Universe

अंतरिक्ष में अब बनेगा उल्कापिंड से खाना, वैज्ञानिकों की नई स्टडी

लंबे अंतरिक्ष मिशन में उल्कापिंड से खाना बनाकर, हम बहुत दूर तक जा सकते हैं।

कल्पना कीजिए कि अंतरिक्ष यात्री अपने अंतरिक्ष मिशन पर हों और उन्हें अचानक खाने की आवश्यकता पड़ जाए। जाहिर है, अंतरिक्ष में खाने को ढूँढना असंभव है। आवश्यक सप्लाई और अन्य चीजें प्राप्त करने के लिए हमें अभी भी पृथ्वी पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर खाने की सप्लाई बीच में खत्म हो जाए, तो मिशन को खत्म समझा जा सकता है। लेकिन अगर यह सप्लाई जारी रहे, तो मिशन बहुत दिनों तक चल सकता है और हमें कई रोचक चीजें देखने को मिल सकती हैं।

लेकिन यह कैसे संभव होगा? इस सवाल का जवाब खोजने के लिए वैज्ञानिक उल्कापिंड (Asteroids) की ओर देख रहे हैं। हमारे सौरमंडल में करोड़ों की संख्या में उल्कापिंड हैं। अगर हम इनसे अपना भोजन बना पाएं, तो शायद अंतरिक्ष अन्वेषण (Space Exploration) का इतिहास बदल जाए। लेकिन यह सब कैसे होगा, आइए जानते हैं…

उल्कापिंडो पर भोजन की खोज –

हाल में ही वैज्ञानिकों ने एक नई स्टडी के माध्यम से एक तकनीक का सुझाव दिया है, जिससे अंतरिक्ष यात्री उल्कापिंडो की सामग्री से भोजन तैयार कर सकते हैं। यह योजना उन अंतरिक्ष मिशनों के लिए खास तौर पर महत्वपूर्ण होगी, जो सौरमंडल के दूर-दराज हिस्सों तक जाएँगे। इससे बोजन की आपूर्ति पूरी हो सकती है।

वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के “इंस्टिट्यूट फॉर अर्थ एंड स्पेस एक्सप्लोरेशन (Institute for Earth and Space Exploration) के शोधकर्ताओं ने ऐसी प्रक्रिया की खोज की है, जिसमें माइक्रोब्स (जीवाणु) और उल्कापिंडो में मौजूद जैविक यौगिकों (organic compounds) का उपयोग करके खाद्य बायोमास (खाद्य पदार्थ) बनाया जा सके। इसका उद्देश्य यह ध्यान करना है कि अंतरिक्ष यात्रियों के पास लंबे स्पेस के मिशन्स के दौरान पर्याप्त भोजन हो।

अध्ययन के प्रमुख वैज्ञानिक एरिक पिल्स ने कहा, “अगर हमें सौरमंडल के दूर-दराज हिस्सों की खोज करनी है, तो हमें पृथ्वी से होने वाली आपूर्ति पर निर्भरता कम करनी होगी।”

पृथ्वी से आपूर्ति क्यों कठिन है?

फिलहाल, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर अंतरिक्ष यात्रियों को ज़्यादातर भोजन और सामान पृथ्वी से भेजा जाता है। लेकिन यह प्रक्रिया बहुत महंगी और जटिल है। इसमें खतरा भी है।

हालांकि, अंतरिक्ष में खेती करना संभव है, लेकिन यह एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है। इसी कारण शोधकर्ता सुझाव देते हैं कि भोजन के लिए एक वैकल्पिक स्थानीय स्रोत – उल्कापिंड हो सकते हैं।

यह भी जानें – पृथ्वी के लिए 5 सबसे खतरनाक उल्कापिंड!- 5 Most Dangerous Asteroids!

भोजन तैयार करने की प्रक्रिया

क्षुद्रग्रहों से प्राप्त ऑर्गेनिक कंपाउंड को ऑक्सीजन-रहित वातावरण में हाई तापमान पर तोड़ा जाएगा। इस प्रक्रिया को पाइरोलिसिस (pyrolysis) कहा जाता है।

  1. पत्थरों को तोड़ना: सबसे पहले, वैज्ञानिक इन क्षुद्रग्रहों के पत्थरों को बहुत ज्यादा गर्मी देंगे। इससे पत्थरों में से कुछ ऐसे पदार्थ निकलेंगे जिनका इस्तेमाल बैक्टीरिया खाना पसंद करते हैं।
  2. बैक्टीरिया को खिलाना: इससे जो हाइड्रोकार्बन बनेंगे, वे  बैक्टीरिया को खिलाए जाएँगे। माइक्रोब्स (बैक्टीरिया) इन पदार्थों को खाकर हमारे लिए खाना तैयार करेंगे, जिसे हम भोजन के रूप में खा सकेंगे।
  3. खाना तैयार: बैक्टीरिया से जो पदार्थ बनेगा, उसे हम खा सकते हैं। ये पदार्थ हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होगा।
An AI depiction Of Astronaut Mining The Asteroid.
उल्कापिंडो पर माइनिंग के जरिए हो सकती है खाने की आपूर्ति – AI Image

किन उल्कापिंडो (क्षुद्रग्रहों) का इस्तेमाल होगा?

