हमारा ये ब्रह्माण्ड कितना विशाल और अद्भुत है! न जाने कितनी आकाशगंगाएं (Impossible Galaxies by James Webb) और सौर-मंडल इसके अन्दर मौजूद हैं। सोच के परे बहुत-बहुत भव्य हैं, हमारा ये ब्रह्माण्ड! शोध-कर्ताओं की मानें तो, ये ब्रह्माण्ड अनंत है और इसकी कोई सीमा ही नहीं है। तो, आप यहाँ समझ ही सकते हैं कि, हम कितने व्यापक खगोलीय चीज़ के बारे में बात कर रहे हैं। मित्रों! इस ब्रह्माण्ड के अन्दर अरबों-खरबों आकाशगंगाएं मौजूद हैं और हर एक आकाशगंगा अपने-आप में ही खास है। धीरे-धीरे हम इस सीमा हीन ब्रह्माण्ड को समझने का प्रयास कर रहे हैं, परंतु अब तक खास कुछ पता नहीं चल पाया है।
आज के इस लेख का विषय कई अनोखी आकाशगंगाओं (Impossible Galaxies by James Webb) के ऊपर है। मित्रों! मेरा यकीं मानिये जिस तरह की आकाशगंगाओं के बारे में हम यहाँ बातें करने वाले हैं, उन आकाशगंगाओं के बारे में आप लोगों ने शायद ही सुना होगा। कहने का मतलब ये हैं कि, इस तरह की आकाशगंगाएं अकसर हमें ब्रह्माण्ड में देखने को नहीं मिलते हैं, इसलिए आप लोगों से अनुरोध है कि, लेख को आरंभ से लेकर अंत तक जरुर पढिएगा।
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विषय - सूची
जेम्स-वेब ने खोजी कुछ अनोखी आकाशगंगाएं! – Impossible Galaxies by James Webb! :-
हाल ही में जेम्स-वेब (Impossible Galaxies by James Webb) ने कुछ विचित्र प्रकाश की किरणों को डिटेक्ट किया है, ये आमतौर पर दिखाई नहीं देते हैं। शोध-कर्ता कह रहे हैं कि, ये अनोखी किरण ब्रह्माण्ड के शुरूआती दिनों में बनी हुए आकाशगंगाओं से आ रहीं हैं। मित्रों! अगर ये बात सच होती हैं, तब तो गजब ही हो जाएगा। क्योंकि हम इससे ब्रह्माण्ड के बनने व इससे जुड़े कई सारे आरंभिक बातों को भी जान सकते हैं। मित्रों!आरंभिक बातों को जानने से हम ब्रह्माण्ड से जुड़े कई सारे रहस्यों से पर्दा भी उठा सकते हैं।
वेसे एक बात ये भी है कि, ये जो विचित्र प्रकाश की किरण है, ये असल में सितारों के बनने की प्रक्रिया के दौरान भी पैदा हो सकती हैं। इससे पहले भी शोध-कर्ताओं को इस तरह की किरणों को देखने का मौक़ा मिला था, जिससे उन लोगों ने इस बात का अनुमान लगाया था कि, ये शायद कुछ बेहद ही खास आकाशगंगाओं के गुच्छे से आने वाली रोशनी की किरण हैं। यानी इस तरह की आकाशगंगा ब्रह्माण्ड में काफी ज्यादा दुर्लभ होतींं हैं। मित्रों! इस तरह की आकाशगंगाएं अक्सर ब्रह्माण्ड के साधारण नियमों को भी तोड़ सकती हैं।
बिग-बैंग के 50 करोड़ साल बाद बनने वाली आकाशगंगाओं से इतना तीव्र प्रकाश निकल रहा होगा कि, ये वास्तव में इस ब्रह्माण्ड में अस्तित्व में आ ही नहीं सकता है। हालांकि! अगर ये आकाशगंगाएं हमारी “मिल्की-वे“ जितने बड़ी होंगी, तब ये आसानी से काफी तीव्र लाइट को ब्रह्मांड में छोड़ सकती हैं।
ब्रह्मांड में बदल सकते हैं कई नियम! :-
मित्रों! आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि, ब्रह्माण्ड के शुरूआती दिनों में बनने वाले आकाशगंगाएं (Impossible Galaxies by James Webb) पल भर में बन कर पल भर में ही ख़त्म हो जाते थीं। कहने का अर्थ ये है कि, ब्रह्माण्ड की शुरूआती आकाशगंगाओं की जीवन-आयु काफी कम थी। आज की आकाशगंगाओं की बात करें तो, ये काफी पुरानी हैं। क्योंकि ये ब्रह्माण्ड के बनने के काफी समय बाद बनी हुई हैं।
आज की बात करें तो, शोध कर्ता सुपर कंप्यूटर के जरिये इन आकाशगंगाओं के बारे में बड़ी डिटेल से जांच रहे हैं। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार ये पता चलता है कि, जितनी चमकीले ये आकाशगंगा हमें नजर आती हैं, असल में उस चमक की तुलना में इनका आकार काफी ज्यादा कम है। आमतौर पर आकाशगंगा जितनी बड़ी होगी, उसी हिसाब से उसकी चमक भी उतनी ज्यादा होगी। वेसे एक बात यहाँ ये सामने आती है कि, बिग-बैंग के तुरंत बाद आखिर कैसे इतनी जल्दी आकाशगंगाओं का बनना संभव हो रहा है। क्योंकि बिग-बैंग के तुरंत बाद ब्रह्माण्ड में इतनी मास था ही नहीं, जिससे आकाशगंगाओं को बनाया जा सकता है।
