भारत श्रषि-मुनियों की धरती रही है। पुरातन काल से लेकर अभी तक भारत ने बहुत से महात्माओं को देखा है, महात्माओं ने ही आध्यात्म जगत को पुन: भारत में स्थापित किया था। संतो की पावन भूमि को हमेशा संतो ने ही संभाला है।
संत और महात्मा लोग हमारे जीवन को प्रकाशवान करते ही हैं , अपितु अपनी सुख-सुविधा त्यागकर देश का भी कल्याण करते हैं। एक ऐसे ही परम संत थे जो हनुमान जी के परम भक्त थे, बहुत से लोग तो उन्हें साक्षात हनुमान जी ही कहते थे। उन्होनें बहुत लोगों की निराश जिंदगी को सुधारा था।
उनके दरबार में भक्तों का तांता लगा ही रहता था। बाबा किसी भी भक्त में भेदभाव नहीं करते थे, चाहें वह भक्त धनवान हो या फिर नितांत गरीब। हम बात कर रहे हैं श्री नीम करौली बाबा की जो साक्षात कलियुग में हनुमान जी के ही अवतार थे।
जीवन परिचय
बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में एक ब्रहाम्ण परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। माना जाता है कि बाबा ने लगभग सन् 1900 के आसपास जन्म लिया था, और उनका जन्म से ही लक्ष्मी नारायण नाम रख दिया था।
महज 11 वर्ष की उम्र में ही बाबा की शादी करा दी गई थी। बाद में उन्होंने अपने घर को छोड़ दिया था। एक दिन उनके पिताजी ने उन्हें नीम करौली नामक ग्राम के आसपास देख लिया था । यह नीम करौली ग्राम खिमसपुर , फर्रूखाबाद के पास ही था। बाबा को फिर आगे इसी नाम से जाना जाने लगा। माना जाता है कि लगभग 17 वर्ष की उम्र में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी।
नीम करौली बाबा ने 1958 में अपने घर को त्याग दिया था , यह वह समय था जब उनके पास एक 11 साल की कन्या थी और एक छोटा सा बच्चा भी था। गृह-त्याग के बाद बाबा पुरू उत्तर भारत में साधू की भाँति विचरण करने लगे थे। इस समय के दौरान उन्हें लक्ष्मण दास, हांडी वाला बाबा , और तिकोनिया वाला बाबा सहित कई नामों से जाना जाता था। जब उन्होंने गुजरात के ववानिया मोरबी में तप्सया प्रारंभ की तब वहाँ उन्हें लोग तलईया बाबा के नाम से जानते थे।
वृंदावन में स्थानीय निवासियों ने बाबा को चम्तकारी बाबा के नाम से संबोधित किया। उनके जीवन काल में दो बड़े आश्रमों का निर्माण हुआ था, पहला वृदांवन में और दूसरा कैंची में, जहाँ बाबा गर्मियों के महीनों को बिताते थे । उनके समय में 100 से ज्यादा मंदिरों का निर्माण उनके नाम से हुआ था।
नीम करौली बाबा हनुमानजी के बहुत बड़े भक्त थे। उन्हें अपने जीवन में लगभग 108 हनुमान मंदिर बनवाए थे। वर्तमान में उनके हिंदुस्तान समेत अमरीका के टैक्सास में भी मंदिर हैं।
कैंची आश्रम जहाँ बाबा अपने जीवन के अंतिम दशक में रहे थे उसका निर्माण 1964 में हुआ था। इसकी खास बात थी कि इस आश्रम में हनुमान जी का भी मंदिर बनावाया गया था।
बाबा को वर्ष 1960 के दशक में अन्तरराष्ट्रीय पहचान मिली। उस समय उनके एक अमरीकी भक्त बाबा राम दास ने एक किताब लिखी जिसमें उनका उल्लेख किया गया था। इसके बाद से पश्चिमी देशों से लोग उनके दर्शन तथा आर्शीवाद लेने के लिए आने लगे।
बाबा ने अपने शरीर को 11 सिंतबर , 1973 को छोड़ दिया था और अपने भगवान हनुमान जी के सानिध्य में चले गये। बाबा हम सभी के लिए प्रेरणा के स्रोत थे, माना जाये तो कलियुग में हनुमान जी ही नीम करौली बाबा के नाम से जाने गये थे।
समये का साथ-साथ इन वर्षों में नैनीताल – अल्मोड़ा सड़क पर नैनीताल से 17 किमी स्थित मंदिर अब लोगों के महत्वपुर्ण तीर्थ बन गया है। 15 जून को जब कैंची धाम का मेला होता है तब मंदिर में लाखों श्रद्धालु आतें हैं और प्रसाद पातें हैं।
फेसबुक तथा एप्पल के संस्थापकों मार्क जुकरबर्ग, स्टीव जॉब्स को राह दिखाने वाले नीम करौली बाबा पश्चिमी देशों में भारत की विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके आश्रम में जहां न केवल देशवासियों को ही वरन पूरी दुनिया को प्रसन्न और खुशहाल बनने का रास्ता मिलता है वहीं दूसरी ओर प्राचीन सनातन धर्म की संस्कृति का भी प्रचार प्रसार होता है। हमेशा एक कम्बल ओढ़े रहने वाले बाबा के आर्शीवाद के लिए भारतीयों के साथ साथ बड़ी-बड़ी विदेशी हस्तियां भी उनके आश्रम पर आती हैं।
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