वैज्ञानिकों ने कार्बोनेसियस कोंड्राइट्स (carbonaceous chondrites) नामक क्षुद्रग्रहों पर ध्यान दिया है, जिनमें 10.5% पानी और बड़ी मात्रा में जैविक मैटर होता है।

  • बेन्नू नाम का ऐसा ही एक क्षुद्रग्रह है, जिसका 2018 में नासा के OSIRIS-REx मिशन ने अध्ययन किया और नमूने एकत्र किए। ये नमूने सितंबर 2023 में पृथ्वी पर वापस लाए गए ताकि वैज्ञानिक उनका विश्लेषण कर सकें।

कितना भोजन बन सकता है?

वैज्ञानिकों के अनुसार, बेन्नू जैसे क्षुद्रग्रह से लगभग 50 से 6,550 मीट्रिक टन खाद्य बायोमास तैयार किया जा सकता है।

  • यह भोजन 600 से 17,000 अंतरिक्ष यात्रियों को एक वर्ष तक पोषण दे सकता है।
  • खाने का न्यूनतम उत्पादन तभी संभव होगा, जब केवल ऐलिफैटिक हाइड्रोकार्बन (aliphatic hydrocarbons) को भोजन में बदला जाए।
  • अगर अधिकतम उत्पादन चाहिए तो उसके लिए सभी अघुलनशील जैविक पदार्थ (insoluble organic matter) का उपयोग करना जरूरी होगा।

क्यों है ये खास?

  • लंबी यात्राएं आसान: मान लीजिए, अंतरिक्ष यात्री मंगल ग्रह पर जाना चाहते हैं। मंगल ग्रह पृथ्वी से बहुत दूर है। अगर उन्हें पृथ्वी से सारा खाना लेकर जाना पड़े तो यान बहुत भारी हो जाएगा और यात्रा बहुत महंगी पड़ेगी। लेकिन अगर वे अंतरिक्ष में ही खाना उगा सकेंगे तो वे बिना किसी परेशानी के लंबी यात्राएँ कर पाएँगे।
  • पृथ्वी पर कम बोझ: अभी तक, अंतरिक्ष यान में खाने के लिए बहुत सी जगह लेनी पड़ती थी। इससे यान का वजन बढ़ जाता था और रॉकेट को यान को अंतरिक्ष में भेजने के लिए अधिक ईंधन की ज़रूरत होती थी। लेकिन अगर हम अंतरिक्ष में ही खाना उगा सकेंगे तो हमें पृथ्वी से कम खाना ले जाना होगा।
  • अंतरिक्ष में जीवन आसान: अंतरिक्ष में रहना बहुत मुश्किल होता है। वहां पानी, हवा और खाना जैसी कई चीजें नहीं होतीं, जो हमें पृथ्वी पर मिलती हैं। अगर हम अंतरिक्ष में ही खाना उगा सकेंगे तो अंतरिक्ष यात्रियों के लिए वहां रहना थोड़ा आसान हो जाएगा। उन्हें पृथ्वी से आने वाले खाने का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।
  • आत्मनिर्भरता: अंतरिक्ष में खुद का खाना उगाने से अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर निर्भर नहीं रहेंगे। वे अपनी ज़रूरत का खाना खुद बना सकेंगे।

अंतरिक्ष अभियानों में नई उम्मीद

अगर यह योजना सफल होती है, तो अंतरिक्ष यात्रियों को भविष्य में भोजन की बड़ी मात्रा पृथ्वी से नहीं ले जानी पड़ेगी। इसके बजाय वे क्षुद्रग्रहों से स्थानीय रूप से भोजन तैयार कर पाएँगे।

हालाँकि, शोधकर्ता मानते हैं कि अभी और परीक्षणों की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह भोजन स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित और खाने में स्वादिष्ट हो। 3 अक्टूबर को यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एस्ट्रोबायोलॉजी में प्रकाशित हुआ।

निष्कर्ष

उल्कापिंडो से भोजन बनाने की यह योजना लंबी अंतरिक्ष यात्राओं में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। इससे अंतरिक्ष यात्री स्थानीय संसाधनों पर निर्भर हो सकेंगे और भविष्य के अभियानों में पृथ्वी से आपूर्ति की जरूरत कम हो जाएगी।

Source
Study

Shivam Sharma

शिवम शर्मा विज्ञानम् के मुख्य लेखक हैं, इन्हें विज्ञान और शास्त्रो में बहुत रुचि है। इनका मुख्य योगदान अंतरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान में है। साथ में यह तकनीक और गैजेट्स पर भी काम करते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button