Hemu Emperor Story Hindi – मुगल शासकों की बात की जाये तो अकबर का नाम काफी सम्मान और आदर के साथ लिया जाता है, वजह ये है कि उसने प्रजा के हित में कई काम कराये थे। कई हिन्दू-मुस्लिम एकता की भी मिसालें उसने कायम की थीं।
हिन्दू, मुस्लिम और कई समुदायों से युद्ध में अकबर विजयी ही रहा. पर एक ऐसा योद्धा भी था, जिसने बादशाह अकबर को युद्धभूमि में हार का स्वाद चखाया था. अंतिम हिन्दू शासक हेमू विक्रमादित्य ने अकबर को उसकी विशाल सेना के साथ हराकर अपना नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखवा लिया।
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सामान्य परिवार में जन्म
इतिहासकारों के पास हेमू के वंश के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है, पर इतना तो ज़रूर था कि हेमू का उदय बहुत ही सामान्य परिवार से हुआ था. उनका बचपन दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के एक शहर रेवारी में बिता था. अपने परिवार की आर्थिक सहायता के लिए हेमू ने दस्ताकर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. पर सन 1545 में शेर शाह सूरी की मृत्यु के बाद उनके बेटे इस्लाम शाह गद्दी पर बैठे और हेमू को बाज़ार का नियंत्रक बना दिया. धीरे-धीरे अपने काम की बदौलत हेमू मुख्य सलाहकार के पद तक पहुंच गए।
अफ़गानी विद्रोहियों का सामना डट कर किया
फिर इस्लाम शाह की मौत के बाद आदिल शाह के हाथों में शासन की बागडोर चली गई. हेमू आदिल के मुख्यमंत्री बन गए. इसी दौरान हेमू ने अफ़गानी विद्रोहियों का सामना डट कर किया और कई युद्ध लड़े. लगभग 22 युद्धों में उनकी जीत हुई. मुगलों से भी सूरी शासकों का पुराना बैर था. हुमायूं के नेतृत्व में एक सेना ने आदिल शाह के साले सिकंदर शाह सूरी को हराया था. जब 1555 में हुमायूं की मौत हुई, तो हेमू ने इसे एक अच्छा मौका मान कर मुगलों पर हमला बोल दिया।
मुग़ल सेना को हराया
हेमू ने एक सेना को बस मार्च पर लगा दिया और मुग़लों को बयाना से लेकर आगरा तक ख़ूब भगाया. आगरा में मुगलों के गवर्नर ने लड़ाई लड़ने के बजाय वहां से भाग जाना ठीक समझा. हेमू ने अपनी जीत तब मानी, जब उन्होंने मुग़ल सेना को तुगलकाबाद में हराया. ये लड़ाई उन्होंने तरदी बेग खान को हराकर जीती थी. फिर अगले दिन हेमू ने दिल्ली पर हमला बोल दिया और जीत भी हासिल की. इसी जीत से उन्हें विक्रमादित्य की उपाधि मिल गई।
अकबर और हेमू
इन पराजयों से आहत होकर अकबर अपने दस हज़ार सैनिकों के साथ निकल पड़ा था. 5 नवम्बर 1556 को हेमू की सेना और अकबर की सेना का आमना-सामना हुआ, ये युद्ध पानीपत में हुआ था। अकबर की सेना ने हेमू की कमज़ोर सेना को काफ़ी घायल कर दिया. पर फिर भी हेमू सब पर भारी पड़ रहे थे. जब वो जीत के बहुत करीब थे, तभी एक तीर आकर उनकी दायीं आंख में फंस गया और उनकी मौत हो गई. तब अकबर के रक्षक बैरम खान ने हेमू का सिर काटने के लिए कहा, तो अकबर ने मृत आदमी का सिर कलम करने से मना कर दिया. इसलिए बैरम खान ने हेमू का सिर काट कर काबुल भिजवा दिया।
यह कहानी है एक वीर योद्धा की जिसने अपने दम पर हारी जंग को भी जीत लिया था, पर किस्मत के पर किस्मत से हार गया। हेमू की बहादुरी और उनका मनोबल ही उन्हें सम्राट बनता है।
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मज़ा आगया नई नई जानकारी मिलके
हमारे इतिहास में बहुत कुछ छिपाया गया है। मैंने तो नये शोधों में यह पढ़ा है कि हेमू की लगातार जीत से भयभीत बैरम खां और अकबर पानीपत के युद्ध में खुद नहीं गये थे, बल्कि पानीपत से पाँच कोस दूर अपना शिविर लगाया था और दूसरे सिपहसालारों के नेतृत्व में सेना को लड़ने भेजा था ताकि युद्ध में पराजय की खबर मिलने पर सुरक्षित रूप से निकल के भागा जा सके। वह तो उनके सौभाग्य से या कहें कि भारतीयों के दुर्भाग्य से, हेमू की आँख में तीर लगने से वह बेहोश हो गए और उन्हें बेहोशी की हालत में ही अकबर के शिविर में ले जाया गया। अकबर की दरियादिली तो आधुनिक इतिहासकारों ने जबरदस्ती किताबों में घुसेड़ी है। जबकि तथ्य यह है कि अकबर ने ही हेमू का सिर काटकर गाजी की उपाधि धारण की थी। बाद में हेमू के वृद्ध पिता को भी बन्दी बनाकर इस्लाम कबूल करने का दबाव बनाया गया था, लेकिन उनके इन्कार पर उनको भी मार डाला गया।