अकसर हमारी आँखें पृथ्वी में मौजूद सिर्फ स्थूल चीजों को देखने में ही सक्षम होती हैं। इसमें हमारी आँखों का कोई दोष नहीं हैं, क्योंकि प्रकृति ने ही खुद हमें कई सूक्ष्म चीजों को देखने की शक्ति नहीं दी है। तो, ऐसे में हम कभी भी अपने खुली आँखों से सूक्ष्म दूनीया में विचरण करने वाले सूक्ष्म जीवों के बारे में (microorganisms in hindi) कुछ भी नहीं जान सकते हैं। परंतु शुक्र हैं विज्ञान का जिसने अपनी तकनीक के माध्यम से इन सूक्ष्म जीवों को देखने की ताकत हमें दी है। इससे न बल्कि हमें इन सूक्ष्म जीवों को देखने का मौका मिलता हैं, परंतु इन के ऊपर कई प्रकार के शोध करने का मौका भी मिलता है।
वैसे अगर आप अभी भी द्वंद में हैं की, आज के इस लेख के अंदर हम लोग किस बात के ऊपर चर्चा करेंगे! तो मेँ आपको बता दूँ की; आज हम लोग सूक्ष्म जीवों (microorganisms in hindi) के बारे में बात करेंगे। जी हाँ! आपने सही सुना हम आज सूक्ष्म जीवों के 5 ऐसे अजीब और अज्ञात उदाहरणों के ऊपर आलोचना करेंगे जिसके बारे में आपको कोई भी नहीं बताता है।
तो, चलिए मित्रों! आज के इस अजूबों से भरी हुई लेख को शुरू करते हैं और जानते हैं इन सूक्ष्म व कई सारे रहस्यों से घिरे हुए जीवों के बारे में।
विषय - सूची
अब तक के खोजे गए 5 सबसे अजीब और रहस्यमयी मायक्रो ऑर्गानिस्मस – 5 Microorganisms In Hindi :-
लेख के इस भाग में मैंने आप लोगों को 5 ऐसे अजीब माइक्रोओरगनीस्म्स (microorganisms in hindi) के बारे में बताया हैं, जिसके बारे में सुनकर आप विश्वास भी नहीं कर पाएंगे। तो इसलिए लेख को आगे पढ़ते रहिएगा।
1. सूक्ष्म दुनिया का “रॉकेट मैन” – Listeria monocytogenes.
अब आपने पृथ्वी में मौजूद कई प्रकार के लोगों को जानते हैं, जो की “मिशाइल मैन” और ऐसे ही कई सारे उपाधिओं से परिचित हैं। परंतु क्या आपने कभी “रॉकेट मैन” के बारे में सुना हैं, और वह भी सूक्ष्म दुनिया (Micro World) की ? मुझे नहीं लगता की दोस्तों इससे पहले आपको किसी ने इस रॉकेट मैन से रूबरू किया होगा। तो, चलिए अब यहाँ पर इस सूक्ष्म दुनिया की रॉकेट मैन से रूबरू होते हैं।
Listeria monocytogenes नाम के इस बेक्टेरिया को वैज्ञानिकों ने “रॉकेट मैन” का नाम दिया हैं। वैसे तो यह बेक्टेरिया मूल रूप से पानी और मिट्टी के ऊपरी सतह पर दिखाई पड़ता हैं, परंतु जब भी यह किसी जीवित प्राणी के अंदर प्रवेश कर लेता हैं, तब इसका असली स्वरूप आपको देखने को मिलता हैं।
जीवित शरीर के अंदर प्रवेश करने के बाद यह बेक्टेरिया, उस जीवित प्राणी के कोशिका विभाजन करने वाले तंत्र (Cell Division Machinery) के ऊपर अपना कब्जा कर लेता हैं| वैसे अजीब बात तो यह है की, मौलिक तौर पर यह शरीर के अंदर मौजूद हड्डीयों के अंदर स्थित बोन मेरो को अपना निशाना बनाता हैं| बोन मेरो को संक्रमित करने के बाद यह बहुत तेजी से इसके अंदर किसी “रॉकेट की तेजी से” अपना विस्तार करने लगता हैं।
वैसे हैरानी वाली बात यह भी है की, शरीर के अंदर L. monocytogenes के कोशिकाओं का आकार किसी एक “रॉकेट के भांति” ही दिखाई पड़ता हैं। इस कोशिका में एक मूल संक्रमण तंत्र होता है, जो की एक लंबे पुंछ के जरिए एक से दूसरे जगह तक प्रवाहित हो सकता हैं।
