इंसान की सोच एक दिन शायद हमें काफी ऊपर तक ले कर जाएगी। जिन चीजों के बारे में शायद कभी हमने सोचा भी नहीं होगा, आज वो चीज़ें सच बन कर सामने आ रहीं हैं। ऐसे में मानवबुद्धि की और लगन की प्रशंसा जरूर करनी पड़ेगी, क्योंकि जिस गति से हमने इस धरती पर अपने-आप को विकसित किया हैं वो किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। मित्रों! आज हम ऐसे-ऐसे चीजों को अंजाम दे सकते हैं, जो शायद पिछले सदी के लोग कभी अपने कल्पनाओं में भी नहीं ला सकते थे। सूर्य-ग्रहण (First Artificial Solar Eclipse) जो की एक प्राकृतिक खगोलीय प्रक्रिया हैं, उसको भी हम आज अपने अनुसार अंजाम दे सकते हैं।
तो, जी हाँ! हम लोगों ने काफी तरक्की कर ली हैं और सूर्य-ग्रहण (First Artificial Solar Eclipse) जैसे एक बड़े प्रक्रिया को अंजाम देने में भी सक्षम हैं। खैर अब तो आप लोगों ने जान ही लिया होगा कि, आज का हमारा विषय किस चीज़ पर आधारित हैं। दोस्तों! आज हम कृत्रिम सूर्य ग्रहण के बारे में चर्चा करेंगे और जानेंगे कि, आखिर ये चीज़ असल में क्या हैं और इसे आखिर कैसे सफल व हकीकत बनाया जा सकता हैं! इसलिए आप लोगों से अनुरोध हैं कि, इस लेख को आरंभ ले कर अंत तक जरूर पढ़िएगा, ताकि आपको इस लेख से काफी कुछ दिलचस्प बातें जानने को मिलें।
खैर चलिये अब लेख में आगे बढ़ते हुए इसे शुरू करते हैं, जानते हैं कि; आखिर किस हिसाब से कृत्रिम सूर्य ग्रहण को अंजाम दिया जा सकता हैं।
इन्सानों के द्वारा बनाया गया सूर्य ग्रहण! – First Artificial Solar Eclipse :-
मित्रों! बात ये हैं कि, इस साल के अंत होते-होते यूरोपीय स्पेस एजेंसी “ESA” दो ऐसे सैटेलाइट्स को छोड़ने में तैयार हो रहा हैं, जो की शायद आने वाले समय में कृत्रिम सूर्य-ग्रहण (First Artificial Solar Eclipse) को अंजाम दे सकते हैं। वैसे इस मिशन को वैज्ञानिकों ने “Proba-3” का नाम दिया हैं। आप लोगों की अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, इस मिशन के चलते ईएसए पृथ्वी के लोवर ओर्बिट में दो सैटेलाइट्स को लौंच करने वाला हैं।
वैसे इस मिशन का मूल उद्देश्य सूर्य के वातावरण को गहन रूप से अध्ययन करना हैं। हालांकि! अगर ये मिशन सफल हो जाता हैं तो, हम सूर्य के जलवायु व सतह के बारे में भी कई छुपी हुई राज के बारे में भी जान सकते हैं। जो कि शायद, आने वाले समय में हमारा सूर्य को देखने का नजरिया ही बदल कर रख देगा। ऐसे में आप सोच सकते हैं कि, ये मिशन कितनी ज्यादा अहम होने वाली हैं। क्योंकि सूर्य से जुड़ी हर एक जानकारी हमारे लिए किसी खजाने से कम नहीं हैं।
खैर इस मिशन के दौरान दो सैटेलाइट्स आपस में इस तरह से सिंक्रोंनाइज़ होंगी कि, ये कुछ समय के लिए पृथ्वी पर एक छोटे से सूर्य-ग्रहण को जन्म देंगी। आप लोगों को मेँ फिर से बता दूँ कि, इस तरह का मिशन अपने-आप में ही काफी ज्यादा खास हैं। क्योंकि इससे पहले इस तरीके के अद्भुत मिशन को कभी अंजाम ही नहीं दिया गया था। तो, ये मिशन देखना काफी रोमांचक होने वाला हैं।
मिशन के बारे में खास जानकारियाँ! :-
एक रिपोर्ट से ये पता चलता हैं कि, आने वाले समय में ये मिशन काफी ज्यादा व्यापक होने वाला हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार मिशन में छोड़े गए दो सैटेलाइट्स कृत्रिम तरीके से सूर्य-ग्रहण (First Artificial Solar Eclipse) को पैदा करने जा रहें हैं। इसके अलावा मेँ आप लोगों को बता दूँ कि, इस मिशन से हम सूर्य के नियर फील्ड स्टडि को अंजाम देने जा रहें हैं। जिसका सीधा सा मतलब ये हैं कि, इतिहास में पहली बार इंसान सूर्य कि बाहरी वायुमंडल “कोरोना” को विश्लेषित करने जा रहा हैं।
