आरती करना हिन्दू परंपरा की बहुत प्राचीन पद्धति है, जिसे हर कोई पूजा करने के बाद करता है। आरती अंधकार में बैठे भगवान की प्रतिमा को भक्तों को दिखाने मात्र को नहीं की जाती. क्योंकि झाड़, फानूस और बिजली के प्रखर प्रकाश की विद्यमानता में भी टिमटिमाता दीपक लेकर निरंतर आरती की ही जाती है. अतः यह एक शास्त्रीय विधान है जिसे तो दुर्भाग्यवश आज प्रायः पुजारी भी नहीं जानते कि दीपक को बाएं से दाएं और दाएं से बाएं किधर क्या कितनी बार घूमना आवश्यक है।
आरती कैसे करना चाहिए या आरती कैसे घूमना चाहिए ?
भावनावाद सिद्धांत के अनुसार इसका वास्तविक रहस्य यह है कि जिस देवता की आरती करनी हो, उसी देवता का बीज मंत्र स्नान-स्थाली निराजन-स्थाली, घंटिका और जल कमंडलु आदि पात्रो पर चंदन से लिखना चाहिए और फिर आरती के द्वारा भी उसी बीज मंत्र को देव प्रतिमा के सामने बनाना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति तत्तद देवताओं के विभिन्न बीज मंत्र का ज्ञान ना रखता हो, तो सर्ववेदों के बीजभूत प्रणव = ओंकार ( ॐ ) को ही लिखना चाहिए, अर्थात आरती को ऐसे घुमाना चाहिए की ॐ वर्ण की आकृति उस दीपक द्वारा बन जाए।
आरती को कितनी बार घुमाना चाहिए
आरती कितनी बार घुमाना चाहिए ? इसका रहस्य यह है कि जिस देव की जितनी संख्या लिखी हो, उतनी ही बार आरती घुमाना चाहिए. जैसे गणेश चतुर्थ तिथि के अधिष्ठाता हैं, इसलिए चार आवर्तन होने चाहिए. विष्णु आदित्यों में परिगणित होने के कारण द्वादशात्मा माने गए हैं, इसलिए उनकी तिथि भी द्वादशी है और महामंत्र भी द्वादशाक्षर है. अतः वैष्णो की आरती में 12 आवर्तन आवश्यक है. सूर्य सप्तरश्मि है, सात रंग की विभिन्न सात किरणों वाले, सात घोड़ो से युक्त रथ में बैठा है. सप्तमी तिथि का अधिष्ठाता है. अतः सूर्य आरती में 7 बार बीज मंत्र का उद्धार करना आवश्यक है. दुर्गा की नव संख्या प्रसिद्ध है, नवमी तिथि है, नव अक्षर का ही नवार्ण मंत्र है. अतः 9 बार आवर्तन होना चाहिए. रुद्र एकादश है या शिव, चतुर्दशी तिथि के अधिष्ठाता है. अंत: 11 या 14 आवर्तन आवश्यक है।
Aapki di hui jankaro ke liye bahut dhnyawad. Ab humne jana ki bhagwan ki Aarti kyu karte hai.