Theory Of Relativity and Speed Of Light Hindi – भौतिकविज्ञान के बड़े-बड़े प्राध्यापक भी आइंस्टीन के सापेक्षतावाद के सिद्धान्त ( Theory Of Relativity) को सही तरीके से नहीं पढ़ाते | एक उदाहरण प्रस्तुत है।
माइकल्सन-मोर्ले के प्रयोग ने जब सिद्ध कर दिया कि सभी पदार्थों के लिए गति में गति जुड़ने का सिद्धान्त कार्य करता है किन्तु प्रकाश की गति में अन्य कोई गति जुड़कर उसे बढ़ा नहीं सकती.
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प्रकाश की गति सदैव स्थिर रहती है – Speed Of Light Is Constant
अर्थात पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपनी गति से घूम रही है तो पृथ्वी से प्रकाश छोड़ा जाय तो उसमें पृथ्वी की गति जुड़नी या घटनी चाहिए किन्तु ऐसा नहीं होता, प्रकाश की गति सदैव स्थिर रहती है | न्यूटनी भौतिकी में इस परिघटना की कोई व्याख्या सम्भव नहीं थी।
(इसका यह व्याख्या भी सम्भव है कि भारतीय शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी स्थिर है, अतः उसकी गति प्रकाश की गति में जुड़ने या घटने का प्रश्न ही नहीं उठता, किन्तु यह भिन्न विषय है जिसकी अभी चर्चा नहीं करनी है।
सापेक्षतावाद के अनुसार भी सूर्य को स्थिर मानकर पृथ्वी को गतिशील मानने में जितनी सच्चाई है उतनी ही सच्चाई भूकेन्द्रिक प्राचीन सिद्धान्त में भी होनी चाहिए क्योंकि दोनों में से कोई भी सन्दर्भ-फ्रेम निरपेक्ष नहीं है, सबकुछ सापेक्ष है।)
सापेक्षतावाद का सिद्धान्त – Theory Of Relativity
उसी अवसर पर आइंस्टीन ने अपना सापेक्षतावाद का सिद्धान्त प्रस्तुत किया | इस सिद्धान्त के अनुसार सिद्ध हो गया कि किसी भी पदार्थ के लिए प्रकाश की गति ही अन्तिम गति है जिसे पार करना असम्भव है।
किन्तु इस सिद्धान्त के बहुत से ऐसे निष्कर्ष भी हैं जो वैज्ञानिकों को हजम नहीं हो पाते जिस कारण खण्डन करने की योग्यता न होने के कारण वे चुप रहते हैं।
उन महत्वपूर्ण बिन्दुओं के बारे में कुछ नहीं बोलते — जो सरासर बेईमानी है | सत्य रास न आये तो उसे देखकर शुतुरमुर्ग की तरह मुँह छुपाने को वैज्ञानिकता नहीं कहते।
जैसे-जैसे किसी पदार्थ की गति बढ़ती है, गति की दिशा में उस वस्तु की लम्बाई तथा उस वस्तु के लिए काल की गति घटने लगती है। प्रकाश की गति पर समय का बहाव तथा आकार बिलकुल शून्य हो जाता है एवं संहति (mass) अनन्त हो जाता है।
अतः किसी भी संहति वाले कण के लिए प्रकाश की गति को पाना असम्भव है वरना उसकी संहति ब्रह्माण्ड की संहति से भी अधिक हो जायेगी। – Theory Of Relativity
क्या प्रकाश की गति अनन्त है? – Is Speed Of Light Is Infinite?
Theory Of Relativity Hindi
किन्तु यह बात बताते समय यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रकाश की जिस उपरोक्त गति की बात की जाती है वह इनर्शियल फ्रेम ऑफ़ रिफरेन्स के सन्दर्भ में है, अर्थात किसी ऐसे सन्दर्भ में है जो जड़ माना गया है.
