्ञानिकों ने खोजा रहस्यमयी बीमारी इंसेफेलाइटिस (Encephalitis) का सोर्स

इंसेफेलाइटिस (Encephalitis)  को आप गोरखपुर से जोड़े तो समझ सकते हैं कि इस बीमारी को रहस्यमयी क्यों कहा जाता है। हर साल गोरखपुर में इस दिमागी बुखार से सैकड़ो बच्चे मारे जाते हैं। इस रहस्मयी बीमारी के इलाज तो दूर किसी को इसके सोर्स का भी पता नहीं था। बीमारी अब भी रहस्य बनी हुई है। लेकिन अब जर्मन वैज्ञानिकों ने इस रहस्य की एक बड़ी गुत्थी सुलझाने का दावा किया है।

खेत खलिहानों में सक्रिय चूहे और गिलहरियां, भेड़ों और घोड़ों के लिए खासे खतरनाक होते हैं।  अब तक माना जाता रहा कि इंसान इन गिलहरियों या चूहों के प्रति इम्यून है. लेकिन जर्मन शहर ग्राइफ्सवाल्ड के फ्रीडरिष लोएफ्लर इंस्टीट्यूट के वायरोलॉजिस्ट मार्टिन बीयर अब इस दावे का खंडन कर रहे हैं।

इसका पता अंगदान के एक मामले की जांच के बाद चला. अंगदान करने वाले एक व्यक्ति के अंग दो अलग अलग लोगों में फिट किए गए. लेकिन दोनों की मौत हो गई. बीयर कहते हैं, “जहां तक इन मामलों की बात है तो हम बहुत ही अलग और खास किस्म के केस देख रहे हैं। ”

अंग ग्रहण करने वाले दोनों व्यक्तियों की 2016 में मौत हो गई. तमाम जांचों के बाद भी डॉक्टर यह पता नहीं लगा सके कि दोनों के मस्तिष्क में संक्रमण की बीमारी इंसेफ्लाइटिस कैसे हुई।

इसके वायरस का साकेंतिक चित्र

इसके बाद जर्मनी में इंसेफ्लाइटिस की जांच करने वाली रिसर्चरों की एक अलग टीम की मदद ली गई। ये वैज्ञानिक पूर्वी जर्मनी के तीन गिलहरी पालकों की मौत की जांच कर रहे थे।  इस दौरान उन्होंने पता लगाया कि गिलहरी पालकों की मौत एक नए किस्म के बोर्ना वायरस VSBV-1 से हुई. वायरस गिलहरियों के जरिये उनके शरीर तक पहुंचा।

जैसे जैसे रिसर्च आगे बढ़ी वैसे वैसे वैज्ञानिकों को पता चला कि अंगदान के बाद मरने वाले लोगों को मौत की बोर्ना वायरस से हुई. बीयर कहते हैं, “मस्तिष्क में संक्रमण के मामले में इस बात पर कोई गौर नहीं करता है, क्योंकि अब तक इसकी भूमिका का कोई संकेत तक नहीं मिला था.”

ठोस नतीजे मिलने के बाद अब वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसेफ्लाइटिस के उपचार के दौरान बोर्ना वायरस पर ध्यान दिया जाना चाहिए. बोर्ना वायरस का तेजी से पता लगाने के लिए अब नई डिटेक्शन प्रक्रिया बनाई जा रही है. पिछले 100 साल से बोर्ना वायरस को घोड़ों और भेड़ों की मौत के लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है. यह वायरस दक्षिणी और पूर्वी जर्मनी के साथ साथ ऑस्ट्रिया, लिष्टेनश्टाइन और स्विट्जरलैंड में भी पाया जाता है।

भारत के गोरखपुर जिले में भी हर साल इंसेफ्लाइटिस के दर्जनों मामले सामने आते हैं. ज्यादातर मामलों में बच्चों की मौत हो जाती है. जर्मनी की इस रिसर्च से गोरखपुर के इंसेफ्लाइटिस को समझने में मदद मिलेगी. भारत में अब तक यह बीमारी रहस्य बनी हुई है. कुछ विशेषज्ञ इसके लिए धान के खेतों में मिलने वाले खास किस्म के मच्छर को जिम्मेदार ठहराते हैं। लेकिन मच्छरों या वहां की पक्षियों में यह वायरस कहां से आया, इसका पता शायद जर्मन रिसर्च की मदद से चल सकता है।

स्रोत – DW.Com

Team Vigyanam

Vigyanam Team - विज्ञानम् टीम

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