इस सूक्ष्मजीव से जुड़ी कुछ रोचक बातें :-
L.monocytogenes एक ऐसा माइक्रोओरगनीस्म हैं जो की घरों में इस्तेमाल होने वाले फ्रीड्ज के अंदर भी जीवित रह सकता हैं। दूध और पनीर के अंदर यह बड़े ही आसानी के साथ पनप सकता हैं और बाद में चलकर डाइरिया जैसी बीमारी भी पैदा कर सकता हैं। वैसे देखा जाए तो इस बेक्टेरिया से गर्भवती महिलाएं और पहले से बीमार लोगों को बच कर रहना चाहिए।
माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखने पर, इस बेक्टेरिया का असली रूप दिखाई पड़ता हैं जो की शरीर के अंदर बहुत ही तेजी फैलता ही रहता हैं। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं, यह बेहद ही छोटे-छोटे माइक्रोओरगनीस्म हमारे लिए कितने खतरनाक साबित हो सकते हैं। आकार के आधार पर इनको कमदर आंकना सही नहीं हैं। इनसे बचने के लिए हमेशा साफ-सुतूरे माहौल यानी घर में बनाए गए खाने को ही खाएं और अपने शरीर के लिए जितना हो पाए उतना ही बाहर के खाने को परहेज करें।
2. बीमारी का एक सूक्ष्म बूंद (Bulb) – Myxococcus xanthus :-
आपने टीवी पर अकसर जिंदगी के लिए दो बूंद – पोलियो का विज्ञापन अवश्य ही कई बार देखा होगा। परंतु क्या कभी आपने बीमारी के लिए दो बूंद जैसे अजीब सी बात सुनी हुई हैं। शायद नहीं, क्योंकि आखिर कौन बीमार पड़ना चाहेगा! खैर बीमार तो कोई नहीं पड़ना चाहेगा, परंतु इसके बारे में जानकर हम लोग और भी ज्यादा सतर्क हो पाएंगे। खैर मेँ यहाँ बात कर रहा हूँ, M. xanthus के बारे में।
मूल रूप से यह एक माइक्रोओरगनीस्म (microorganisms in hindi) हैं, जो की देखने में एक पानी की बूंद की भांति ही दिखाई पड़ता हैं। वैसे अधिक जानकारी के लिए मेँ आपको बता दूँ की, यह एक सिंगल-सेल (Single-Celled) माइक्रोओरगनीस्म हजाइन जो की एक समूह में काम करते हैं।
इन माइक्रोओरगनीस्म से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बात यह भी है की, यह वास्तव में बहुत ही ज्यादा खतरनाक और निर्दयी हैं। यह पहले तो अपने शिकार को एंटी-बायोटिक लिकुइड (AntiBiotic Liquid) और डाइजेस्टीव एंजाइम (Digestive Enzyme) के जरिए कमजोर बना देता हैं और धीरे-धीरे इसी के जरिए उसे अंदर से गला-गला कर खा जाते हैं।
इस सूक्ष्मजीव से जुड़ी कुछ अद्भुत बातें :-
जब भी M. xanthus किसी दूसरे होस्ट को आक्रमण करते हैं तो, वह एक साथ मिल कर हमला करते हैं। वैसे वैज्ञानिकों का कहना हैं की, किसी भी नए होस्ट के ऊपर हमला करते वक़्त यह बैक्टीरिया आपस में मिलकर बहू स्तरीय “बेक्टेरियल टावर” का निर्माण करते हैं। वैसे मेँ यहाँ पर बता दूँ की की, इन टावरों में M. xanthus के समूह के 10,000 से भी ज्यादा स्तर होते हैं।
गौरतलब बात यह भी है की, जब भी इन बैक्टीरिया के समूहों के सामने प्रतिकूल वातावरण होता हैं, तब यह अपने-आप को बचाने के लिए एक “सिस्ट” (Cyst) का निर्माण करते हैं। जो की इन्हें काफी समय तक उस प्रतिकूल वातावरण से बचा कर रखता हैं।
3.सूक्ष्म जगत का “इलेक्ट्रो मैन” – Geobacter metallireducens :-