प्रकाश के तथाकथित कण फोटोन (Photon) के अपने सन्दर्भ-फ्रेम में देखें तो प्रकाश की गति अनन्त है क्योंकि उसके लिए काल ठहरा हुआ है | जब उसके लिए काल है ही नहीं तो वह बिना समय बिताये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में तत्क्षण व्याप्त हो सकता है।
उसका आकार भी शून्य है, अर्थात वह निराकार है | जो शून्य और निराकार है वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को पूरित करने की क्षमता रखता है, अर्थात उसका आकार शून्य भी है और अनन्त भी !!
कुछ घुसा माथे में ? भौतिकविज्ञान के बड़े-बड़े प्राध्यापकों के माथे में भी यह बात नहीं घुसती, क्योंकि उनका माथा इनर्शियल (जड़ता वाले) फ्रेम ऑफ़ रिफरेन्स (Frame Of Reference) के चौखटे में जड़ता से बंधा हुआ है, चैतन्यता के सन्दर्भ की बात सोच भी नहीं सकता |
93 वर्ष पहले श्रोडिन्गर ने सिद्ध कर दिया कि कण होता ही नहीं है, हर पदार्थ केवल तरंग है, उनके वेव मैकेनिक्स को नोबेल पुरस्कार भी मिल गया, किन्तु अभी तक क्वांटम मैकेनिक्स वाले अपने क्वांटम से चिपके हुए है (विकिपीडिया पर श्रोडिन्गर का वेव-एक्युएशन पढेंगे तो उनके वेव-मैकेनिक्स का नाम ही गायब पायेंगे, उसे क्वांटम मैकेनिक्स के अन्तर्गत रखा गया है –
– https://en.wikipedia.org/wiki/Schr%C3%B6dinger_equation)| प्रकाश के कण को भी फोटोन नाम का क्वांटम कहते हैं जिसका आकार और संहति शून्य है |
जब आकार है ही नहीं तो वह कण कैसे हुआ ? बिचारे आइंस्टीन भी फोटोन की बात ही करते थे, क्योंकि जब उनका सिद्धान्त बना तब श्रोडिन्गर का वेव मैकेनिक्स आया ही नहीं था |
इलेक्ट्रान की दोहरी प्रकृति – Dual Nature Of Electrons
वेव मैकेनिक्स (Wave mechanics) से तालमेल बिठाने के लिए क्वांटम मैकेनिक्स (quantum mechanics) को भी सुधारा गया | अब पढ़ाते हैं कि परमाणु के भीतर नाभिक के चारों ओर ऑर्बिटल में जब इलेक्ट्रान घूमता है तो किसी एक बिन्दु पर नहीं पाया जा सकता.
जब कभी उसे ढूँढने का प्रयास किया जाएगा तो वह ऑर्बिटल में चारों ओर मिलेगा, कहीं उसकी संभावना कम होगी तो कहीं अधिक ! इसे इलेक्ट्रान क्लाउड का घनत्व कहते हैं..
