मानव इतिहास औद्योगिक क्रांति के बाद दो विश्व युद्ध झेल चुका है, विद्वान मानते हैं कि अगला विश्व युद्ध पीने के पानी पर लड़ा जायेगा। तीसरे विश्व युद्ध के बारे में जो लोग सोचते हैं कि वह पानी पर ही लड़ा जायेगा तो इस खबर को एकबार जरूर देखें…..
धरती पर मौज़ूद पानी का एक बड़ा हिस्सा खारे पानी का है, जो कहीं से भी पीने योग्य नहीं है. मगर अब आसान और किफ़ायती तरीके से समुद्री जल को पीने योग्य पानी में बदला जा सकता है. जी हां, अब ख़बर ये है कि अमेरिका में भारतीय मूल के एक स्टूडेंट ने खारे पानी को पीने योग्य पानी में तब्दील करने का एक सस्ता और आसान तरीका ढूंढ निकाला है।
इस भारतीय स्टू़डेंट के शोध ने न सिर्फ़ विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में खलबली मचा दी है, बल्कि शोध की कई बड़ी कंपनियों और यूनिवर्सिटीज़ का ध्यान भी अपनी और आकर्षित किया है. पोर्टलैंड में Oregon के रहने वाले चैतन्य कारम्चेडू ने अपनी कक्षा में शुरू हुए विज्ञान के एक प्रयोग के कारण पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, चैतन्य चाहते हैं कि पूरी दुनिया के लोगों के लिए साफ़ पानी की समस्या का समाधान किया जाए. उनका मानना है कि पानी के उपयोग का सबसे सही माध्यम है समुद्री जल, जो धरती पर दो तिहाई मौज़ूद है. मगर शर्त है कि उसे पीने योग्य बनाया जाए. लेकिन अभी तक समस्या ये है कि समुद्री जल खारा होता है, जो पीने योग्य नहीं है.
हालांकि, दुनिया भर के कई वैज्ञानिकों ने इस दिशा में प्रयास किया है, मगर अभी तक कोई ठोस सफ़लता हाथ नहीं लगी है. जेसुट हाई स्कूल सीनियर के मुताबिक, कारम्चेडू के पास दुनिया को बदलने की बड़ी योजनाएं हैं.
चैतन्य के मुताबिक, प्रत्येक आठ में से एक व्यक्ति के पास पीने के लिए स्वच्छ जल की व्यवस्था नहीं है. यह एक ऐसी चीज़ है, जिसमें जल्द सुधार की ज़रूरत है।
Absorbent Polymer (सोखने वाला पदार्थ) के साथ काम करते समय चैतन्य को आभास हुआ कि समुद्री जल में सॉल्ट अथवा नमक पूरी तरह से नहीं घुलता. इसलिए समुद्री जल से नमक को अलग करने के लिए उन्होंने एक किफ़ायती तरीका ढूंढा. खास बात ये है कि इनका अप्रोच वैज्ञानिकों से थोड़ा सा अलग था. जहां वैज्ञानिक 10 फीसदी पानी को सॉल्ट फ्री बनाने पर काम कर रहे हैं, वहीं चैतन्य चाहते हैं 90 फीसदी पानी पर काम करना.
उच्च बहुलक के साथ खारे पानी पर प्रयोग करके चैतन्य ने समुद्री जल से नमक हटाकर पीने योग्य जल तैयार करने का सस्ता तरीका खोज निकाला है.
गौरतलब है कि चैतन्य के इस प्रयास को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान मेले में अमेरिका की International Global Development एजेंसी ने उसे $10,000 से सम्मानित किया है. इसके अलावा भी उसे अन्य संस्थानों ने सम्मानित किया है।
Source – Jagran and Gazabpost