Religion

विज्ञान और धर्म में क्या अंतर है? Difference Between Science And Religion

क्या भगवान को अपनी इंद्रियों द्वारा समझा जा सकता है?

एक सवाल है जो कई बार मेरे समाने आया है कि आखिर  ‘विज्ञान और धर्म में क्या अंतर है’? पिछले 500 वर्षों में जबरदस्त विकास और विज्ञान की तरक्की ने लोगों के प्रति धर्म और आस्था के विषय पर कई सवाल खड़े किये हैं। एक तरफ विज्ञान है तो दूसरी तरफ धर्म है (Difference Between Science And Religion)। धर्म विश्वास और आस्था का प्रतीक है, वहीं विज्ञान हर वस्तू के कारण और उसके होने और सत्यता पर ही निर्भर रहता है।

भगवान के अस्तित्व की धारणा है धर्म

विज्ञान और धर्म में क्या अंतर है?

संसार का हर धर्म ईश्वर (God) की कल्पना करता है, वो मानता है कि ये जो अनंत ब्रह्मांड (Infinite Universe) है, अनंत कालचक्र हैं वो सभी ईश्वर ने ही निर्मित किये हैं। वो एक ऐसी शक्ति है जो इस ब्रह्मांड का निर्माण भी कर सकती है और उसे एकपल में नष्ट भी कर सकती है।  हर वस्तू का निर्माण और हर घटना के पीछे होने का कारण ये परम शक्ति ही है। ये वो शक्ति है जिसका ना तो कोई आकार है और ना ही कोई इसे पूरा समझ सकता है। हरि अनंत है।

सत्य की खोज है धर्म

मनुष्य इस संसार में आया और उसने इस संसार की माया को देखा, उसने जाना कि ये संसार तो हर पल मरता है और जन्म लेता है, वह भी इसी चक्र में फसा हुआ है। एक माया है जो उसे हर पल मोहित करती रहती है और वो अपने ज्ञान नेत्रों से उस माया को ना तो देख पाता है और नही समझ पाता है। ये माया उसे  असत्य में सत्य का भ्रम कराती है।

धर्म की स्थापना इसी उद्देश्य से हुई है, ईश्वर इस माया का स्वामी है जो इस ईश्वर के सत्य को समझ लेता है तो फिर उसका एक ही धर्म रहता है और वह है  इस पराशक्ति से मिलना। धर्म में विशेषकर सनातन धर्म में तो ईश्वर के अंदर समा जाना ही परमसत्य है। ये एक मोक्ष है, जो उसे ही मिलता है जो इस सत्य को समझकर उसकी रहा पर निकल जाता है।

यो तो थी धर्म की बात, आइये अब विज्ञान को भी देख लेते हैं कि वो क्या है और कैसे धर्म से अंतर रखता है। 

विज्ञान कोई आधुनिक ज्ञान नहीं है

विज्ञान कोई आधुनिक ज्ञान नहीं है, और ना ही कोई आधुनिक विषय है। विज्ञान एक भौतिक विषय है, जो भौतिकता के आधार पर सत्य की खोज करता है। हमारी इंद्रियो से जो हमे दिखाई देता है और जो महसूस होता है उसकी सत्यता और उसके काम करने के तरीके को जानना ही विज्ञान है। ये हर वस्तू को गहराई में तौलने और विचार करने जैसा है, इसमें अधायत्म की मात्रा बहुत कम होती है।

विज्ञान हर उस बात को नकार देता है जो उसे या तो समझ नहीं आती या फिर उसका कोई प्रमाण नहीं है। जहां एक तरफ धर्म ईश्वर को मानता  है और उसकी खोज में निकल जाता है, तो विज्ञान ईश्वर के अस्तित्व को नकार देता  है। विज्ञान हर वस्तू और क्रिया के पीछे का कारण ढूँढता है, उसके मुताबिक ये ब्रह्मांड ईश्वर की कल्पना मात्र से नहीं बल्कि एक कारण से हुआ है, ये ब्रह्मांड एक छोटे से बिंदू से पैदा हुआ जिसे बिग बैंग कहते हैं।

पर आधुनिक विज्ञान की अभी मजबूरी है

आधुनिक विज्ञान से पहले भारत में ऋषि-मनुियों का विज्ञान था, उनके शोध कार्य वेदों और पुराणों में मिलते हैं, आज भी कई बातें एकदम सटीक  हैं। प्राचीन विज्ञान ध्यान के द्वारा इंद्रियों से आगे बढ़कर खोज करता था, इसलिए उसके नतीजे आज भी काम आते हैं। योगविसिष्ठ और कई धार्मिक ग्रंथो में विज्ञान की बातों को भी माना गया है।

आधुनिक विज्ञान यहीं पर आकार के रूक जाता है, उसका विश्वास केवल इंद्रियों द्वारा सत्य खोजने जैसा है। हमारी दस इंद्रियों ने जो देखा, महसूस किया और समझा वही सत्य है और जो नहीं समझपाया और नहीं देखा  उसे विज्ञान नकार देता है।   विज्ञान ध्यान और उससे आगे अभी नहीं सोच सकता है वास्तव में तो  अभी बहुत देर है।

निष्कर्ष

कुल मायनो में देखा जाये तो विज्ञान और धर्म में क्या अंतर है इस प्रश्न के लाखों उत्तर हैं, मुझे दूसरे धर्मों के बारे में ज्यादा नहीं पता पर सनातन धर्म में वेदों में उस विज्ञान का वर्णन है जो आज के आधुनिक विज्ञानिकों के पास नहीं है। मैं  यहां वेद की प्रशंसा नहीं कर रहा हूँ, बस सच्चाई का वर्णन कर रहा हूँ, क्योंकि वेद भी  ज्ञान की बाते हैं जो कि हजारों सालों से एकदम तर्क सहित चली आ रही हैं।

Shivam Sharma

शिवम शर्मा विज्ञानम् के मुख्य लेखक हैं, इन्हें विज्ञान और शास्त्रो में बहुत रुचि है। इनका मुख्य योगदान अंतरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान में है। साथ में यह तकनीक और गैजेट्स पर भी काम करते हैं।

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