वेव मैकेनिक्स के अनुसार जहाँ तरंग (वेव पैकेट) की सघनता अधिक होती है वहाँ मनुष्य की इन्द्रियों की बनावट के कारण कण दिखने का आभास होता है।
इस आभासीय संसार को पञ्च-भौतिक प्र-पञ्च अथवा माया कहते हैं | भारतीय दर्शन के अनुसार पाँच इन्द्रियों को जो कुछ अनुभव होता है उसे पाँच भूत माना जाता है |
अर्थात भौतिक पदार्थ का अस्तित्व इन्द्रियों पर निर्भर करता है | यदि अनुभव करने वाली इन्द्रियाँ कहीं न हों तो भौतिक पदार्थ का भी अस्तित्व नहीं है | इन्द्रियों से निरपेक्ष किसी भौतिक पदार्थ की सम्भावना सिद्ध नहीं की जा सकी है।
क्वार्क (Quarks) और उपनिषद –Theory Of Relativity Hindi
आजकल क्वार्क (Quarks) नाम के तीन काल्पनिक कणों को मौलिक कण होने की बकवास की जाती है, इसे क्वांटम क्लोरो-डायनामिक्स कहा जाता है जिसपर नोबेल पुरस्कार भी दिया जा चुका है, किन्तु क्वार्क को सामान्य कण नहीं समझना चाहिए |
उनमें सामान्य कणों वाले गुण नहीं होते और उनका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता। उनमें विशिष्ट गुण होते हैं जिनके संयोजन से विभिन्न परमाण्विक कणों का निर्माण होता है।
क्वार्क और प्रकृति के गुण
इन तीन मौलिक कणों को श्वेत, लाल और काले क्वार्क कहा जाता है (मनुष्य को दिखने वाले रंग ये नहीं हैं, ये विशिष्ट गुणों के नाम हैं)| उपनिषदों में भी प्रकृति के मूल गुणों को श्वेत, लाल और काला, अर्थात सत, रज तथा तम “गुण” कहा जाता है।
“गुण” उसे कहते हैं जो घट या बढ़ सके, जिसे न्यून या अधिक गुणित किया जा सके | जो अपरिवर्तनीय हो उसे निर्गुण कहते हैं | उस निर्गुण अपरिवर्तनीय अ-जड़ वा चैतन्य में कई दिव्य गुण होते हैं ।
जो प्रकृति के घटने-बढ़ने वाले गुणों से भिन्न होते हैं, जैसे कि निराकार होना, एक ही समय में शून्य और अनन्त होना, स्वयं गुप्त रहकार सबकुछ प्रकाशित करने की क्षमता रखना, आदि-आदि |
एक चैतन्य तत्त्व ही सत्य – श्रोडिन्गर
सम्पूर्ण सृष्टि के सभी पदार्थों को तरंग सिद्ध करने वाले भौतिकवैज्ञानिक श्रोडिन्गर आजीवन भारत के अद्वैत वेदान्त दर्शन के कट्टर समर्थक बने रहे |
उनका मानना था कि केवल एक चैतन्य तत्त्व ही सत्य है जिसकी सत्ता समस्त पदार्थों में है और इन्द्रियों को वे पदार्थ विभिन्न कणों के रूप में दिखने का भ्रम होता है |
नील्स बोर के नेतृत्व में क्वांटम मैकेनिक्स के समर्थकों की बहुत बड़ी टीम भी चैतन्यता के सिद्धान्त की खुली वकालत करती थी जिसमें बहुत से नोबेल पुरस्कार प्राप्त भौतिकविद भी थे |
उनका कहना था कि इलेक्ट्रान, प्रोटोन आदि कणों में भी चेतना होती है जिसके कारण ही सारी प्रक्रियाएं हो पाती हैं। समस्त पदार्थों में एक ही चैतन्य सत्ता विद्यमान है जिस कारण Action at a distance हो पाता है, वरना किसी कण का गुरुत्व, चुम्बकत्व, विद्युत, नाभीकीय, आदि बलों का प्रभाव उस वस्तु के आकार की सीमा से बाहर सम्भव नहीं हो पाता |
संसार में सबकुछ सापेक्ष है –
सम्पूर्ण विश्व में आसुरी शिक्षा माफिया का साम्राज्य है जो महान वैज्ञानिकों के मतों को सावधानीपूर्वक काट-छाँट करके नास्तिक आसुरी भौतिकवाद पढ़ाते हैं |
बहुत परिश्रम करके महान वैज्ञानिकों के मूल ग्रन्थ समझने का प्रयास करेंगे तब जाकर सच्चाई समझ में आयेगी | परिश्रम करेंगे तो उपरोक्त बातो के कई साक्ष्य इन्टरनेट पर भी मिल जायेंगे |
भौतिक विश्व के जड़ संसार में सबकुछ सापेक्ष है, कुछ भी अन्तिम सत्य और निरपेक्ष नहीं है, किन्तु प्रकाश के अपने लोक में न तो भौतिकता है और न उसकी जड़ता, न तो समय की सीमा है और न देश का बन्धन ! स्वच्छन्द उन्मुक्त आ-काश का प्र-काश है, शेष सबकुछ उसी का खेल है क्योंकि वही सबकुछ दिखाता है !
