एक हसरत अजब सी ना जाने वो क्यूँ थी ,
मगर तोड़ा उसने कई बार हमको ,
टूटते – टूटते भी निकल हम ना पाए ,
कैसे बताएं सच्चाई ये सबको I
बात उसकी करें तो वो हसरत कुछ यूँ थी
अगर एक रिश्ता , है हमारा किसी से ,
फिर चाहे वो गहरा या कच्चा किसी से ,
हमने चाहा कशिश वो रहे सिर्फ हमतक ,
मगर हो ना पाया कभी ये किसी से I
जानते थे ये हम भी , ये हसरत गलत है ,
मानते थे ये फिर भी की ये होगा कभी तो ,
थे गलत हम यहाँ भी जो समझे नही थे ,
की होगा ना मुमकिन शायद ये कभी तो I
वक़्त ने दी थी हसरत , वक़्त ने ही सिखाया ,
नहीं होता पूरा हमेशा ही सब कुछ ,
दायरा हसरतों का तो होता नही है ,
हो अगर दायरा तो है मिलता बहुत कुछ I