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उत्तराखंड की इस झील में मिले थे 200 से ज्यादा कंकाल, रहस्य आज भी है बरकरार

अपना देश भारत आश्चर्य से भरा हुआ है। हम अपने देश में जगह – जगह कोई ना कोई रहस्यमयी बात या स्थान सुन और देख लेते ही हैं। आपको रहस्य से भरी बहुत सी कहानियां सुनने को मिल जाएंगी. कुछ रोचक, तो कुछ रहस्मयी. इन कहानियों में कई ऐसी जगहों का वर्णन होता है कि जो न सिर्फ़ सुनने में, बल्कि देखने में भी दिलचस्प होती हैं।

स्रोत – आजतक

ऐसी ही एक जगह है उत्तराखंड की पहाड़ियों के बीच छिपी रूपकुंड झील. इस झील को कंकालों की भी झील कहा जाता है. साल 1942 में भारतीय वन विभाग के एक अधिकारी ने यहां कंकालों को खोज निकाला था. वन विभाग के अधिकारी यहां दुर्लभ फ़ूलों की खोज करने गए थे. एक रेंजर अनजाने में झील के भीतर किसी चीज़ से टकराया. देखा तो वहां कंकाल था. खोज की गई तो रहस्य और गहरा गया. झील के आस पास और गहराई में नरकंकालों का ढेर मिला. उनके साथ चल रहे मज़दूर तो इस दृश्य को देखते ही भाग खड़े हुए. इसके बाद शुरू हुआ वैज्ञानिक अध्ययन का दौर. 1950 में कुछ अमेरिकी वैज्ञानिक नरकंकाल अपने साथ ले गए।

शोध के बाद सामने आया कि वो नर कंकाल 12 से 13वीं सदी के हैं, जो यहां हुए हुई भारी बर्फ़ बारी के कारण मारे गए थे. इस शोध के बाद वैज्ञानिकों ने इस जगह में ख़ासी दिलचस्पी दिखाई थी।

स्रोत – आजतक

लेकिन ये झील उत्तराखंड के लोगों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा था. हालांकि यहां ज़्यादातर लोग पहुंच ही नहीं पाते थे. इसकी वजह थी इसका पहाड़ों के विरान जंगल में स्थित होना. इस झील के साथ कई कथाएं भी जुड़ी हैं, अपने पति के साथ कैलाश जाते समय नंदादेवी जब शिव के साथ रोती-बिलखती जा रही थीं. रास्ते में एक जगह उन्हें प्यास लगी. नंदा-पार्वती के सूखे होंठ देख शिवजी ने चारों ओर देखा लेकिन कहीं पानी नहीं दिखाई दिया, उन्होंने अपना त्रिशूल धरती पर मारा, धरती से पानी फूट पड़ा। नंदा ने प्यास बुझाई, लेकिन पानी में उन्हें एक खूबसूरत स्त्री दिखाई दी, जो शिव के साथ बैठी थी. नंदा को चौंकते देख शिवजी समझ गये, उन्होंने नंदा से कहा यह रूप तुम्हारा ही है. प्रतिबिम्ब में शिव-पार्वती एकाकार दिखाई दिये. तब से ही वह कुंड रूपकुंड और शिव अर्द्धनारीश्वर कहलाये. यहां का पर्वत त्रिशूल और नंद-घुंघटी कहलाया, उससे निकलने वाली जलधारा नन्दाकिनी कहलायी।

स्रोत – आजतक

इस कुंड के साथ न जाने कितनी कहानी जुड़ी हैं. इसमें कितनी सच्चाई है इसका प्रमाण शायद ही कोई दे पाए. लेकिन वैज्ञानिक और पुरातत्व विभाग भी इस झील के रहस्यों से पूरी तरह से पर्दा नहीं उठा पाया है।

Team Vigyanam

Vigyanam Team - विज्ञानम् टीम

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