किन्तु हम प्रकाश के कारण वस्तुओं को देखते हैं, प्रकाश को नहीं देखते । अतः हमारी इन्द्रियों के लिए प्रकाश भी अन्धकार ही है ।
भूतकाल बीत गया अतः नहीं है, भविष्य आया नहीं अतः वह भी नहीं नहीं है, वर्तमान की कोई अवधि ही नहीं है, अतः जो वास्तव में है उसकी कोई अवधि काल में मापी ही नहीं जा सकती, अतः जिस सत्य की वस्तुतः सत्ता है वह कालातीत है , वह अपरिवर्तनीय है क्योंकि पूर्ण है, परिवर्तन से काल का सम्बन्ध होता है |
– क्या है स्टीफन हॉकिंग द्वारा समय यात्रा का सिद्धांत?
तरंग भी सच्चाई नहीं है | सत्य में विक्षोभ का आभास ही तरंग है जो कभी-कभी कण होने का भी आभास कराता है | तरंग और कण दोनों आभासीय हैं | सत्य है चैतन्यता जो सनातन, निर्विकल्प, निराकार, अपरिवर्तनीय, सर्वव्यापी, शान्त है | तरंग अशान्ति है जो जीवलोक में ईच्छाओं के जंजाल से पैदा होती हैं |
Things-in-themselves (Noumena)
वेव पैकेट की डेंसिटी जब थ्रेशोल्ड से अधिक होती है तो कण की तरह दिखता है | उसका वास्तविक व्यवहार कैसा है यह मनुष्य नहीं जान सकता | Things-in-themselves (Noumena) आधुनिक विज्ञान की पँहुच से बाहर है, आधुनिक विज्ञान केवल Things-to-us (Phenomena) का ही अध्ययन कर सकता है जो Positivism का आधार है |
Positivism के जनक Mach आइंस्टीन के गुरु थे और यह दर्शन आधुनिक विज्ञान का मूल है — केवल एन्द्रिक तथ्यों को ही “तथ्य” माना जा सकता है | इसका अर्थ यह है कि आधुनिक विज्ञान केवल मनुष्य जाति को प्रतीत होने वाले ऐन्द्रिक आभासीय लोक का ही अध्ययन कर सकता है |
आधुनिक विज्ञान के दर्शन की तह में जायेंगे तो मिलेगा कि आधुनिक विज्ञान असल में मनोविज्ञान का हिस्सा है और मनोविज्ञान भी असल में भाषाविज्ञान का अंग है, किन्तु म्लेच्छों के भाषाविज्ञान का नहीं | एक उदाहरण प्रस्तुत है :–
ज्योतिष के अनुसार मधुमेह (डायबिटीज) के कारक हैं गुरु (बृहस्पति) और शुक्र का कुण्डली में अशुभ होना | गुरु के कारण गुरुकोज (ग्लूकोज) तथा शुक्र के कारण शुक्रोज की समस्या होती है | अब डॉक्टर लोग मुझे गरियायेंगे !!!
कुछ भी निरपेक्ष Absolute नहीं है
सापेक्षतावाद के सिद्धान्त (Theory Of Relativity) के अनुसार कुछ भी निरपेक्ष Absolute नहीं है, सबकुछ अपने सन्दर्भ के ही सापेक्ष है | किन्तु सबकुछ को देखने के लिए प्रकाश तो चाहिए !
और प्रकाश के लोक में कोई परिवर्तन सम्भव नहीं क्योंकि वहाँ काल है ही नहीं, तो वह Absolute हुआ या नहीं ? इस प्रकार सापेक्षतावाद का सिद्धान्त स्वयं अपना ही खण्डन करता है या नहीं ? अब भौतिक वाले भी मुझे गरियायेंगे !!!
साभार – आचार्य विनय झा