माइक्रोओरगनीस्म (microorganisms examples in hindi) के ऊपर आधारित इस लेख में अब हम जानेंगे, सूक्ष्म जगत के “इलेक्ट्रो मैन” के बारे में। Geobacter metallireducens नाम का यह सूक्ष्मजीव (microorganisms in hindi) गंदे पानी के सतह के नीचे अपने बिजली के शॉक के लिए काफी परिचित हैं। यह माइक्रोओरगनीस्म अन्य माइक्रोओरगनीस्म से काफी ज्यादा भिन्न हैं और इसका शुख्म दुनिया में एक अलग ही परिचय हैं। तो, चलिए आगे इस माइक्रोओरगनीस्म से जुड़ी उन अज्ञात बातों को जानते हैं।
वैसे इस माइक्रोओरगनीस्म से जुड़ी और एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात यह भी हैं की, यह बिजली की ताकत से सांस लेता हैं। वैज्ञानिकों का कहना हैं की, इलेक्ट्रोल्यसिस (Electrolysis) के जरिए वह इस प्रक्रिया को सक्षम कर पता हैं। वैसे पृथ्वी पर मौजूद ज़्यादातर जीव सांस छोड़ते वक़्त कार्बनडाइऑक्साइड के साथ ही साथ कुछ मात्रा में इलेक्ट्रॉन को भी निष्कासित भी करते हैं, जो की बाद में वायुमंडल में समा जाता हैं।
परंतु G. metallireducens नाम का यह बेक्टेरिया सांस छोड़ते वक़्त अपने इलेक्ट्रॉन को किसी धातु के अंदर संगृहीत कर के रखता हैं, जो की बाद में इलेक्ट्रोल्यसिस के माध्यम से उसे सांस लेने में मदद करता हैं। यूरानीयम,मेंगेनीज और प्लूटोनीयम जैसे धातुओं को इस्तेमाल करते हुए वह अपने सांस लेने के प्रक्रिया को सक्षम बनाता हैं। क्योंकि इन्हीं धातुओं से पैदा होने वाला आयन इलेक्ट्रोल्यसिस के प्रक्रिया में काफी ज्यादा कारगार साबित होते हैं।
इस सूक्ष्मजीव से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें :-
मूल रूप देखा जाए तो G. metallireducens अपने नाम को वाकई में यथार्थ साबित करता हैं। जब भी अगर उसे सांस लेने के लिए धातुओं की कमी का सामना करना पड़ता हैं, तब वह अपने अंदर से फ्लाजेलम (Flagellum) को पैदा करता हैं और उसी के माध्यम से वह पानी के अंदर तैरते हुए धातु-बहुल स्थान के और चल पडता हैं।
वैसे यहाँ पर दिलचस्प बात यह भी है की, धातुओं के अंदर अपने द्वारा निष्कासित किए गए इलेक्ट्रॉन को वह एक स्वतंत्र तरीके से उसके अंदर संगृहीत करके रखता हैं। इस स्वतंत्र तरीके को अंजाम देने के लिए वह एक “पीली” (Pili) का निर्माण करता हैं, जिसके जरिए वह अपने इलेक्ट्रॉन को धातुओं के अंदर बड़े ही सधे हुए तरीके से प्रवेश करवाता हैं।
इसके अलावा में यह आपस में मिलकर एक समूह का निर्माण भी करते हैं, जिसके जरिए वह एक साथ मिलकर ज्यादा देर तक जिंदा रह पाते हैं। वैसे यह बैक्टीरिया काफी तेजी के पानी के अंदर फैल जाता हैं। तेजी से फैलने के कारण यह पानी में धातुओं के रूप में मौजूद सारे खनिजों को चट कर जाते हैं। इससे पानी के अंदर स्थित इकोसिस्टेम काफी ज्यादा प्रभावित होता हैं और कई बार नष्ट भी हो जाता हैं।
खैर मेँ यहाँ पर आप लोगों के एक सवाल करना चाहूँगा! क्या आपने कभी तालाबों और झीलों में बढ़ते हुए विभिन्न प्रकार के पौधों को देखा हैं? अगर हाँ तो क्या आप उनके बारे में जानते हैं? जरूर ही बताइएगा दोस्तों, क्योंकि इसके बारे में जानना आपके लिए ही लाभप्रद होगा!