खैर आने वाले 8 अप्रैल को एक सूर्य ग्रहण ऐसा भी होने वाला हैं, जो की भविष्य में इस स्पेस मिशन को एक अहम चरण तक पहुंचाने में मदद करने वाला हैं। वैसे यहाँ एक खास बात ये भी हैं कि, इस “प्रोबा-3” मिशन के अधीन दो सैटेलाइट्स को अन्तरिक्ष में छोड़ा जाएगा; जिनमें से एक का नाम “Coronagraph” और दूसरे का नाम “Occulter” हैं। यहाँ ओकुल्टर का काम कृत्रिम रूप से सूर्य-ग्रहण को अंजाम देने का हैं। दरअसल बात ये हैं कि, ओकुल्टर के जरिये हम सूर्य-ग्रहण को कॉपी कर सकते हैं। क्योंकि ये सूर्य और कोरोनाग्राफ के बीच आ कर एक निर्धारित मात्रा में सूर्य के किरणों को ब्लॉक कर सकता हैं।
सूर्य के किरणों में आने वाली इस ब्लोकेज के चलते, हम कुछ हद तक सूर्य-ग्रहण को कॉपी कर सकते हैं। वैसे अगर हम कृत्रिम रूप से सूर्य-ग्रहण को अंजाम देने में सक्षम हो जाते हैं, तब कोरोनाग्राफ में लगे कैमरे सूर्य के बाहरी वायुमंडल कोरोना की अच्छे से तस्वीर ले सकते हैं। जिससे काफी कुछ जानकारी मिल सकती हैं।
ये मिशन हैं काफी ज्यादा अनोखा! :-
स्पेस में अंजाम दिये जाने वाले ज़्यादातर मिशन काफी ज्यादा अनोखे होते हैं। कृत्रिम सूर्य-ग्रहण (First Artificial Solar Eclipse) से जुड़ा ये मिशन भी काफी ज्यादा रोचक हैं। लौंच के लगभग 19.5 घंटे बाद प्रोबा-3 के दोनों सैटेलाइट सूर्य के लोवर ओर्बिट में कृत्रिम सूर्य-ग्रहण को बनाने में सक्षम हो जाएंगे। वैज्ञानिकों के अनुसार हर 6 घंटों में एक बार ये सूर्य-ग्रहण को अंजाम दे सकते हैं। वैसे एक रिपोर्ट ये भी बताती हैं कि, सूर्य-ग्रहण को बनाते वक़्त दोनों ही सैटेलाइट एक-दूसरे से मात्र 144 मीटर के दूरी पर ही होंगे। तो, यहाँ आप खुद अंदाजा लगाएँ कि ये मिशन कितनी कठिन हो सकती हैं।
वैसे स्पेस में दो एयर-क्राफ्ट एक-दूसरे के इतने करीब आ कर काम करना, काफी ज्यादा चुनौती पूर्ण होता हैं। ऐसे में कोई गलती की गुंजाइश भी नहीं रहती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार अगर थोड़ी सी भी उंच-नीच हो गया तो, पूरा का पूरा मिशन वहीं तबाह हो जाएगा। खैर प्राकृतिक रूप से होने वाले सूर्य-ग्रहणों में हमें सूर्य की कोरोना काफी अच्छे से दिखाई पड़ती हैं, जब की साधारण स्थिति में इसे हमारे लिए देखना लगभग असंभव ही हैं।
मित्रों! आमतौर पर प्राकृतिक रूप से होने वाले सूर्य-ग्रहण लगभग 5-10 मिनट तक ही रहते हैं और वो भी साल में एक या दो बार ही होते हैं। ऐसे में इतने कम समय में सूर्य के कोरोना को स्टडि कर पाना हमारे लिए काफी ज्यादा मुश्किल हो जाता हैं। ये ही वजह हैं कि, इस मिशन को अंजाम दिया जा रहा हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
मित्रों! इस मिशन के जरिये वैज्ञानिक सोलर विंड, सोलर स्टोर्म और सूर्य के सकल एनर्जि आउटपुट के बारे में काफी कुछ जानकारियाँ इक्कठा कर सकते हैं। इसके अलावा इस कृत्रिम सूर्य ग्रहण (First Artificial Solar Eclipse) के जरिये आने वाले समय में हम कई बड़े-बड़े खगोलीय रहस्यों को भी जान सकते हैं। वैसे अधिक जानकारी के लिए आप लोगों को बता दूँ कि, ये दोनों के दोनों सैटेलाइट्स को एक प्राइवेट स्पेस कंपनी के द्वारा बनाया गया हैं। मित्रों! इस स्पेस कंपनी का नाम “Redwire Space” हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार ये मिशन काफी ज्यादा भविष्य वादी होने वाला हैं। इससे आने वाले समय में हम लोगों को काफी ज्यादा फायदा होगा। दोस्तों! आप लोगों को क्या लगता हैं, क्या यह मिशन वाकई में उतना महत्वपूर्ण हैं जितना इसको बताया जा रहा हैं? कमेंट कर के जरूर बताइएगा। वैसे यहाँ एक बात ये भीं हैं कि, आने वाले अप्रैल महीने में कोरोनाग्राफ के कैमरे को टेस्ट किया जाएगा। जिससे प्रोबा-3 स्पेसक्राफ्ट को अच्छे से जांचा व परखा जाएगा।
खैर अगर ये मिशन तय समय के अंदर रैडि हो जाता हैं, तब ये सूर्य के ऊपर होने वाले सबसे बड़े सोलर स्टोर्म को जांच सकता हैं। आप लोगों को बता दूँ कि, इस तरह के बड़े-बड़े सोलर स्टोर्म हर 11 सालों में एक बार होते हैं। इसलिए इनके बारे में भी जानना हम लोगों के लिए काफी जरूरी हैं।
Source :- www.livescience.com