Asteroid Science in Hindi – हमारे ब्रह्माण्ड में कई तरह के पिंड होते हैं जो ग्रेविटी के कारण किसी ना किसी की परिक्रमा करते हैं। जब वह पिंड किसी बड़े तारे, या ग्रह की ग्रेविटी की सीमा से बाहर हो जाते हैं तो भटकने लगते हैं। इन्हीं भटके हुए पिंडो को वैज्ञानिक उल्कापिंड (Asteroid) मानते हैं। ये किसी भी आकार के हो सकते हैं, कुछ सेंटीमीटर से लेकर के कई हजार किलोमीटर तक।
हमारे सौर मंडल में भी ठीक इसी तरह के कई लाख उल्का पिंड पाये जाते हैं, ये सभी उल्का पिंड किसी वजह से अपने ग्रहों की ग्रेविटी को भूल गये हैं और भटक रहे हैं।
Asteroid Belt
हमारे सोलर सिस्टम में मार्स और जूपिटर के बीच में एक Asteroid Belt आती है, जिसे क्षुद्रग्रह घेरा भी कहते हैं। इस बेल्ट में करीब 10 लाख से लेकर के 20 लाख से ज्यादा Asteroid हो सकती हैं।
पर अधिकतर जो Asteroid इस बेल्ट में है वो एक किलोमीटर या उससे छोटी आकार की ही हैं। अगर गलती से भी कोई Asteroid इस बेल्ट में से निकलकर हमारे पास आये तो वह हमारे वातावरण की गर्मी से ही खत्म हो जायेगी। हालांकि इन सभी लाखों Asteroid में से ज्यादातर Asteroid जूपिटर ग्रह से ही टकरा जाती हैं क्योंकि जूपिटर की ग्रेविटी बहुत ज्यादा है, जो कि इन भटके हुए उल्का के पिंडो को अपने में समा लेता है। Asteroid यानि की उल्काओं से जुपिटर ग्रह हमारी रक्षा करता है।
इनकी ताकत
पर अगर किसी Asteroid की दिशा जूपिटर से दूर पृथ्वी की ओर हो तो वह जूपिटर की ग्रेविटी से आसानी से बच जायेगी और सीधा पृथ्वी की ओर बढ़ेगी, अगर उस Asteroid का आकार 1 किलोमीटर का है तो वह पूरे एक बड़े शहर को तबाह कर देगी। आप ये समझिए की इसकी ताकत आजतक के बने सबसे खतरनाक न्युक्लियर बम Tsar Bomba से भी 1000 गुना होगी।
जिस Asteroid ने आज से 6.6 करोड़ साल पहले Dinosaurs को खत्म किया था उसका आकार 10 किलोमीटर का था, 10 किलोमीटर के व्यास वाली इस उल्का ने धरती के 75 प्रतीशत जीवन को तूरंत नष्ट कर दिया था। इस उल्का की ताकत Tsar Bomba से 20 लाख गुना ज्यादा थी। हालांकि ऐसे Asteroid 15 करोड़ सालों में एक बार ही धऱती को निशाना बनाते हैं पर अगर आज के समय में ऐसी कोई उल्का धरती की तरफ आने लगे तो हम केवल भगवान का नाम ही याद कर सकते हैं।
सबसे बड़े उल्कापिंड
Asteroid Belt में तीन और 400 किमी के व्यास से बड़े क्षुद्रग्रह पाए जा चुके हैं – वॅस्टा, पैलस और हाइजिआ। पूरे क्षुद्रग्रह घेरे के कुल द्रव्यमान में से आधे से ज़्यादा इन्ही चार वस्तुओं में निहित है। बाक़ी वस्तुओं का अकार भिन्न-भिन्न है – कुछ तो दसियों किलोमीटर बड़े हैं और कुछ धूल के कण मात्र हैं।
खगोलशास्त्रीयों का मानना है की बहुत समय पहले ग्रहों के टूटने से ये क्षुद्रग्रहों का निर्माण हुआ था। इस क्षुद्रग्रह पट्टी में विभिन्न आकार के क्षुद्रग्रह पाये जाते हैं।
वैसे तो ये कोई भी नहीं जानता है कि कितनी बड़ी उल्का या ग्रह हमारी पृथ्वी से टकरा सकता है, पर अगर कोई चांद जैसी उल्का पृथ्वी से टकराती है तो इससे खुद पृथ्वी के कई टुकड़े हो सकते हैं। दोस्तों, ये सोचने में ही कितना डरावना लगता है…