4.जगमगाता हुआ सूक्ष्म हरा लालटेन – Aliivibrio :-
इंसान के लिए समंदर किसी रहस्यों से भरी हुई जगह से कम नहीं हैं। रात के समय में गहरी समंदर में आपको तरह-तरह के जगमगाते हुए जीव घूमते हुए दिखाई देंगे। इन जीवों के अंदर एक जीव हैं “स्कूइड”। वैसे तो समंदर के अंदर आपको बहुत प्रकार के स्कूइड देखने को मिलेंगे, परंतु अटलांटिक ओशन में Allivibrio एक सूक्ष्म बेक्टेरिया पूरे समंदर को अपने हरे रंग के रौशनी से जगमगा देती हैं।
वैसे मेँ आपको बता दूँ की, स्कूइड मूल रूप से सूक्ष्मजीव (microorganisms in hindi) नहीं हैं परंतु इसके अंदर कई प्रकार से सूक्ष्म जीवों का समूह घर कर के रहते हैं। इसलिए मैंने इसे इस सूची में रखा हैं। वैसे इन स्कूइड के अंदर “लाइट ऑर्गन” नाम का एक अंग भी होता हैं, जहां पर प्राकृतिक रूप से रोशनी उत्पन्न करने वाली बेक्टेरिया जैसे Allivibrio आ कर रहती हैं।
वैसे Allivibrio के बारे मेँ एक बहुत ही हैरतअंगेज बात यह भी हैं की, यह एक ऐसा बेक्टेरिया है जो की एंटी-बेक्टेरियल लिकुइड में भी जिंदा रह सकता और अपने को बड़े ही आसानी से बढ़ा भी सकता हैं। मौलिक तौर पर यह स्कूइड के अंदर मौजूद म्यूकस के अंदर काफी तेजी से प्रवाहित हो सकता हैं। इसके अलावा वह अपने अंदर होने वाले जैव-रासायनिक प्रक्रिया के जरिए रोशनी को भी उत्पन्न कर सकते हैं।
इस सूक्ष्मजीव से जुड़ी कुछ आश्चर्यचकित कर देने वाली बातें :-
Allivibrio को मूल रूप से “Bio-Luminescent” सूक्ष्मजीव (microorganisms in hindi) भी कहा जाता हैं, क्योंकि यह खुद रोशनी पैदा कर सकते हैं। वैसे यहाँ पर आप लोग सोच रहें होंगे की, ऐसे हरे रंग से जगमगाने से आखिर क्या फायदा होता होगा? तो, मेँ आपको बता दूँ की, ऐसे जगमगाने के कारण समंदर मेँ स्कूइड दूसरों प्राणियों के शिकार होने से बच जाता हैं।
इसके अलावा आश्चर्यचकित कर देने वाली बात यह भी हैं की, ऐसे जगमगाने से समंदर में मौजूद झींगे आकर्षित हो कर स्कूइड के आसपास आते हैं। इससे स्कूइड को बिना किसी तकलीफ के अपना खाना उसे मिल जाता हैं। वैसे जब चाँद की रोशनी समंदर के पानी को प्रकाशित करता हैं, तब Allivibrio अपने आकर्षक रोशनी से स्कूइड को हरे रंग से जगमगा देता हैं; जिससे प्रतीत होता हैं की, समंदर के अंदर किसी ने एक “हरा लालटेन” जला कर छोड़ दिया हो। वास्तव में दोस्तों देखने में यह दृश्य बहुत ही सुंदर और लुभावनी होती हैं, जिससे किसी का भी मन उसके प्रति खींचा ही चला जाता हैं।
वैसे मेँ आपको और भी बता दूँ की, अटलांटिक ओशन के अलावा भी दुनिया में अन्य कई प्रकार के Allivibrio के प्रजाति देखने को मिलती हैं। इन प्रजातियों में A. fischeri और A. logei प्रधान हैं। खैर अधिक जानकारी के लिए बता दूँ की, A. fischeri को आप मुख्य रूप से प्रशांत महा-सागर में देख सकते हैं। वैसे यह गरम पानी में देखने को मिलती हैं। logeiमूल रुप से आपको अटलांटिक ओशन में देखेने को मिलेगा। यह A. fishcheri के मुक़ाबले ज्यादा ठंडे में दिखाई पड़ती हैं। इसीलिए परिवेश और तापमान के चलते Allivibrioके कई सारे प्रजातियां हैं।
5.कीचड़ का राक्षस – Streptomyces :-
