इंसान द्वारा बनाई गई हर एक चीज़ विशेष होती है। शायद ही कोई ऐसी चीज़ होगी, जिसे इंसान ने बिना सोचे-समझे तैयार किया हो। इसलिए आज पृथ्वी पर इंसान से श्रेष्ठ कोई जीव नहीं है। हम सबसे बुद्धिमान प्राणी हैं। जैसा कि मैंने पहले कहा, हर चीज़ के होने के पीछे कोई न कोई कारण होता है। अधिवर्ष या “लीप ईयर” (Leap Year in Hindi) के होने के पीछे भी कई कारण मौजूद हैं। परंतु हम अक्सर इसके बारे में नहीं सोचते। इसलिए आज के इस लीप डे पर क्यों न इसी के बारे में बात करें।
मित्रों! क्या आपने कभी अधिवर्ष (Leap Year in Hindi) के बारे में सोचा है? क्यों एक अतिरिक्त दिन अधिवर्ष में जोड़ा जाता है? आखिर क्यों लीप ईयर के फरवरी में 29 दिन होते हैं? दोस्तों, इस तरह के सवाल मेरे मन में भी काफी समय से आ रहे हैं और मुझे पता है कि आपके मन में भी ऐसे सवाल आते होंगे। यही वजह है कि आज हम अधिवर्ष/लीप ईयर के बारे में पूरी बारीकी से चर्चा करेंगे और देखेंगे कि एक दिन जोड़ना हमारे लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है।
तो, आपसे अनुरोध है कि लेख को आरंभ से अंत तक पढ़ें और इसे जितना हो सके शेयर करें।
विषय - सूची
आखिर क्यों “लीप ईयर” इतना खास होता है? – Importance of Leap Year in Hindi
आज हम “लीप डे” यानी 29 फरवरी को मना रहे हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हर 4 साल में एक लीप डे क्यों मनाना जरूरी है? शायद नहीं, तो इस लेख को आगे जरूर पढ़ें। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, जिन वर्षों की अंतिम दो संख्याएं 4 से विभाजित होती हैं, उन्हें लीप ईयर कहा जाता है। हालांकि, इसमें भी कई अपवाद शामिल हैं। वैसे, आपको बता दूं कि लीप शब्द का अर्थ आगे बढ़ना होता है।
अगर लीप ईयर से पहले के वर्ष का मार्च महीने का पहला दिन सोमवार है, तो लीप ईयर में मार्च का महीना मंगलवार से शुरू होगा। इसलिए आप कह सकते हैं कि हर लीप ईयर में एक दिन आगे बढ़ता है। एक रोचक बात यह है कि विभिन्न धर्मों में इस्तेमाल होने वाले कैलेंडरों में भी लीप ईयर होते हैं, लेकिन ये हर चार साल में नहीं आते और हमेशा अलग-अलग वर्षों में गिरते हैं। अब, मैं आपको एक और खास चीज के बारे में बताऊंगा।
मित्रों! लीप ईयर और लीप डे के साथ-साथ “लीप सेकेंड्स” भी होते हैं। ये लीप सेकेंड्स कुछ खास सालों में जोड़े जाते हैं। उदाहरण के लिए, 2012, 2015 और 2016 में कुछ लीप सेकेंड्स जोड़े गए थे। हालांकि, आने वाले समय में (2035 के बाद) इस लीप सेकेंड्स की प्रक्रिया को पूरी तरह से हटा दिया जाएगा, इसलिए यह और भी खास हो जाता है।
हमें लीप ईयर की क्यों जरूरत है?
अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर हमें लीप ईयर्स (Leap Year in Hindi) की जरूरत क्यों पड़ती है। तो, मैं आपको बता दूं कि बिना लीप ईयर्स के हमारे साल काफी अलग नजर आएंगे। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, हर 4 साल में एक साल ऐसा भी आता है जो बाकी वर्षों की तुलना में थोड़ा छोटा होता है। इसी वजह से लीप ईयर का कांसेप्ट आया है।
आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि एक कैलेंडर में एक साल सटीक रूप से 365 दिनों का होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं, पृथ्वी को सूर्य के चारों ओर घूमने के लिए सटीक “365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 56 सेकंड” का समय लगता है।
इसलिए अगर हम इस समय अंतराल को नजरअंदाज कर दें तो हर बीतते साल के साथ हमारा हर वर्ष धीरे-धीरे अलग-अलग लंबाई का होने लगेगा। इससे पूरे दिन, हफ्ते और महीनों का ढांचा ही बदल जाएगा। इससे हमें समय का अंदाजा लगाना भी काफी मुश्किल हो जाएगा।
लीप ईयर के बिना हमारे यहां ऋतुओं के आने का समय भी बदल जाएगा। अगर हम लीप ईयर को न गिनें तो आज से लगभग 700 साल बाद हमारे उत्तरी गोलार्ध में गर्मी जून के बजाय दिसंबर में आने लगेगी। तो, आप सोच सकते हैं कि पूरी दुनिया में कितनी उथल-पुथल मच सकती है। लीप डे की वजह से हमें काफी सहूलियत मिलती है।
क्यों खास है लीप डे? :-
हर चार साल में एक बार 29 फरवरी की तारीख आती है। इसलिए यह दिन काफी खास है। लीप डे (Leap Year in Hindi) की वजह से समय की गणना में काफी आसानी हो जाती है। क्योंकि बिना लीप डे के, हम हर 4 साल में अतिरिक्त 44 मिनट या हर 129 वर्षों में एक दिन जोड़ेंगे। इस असुविधा को हल करने के लिए, हर शताब्दी के पहले लीप ईयर को (4 से विभाजित होने वाले वर्षों को छोड़कर) हम स्किप कर देते हैं। लेकिन लीप ईयर के कांसेप्ट को इस्तेमाल करने के बाद भी, कैलेंडर ईयर और सोलर ईयर में अंतर रह ही जाता है। यही वजह है कि कुछ सालों में लीप सेकंड को मिलाया जाता है।
लीप ईयर का कांसेप्ट बहुत पुराना है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कांसेप्ट सबसे पहले ईसा पूर्व 45 में देखा गया था और इसे रोमन सम्राट “जूलियस सीज़र” ने दिया था। उस समय इसे सबसे पहले जूलियन कैलेंडर में इस्तेमाल किया गया था। जूलियन कैलेंडर में भी 12 महीने और 365 दिन थे। उस समय जुलाई और अगस्त के महीने नहीं थे। जुलाई और अगस्त के महीने को “क्विंटिलिस (Quintilis) और सेक्टिलिस (Sextilis)” कहा जाता था। बाद में इसे जूलियस और उनके बेटे अगस्टस के अनुसार “जुलाई और अगस्त” किया गया था।
ये सारी बातें काफी रोचक और अद्भुत हैं। क्योंकि इन्हें हम हमेशा इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इसके बारे में कभी कुछ नहीं सोचते। आपको यह जानकारी कैसी लगी, कमेंट करके जरूर बताएं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
मित्रों! यह जानकर आपको हैरानी होगी कि लगभग 1600 वर्षों तक जूलियन कैलेंडर ने अच्छी तरह से काम किया। लेकिन 16वीं शताब्दी की शुरुआत में, शोधकर्ताओं ने इसमें खामियाँ देखनी शुरू कीं। यह वह समय था जब पृथ्वी पर ऋतुएँ 10 दिन पहले शुरू होने लगीं, जबकि उन्हें 10 दिन बाद शुरू होना चाहिए था। इसलिए लीप ईयर (Leap Year in Hindi) को और भी अधिक महत्व दिया जाने लगा।
जब सही समय पर ऋतुओं और त्योहारों का दिन आने में दिक्कत होने लगी, तब पोप ग्रेगोरी XIII ने 1582 में ग्रेगोरियन कैलेंडर को जारी किया। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि ग्रेगोरियन और जूलियन कैलेंडर लगभग समान हैं, सिवाय एक अंतर के। ग्रेगोरियन कैलेंडर में हर शताब्दी के पहले वर्ष को (सिवाय 4 से विभाजित होने वाले वर्षों को छोड़कर) लीप ईयर के रूप में स्किप कर दिया जाता है। काफी समय तक ग्रेगोरियन कैलेंडर को इटली और स्पेन में इस्तेमाल किया गया।
बाद में, 1752 में इसे ग्रेट ब्रिटेन द्वारा भी अपनाया गया और धीरे-धीरे पूरी दुनिया ने इस कैलेंडर को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। मित्रों! आज से हजारों वर्षों बाद ग्रेगोरियन कैलेंडर को फिर से कैलिब्रेट करना पड़ेगा।