हालांकि! कुछ शोध-कर्ता ये भी कहते हैं कि, ब्रह्माण्ड के शुरूआती दिनों में आकाशगंगाओं को बनाया जा सकता था। क्योंकि उन लोगों का कहना ये था कि, किसी भी आकाशगंगा को चमकीला होनें के लिए उसे आकार में बड़े होने की जरुरत नहीं है। बहरहाल ये विषय कई सारे विवादों से घिरा हुआ है। अलग-अलग थ्योरीस अलग-अलग बातें बताती हैं।
ब्रह्माण्ड की पहली आकाशगंगाएं! :-
असल में आज तक दुनिया के किसी भी शोध-कर्ता को सटीक रूप से ये नहीं पता है कि, ब्रह्माण्ड की सबसे पहली आकाशगंगाएं (Impossible Galaxies by James Webb) कब बनी हुई हैं। इसके आलावा उन्हें ये भी नहीं पता है कि, आखिर कब सितारें आपस में मिल कर आकाशगंगाओं को बनाना शुरू किए थे। तो, दोस्तों आप यहाँ अंदाजा लगा सकते हैं कि, हम इंसानों को इस विस्तृत ब्रह्माण्ड के बारे में कितना पता है।
वेसे एक रिपोर्ट के अनुसार बिग-बैंग होने के कुछ करोड़ सालों के अन्दर ही नए-नए आकाशगंगाएं बनना शुरू हो गई थी। आज के समय में जितनी भी गैलेक्सीस ब्रह्माण्ड में मौजूद हैं, लगभग सब 1-2 अरब साल पुराने हो चुकी हैं। यानी अभी का समय इन गैलेक्सीस के लिए वयस्कता का समय है। हालांकि! मिल्की-वे जैसे आकाशगंगाओं को बनने के लिए कई छोटे-छोटे आकाशगंगाओं को आपस में मिलना पड़ता हैं, तब जा कर कहीं इतने बड़े आकाशगंगा का निर्माण हो पाता हैं।
आकाशगंगाओं के बनने की प्रक्रिया काफी ज्यादा जटिल हैं। क्योंकि इनके बनने का टाइम-फ्रेम काफी ज्यादा लम्बा हैं। इसके अलावा हमारे मिल्की-वे जैसी आकाशगंगाओं को बनने के लिए कई तरह के अवस्थाओं की जरुरत होते हैं। बिना इन अवस्थाओं के इतने बड़े आकाशगंगाओं का अस्तित्व में आना संभव ही नहीं हैं।
मिल्की-वे जैसी आकाशगंगाएं! :-
जेम्स-वेब (Impossible Galaxies by James Webb) ने हाल ही में हमारे मिल्की-वे जैसे कई तरह के अलग-अलग आकाशगंगाओं को ढूंढ लिया हैं। जिसका मतलब ये हैं कि, शायद हम इस ब्रह्माण्ड में अकेले नहीं हैं। वेसे यहाँ एक खास बात ये हैं कि, ब्रह्माण्ड में कुछ ऐसे “Proto-Galaxies” भी हैं, जो की हुबहू हमारे मिल्की-वे जैसी ही दिखाई देते हैं।
एक खास बात ये भी है कि, ब्रह्माण्ड के शुरूआती दिनों में जितने भी आकाशगंगाएं बनी हुई थीं; वो सारे के सारे एक झटके में पल-भर में बने थे। परंतु आज के जितने भी आकाशगंगाएं ब्रह्माण्ड में मौजूद हैं, वो सब धीरे-धीरे बने हुए हैं। कुछ शोध-कर्ता ये भी कहते हैं कि, ब्रह्माण्ड के शुरूआती दिनों में तीव्र चमक का कारण ही, सितारों का बनना हैं। ऐसे में इन चीज़ों की अहमियत कितनी ज्यादा हैं, ये आप खुद भी सोच सकते हैं। पहले के टाइम सितारे अपने अन्दर गैस को ले कर बाद में उसे अपने-अन्दर से बाहर कर देते थे।
तो, सुपरनोवा जैसी घटनाओं के चलते एक सितारे का देहांत होता था। वेसे एक जोर के धमाके से फटने के लिए सितारों को काफी समय तक इंतेजार करना पड़ता था। परंतु जैसे-जैसे ब्रह्माण्ड पुराना होता गया और इसका मास बढ़ने लगा वेसे-वेसे ग्रेविटी भी हर एक चीज़ की बढ़ने लगी। ये ही वजह हैं कि, आज सितारे काफी धीमी गति से बनते हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
ब्रह्माण्ड में (Impossible Galaxies by James Webb) आज हम जितने भी चमकीले घटनाओं को होते हुए देख रहे हैं, वो सभी के सभी काफी बड़े-बड़े सितारों के जरिये ही संभव हो पा रहें हैं। वेसे सितारों का वजन और उनके अन्दर मौजूद एनर्जी ही, उनके चमक को निर्धारित करते हैं। इसलिए आज भी इनके ऊपर काफी शोध होना बाकी है।