राक्षसों के बारे में कहा जाता हैं की, वह दिखने में जीतने खतरनाक होते हैं उससे कई ज्यादा निर्दयी भी होते हैं। तो, मित्रों सूक्ष्म दुनिया में एक ऐसा सूक्ष्मजीव (microorganisms in hindi) भी हैं जिसे राक्षस का नाम मिला हैं। खैर बता दूँ की मेँ यहाँ पर “Streptomyces” की बात कर रहा हूँ। इसे वैज्ञानिकों ने “कीचड़ का राक्षस” का नाम दिया हैं। यहाँ पर मेरे बातों पर थोड़ा गौर कीजिएगा, क्योंकि यह बातें भले ही सुनने में साधारण लगें परंतु हैं बहुत ही खास और महत्वपूर्ण।
खैर बारिश के बाद क्या आपने कभी गीली मिट्टी के खुशबू को सूंघा हैं, अवश्य ही सूंघा होगा। खैर कई लोगों को बारिश के बाद गीली मिट्टी के खुशबू बहुत ही भाता हैं। परंतु मित्रों! क्या आपको पता हैं, जब भी आप उस गीली मिट्टी के खुशबू को सूंघ रहें होते हैं, तब आपके नाकों में Streptomyces नाम का एक माइक्रोओरगनीस्म प्रवेश कर जाता हैं। यह माइक्रोओरगनीस्म (microorganisms in hindi) वैसे तो ज़्यादातर प्राकृतिक तौर पर पृथ्वी के सतह पर मौजूद रहते हैं, परंतु कई बार बहुत प्रकार के माध्यमों के जरिए यह हमारे शरीर के अंदर घुस जाते हैं। इसके अलावा यह माइक्रोओरगनीस्म कई प्रकार के क्रियाओं का भी जिम्मेदार हैं।
इस सूक्ष्मजीव से जुड़ी कुछ चौंका देने वाली बातें :-
लंबे-लंबे “फ़िलामेंट” (Filament) के आकार में बढ्ने वाला यह माइक्रोओरगनीस्म अपने अंदर से एक विशेष प्रकार के पदार्थ को बनाता हैं। इसे “जिओइस्मिन” (Geosmin) कहा जाता हैं। मित्रों! चौंका देने वाली बात तो यह है की, मिट्टी की जो खुशबू आती हैं वह इसी जिओइस्मिन के वजह से ही आती हैं। इसके अलावा हाल ही में जोता गया खेत में जो मिट्टी की खुशबू बहती रहती हैं वह भी इसी पदार्थ के कारण ही आता हैं।
इसके अलावा जमीन के अंदर उगने वाले सब्जियां जैसे बिट आदि का स्वाद भी इसी पदार्थ का दें हैं। वैसे इस पदार्थ से इंसानी सभ्यता को पनपने काफी मदद मिला हैं। वैज्ञानिक कहते हैं की, जिओइस्मिन को इंसान बहुत दूर से सटीक तरीके से सूंघ सकता हैं। इसका कारण यह है की, हमारे पूर्वज इस गंध से काफी ज्यादा परिचित थे और इसके जरिए वह अपना स्वार्थ-साधन करते थे।
खैर कुछ वैज्ञानिक यह भी तर्क देते हैं की, इस पदार्थ के चलते जब कहीं मिट्टी गीली होती थी तब इस गंध को सूंघते हुए हमारे पूर्वज उस जगह पर पहुँच जाते थे। मिट्टी गीली होने की वजह से वह लोग बड़े ही आसानी के साथ खेत को जोत सकते थे और जिससे खेती के लिए भी और आसानी हो जाती थी। इसके अलावा Streptomyces से हम बहुत प्रकार के औषधि को बना सकते हैं। कहा जाता हैं की, इससे तरह-तरह के एंटी-बायोटिक दवाइयाँ बनाई जाती हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
मित्रों ! मेँ आपको और भी बता दूँ की, Streptomyces के अंदर फफूंद को फैलने से रोकने का भी एक गुण मौजूद हैं। इसके कारण इंसान के अलावा भी कई सारे प्राणी इसे अपने रोग प्राकृतिक रूप से दूर करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। पुराने समय में इसीलिए तो लोग मिट्टी को दबाई की तरह इस्तेमाल करते थे। इसलिए तो अकसर कई सारे जीव मिट्टी को चाट रहे होते हैं, क्योंकि वह अपना इलाज कर रहें होते हैं।
Source :- www.bbc.com