भारत रहस्यों और चम्तकार से भरी हुई भूमि है, यहां हर दगह आपको रहस्यमयी चीजें दिख जाती हैं। आज हम इसी कड़ी में बात कर रहे हैं उत्तराखंड के एक रहस्यमयी मंदिर की जिसके बारे में लोगो का मानना है कि इसे महज एक रात में एक आदमी ने अपने एक हाथ से बनाया है। यह शिव मंदिर है पर यहां भगवान शिवलिंग की पूजा नहीं होती है- इसके पीछे भी एक रहस्य है , तो आइये जानते हैं –
उत्तराखंड राज्य के जनपद सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ से धारचूला जाने वाले मार्ग पर लगभग सत्तर किलोमीटर दूर स्थित है कस्बा थल जिससे लगभग छः किलोमीटर दूर स्थित है ग्राम सभा बल्तिर । यहीं पर एक अभिशप्त देवालय है नाम है एक हथिया देवाल। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
इसके बारे में मान्यता है कि एक आदमी ने एक ही रात में एक ही हाथ से और एक ही पत्थर पर इस मंदिर को बना दिया था। बारहवीं शताब्दी में बना ये मंदिर एक हथिया देवाल के नाम से जाना जाता है, लेकिन हैरान कर देने वाला हस्तशिल का ये अद्भुत्त नमूना आज भी उपेक्षित है।
एक हाथ से बना था मंदिर
इस मंदिर का नाम एक हथिया देवाल है जिसका मतलब है – एक हाथ से बना हुआ। यह मंदिर बहुत प्राचीन है और पुराने ग्रंथों, अभिलेखों में भी इसका जिक्र आता है। किसी समय यहां राजा कत्यूरी का शासन था। उस दौर के शासकों को स्थापत्य कला से बहुत लगाव था। यहां तक कि वे इस मामले में दूसरों से प्रतिस्पर्द्धा भी करते थे।
लोगों का मानना है कि एक बार यहां किसी कुशल कारीगर ने मंदिर का निर्माण करना चाहा। वह काम में जुट गया। कारीगर की एक और खास बात थी। उसने एक हाथ से मंदिर का निर्माण शुरू किया और पूरी रात में मंदिर बना भी दिया।
अद्भुत स्थापत्य कला
मंदिर की स्थापत्य कला नागर और लैटिन शैली की है। चट्टान को तराश कर बनाया गया यह पूर्ण मंदिर है। चट्टान को काट कर ही शिवलिंग बनाया गया है। मंदिर का साधारण प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा की तरफ है। मंदिर के मंडप की ऊंचाई 1.85 मीटर और चौड़ाई 3.15 मीटर है। मंदिर को देखने दूर- दूर से लोग पहुंचते हैं, परंतु पूजा अर्चना निषेध होने के कारण केवल देख कर ही लौट जाते हैं।
जाने रहस्य आखिर यहां पूजा क्यों नहीं होती है –
इस मंदिर से एक और खास बात जुड़ी है, जो इस मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग करती है। वो ये है कि ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पूजा अर्चना नहीं की जाती है। इससे जुडी एक कहानी है –
इस ग्राम में एक मूर्तिकार रहता था जो पत्थरों को काटकाटकर मूर्तियाँ बनाया करता था। एक बार किसी दुर्धटना में उसका एक हाथ जाता रहा। अब वह एक हाथ के सहारे ही मूर्तियाँ बनाना चाहता था। परन्तु गाँव के कुछ लोगों ने उसे यह उलाहना देना शुरू किया कि अब एक हाथ के सहारे वह क्या कर सकेगा? लगभग सारे गाँव से एक जैसी उलाहना सुन सुनकर मूर्तिकार खिन्न हो गया।
उसने प्रण कर लिया कि वह अब उस गाँव में नहीं रहेगा और वहाँ से कहीं और चला जायेगा। यह प्रण करने के बाद वह एक रात अपनी छेनी, हथौडी सहित अन्य औजार लेकर वह गाँव के दक्षिणी छोर की ओर निकल पडा। गाँव का दक्षिणी छोर प्रायः ग्रामवासियों के लिये शौच आदि के उपयोग में आता था। वहाँ पर एक विशाल चट्टान थी ।
अगले दिन प्रातःकाल जब गाँव वासी शौच के उस दिशा में गये तो पाया कि किसी ने रात भर में चट्टान को काटकर एक देवालय का रूप दे दिया है। कैतूहल से सबकी आँखे फटी रह गयीं। सारे गांववासी वहाँ पर एकत्रित हुये परन्तु वह कारीगर नहीं आया जिसका एक हाथ कटा था। सभी गांववालों ने गाँव मे जाकर उसे ढूंढा और आपस में एक दूसरे उसके बारे में पूछा परन्त्तु उसके बारे में कुछ भी पता न चल सका , वह एक हाथ का कारीगर गाँव छोडकर जा चुका था।
जब स्थानीय पंडितो ने उस देवालय के अंदर उकेरी गयी भगवान शंकर के लिंग और मूर्ति को देखा तो यह पता चला कि रात्रि में शीघ्रता से बनाये जाने के कारण शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बनाया गया है जिसकी पूजा फलदायक नहीं होगी बल्कि दोषपूर्ण मूर्ति का पूजन अनिश्टकारक भी हो सकता है। बस इसी के चलते रातो रात स्थापित हुये उस मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती। पास ही बने जल सरोवर में (जिन्हे स्थानीय भाषा में नौला कहा जाता है) मुंडन आदि संस्कार के समय बच्चों को स्नान कराया जाता हैं।
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साभार – विभिन्न हिन्दी स्रोत