Himalaya Mythological Rahasya – हिमालय संसार की सबसे बड़ी पर्वतमाला है। हिमालय अपने में कई इतिहास और रहस्य समेटे हुए है, प्राचीन पांडुलिपियों और दंतकथाओं की माने॓ं तो जम्बू द्वीप (पौराणिक भारतीय द्वीप) थोड़े से मार्ग को छोड़ कर लगभग चारों और से समुद्र से घिरा हुआ था, पृथ्वी पर उस समय तीन ही द्वीप हुआ करते थे : जम्बू शाल्मली और प्लक्ष, इन्ही द्वीपों में मानव जाती को पृथ्वी पर पलने बढ़ने के लिए आदि ब्रह्मा जी के आदेश पर ब्रह्मा जी ने मनु और शतरूपा को भेजा और उनके द्वारा सृष्टि में पृथ्वी लोक पर मानवो का संसार बस गया।
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पांच मनु
इतना ही नहीं, बल्कि ग्रंथों में तो यह भी कहा गया है कि पृथ्वी पर एक नहीं अपितु पांच मनु उतारे गए थे, उनके बीच ही मानव जाति पृथ्वी पर बसनी शुरू हुई, लेकिन तब माता पृथ्वी कुँवारी थी, एक मनु की सब संताने पृथ्वी पर जी नहीं पायी और उसे नष्ट मनु की संज्ञा दी गयी, चार मनुओं की संताने पृथ्वी पर अब भी जीवन जी रही हैं, इन मनुओं नें स्वर्ग से ले कर सात लोकों ज्ञान मनुष्य को दिया और ब्रह्मा जी से सदा जुड़े रहने को कहा…
मानवो का भविष्य
पृथ्वी पर ब्रह्मा जी मानवो का भविष्य तय करेंगे ये कहा गया, मानव जाती देवताओं की पूजा और कृपा से पृथ्वी पर फली फूली, अग्नि, सोम, आर्यमा, सावित्री, गायत्री, सूर्य, तेज, ध्यावा, इन्द्र, यम, सविता, रूद्र आदि की उपासना ने मानव जाति को परम बुद्धिमान बना दिया और मानवों ने दुर्गा, शिव, विष्णु, गणपति, गुरु की पूजा शुरू की।
सप्तर्षि मंडल”
कहते हैं की मानव खोजता चला गया देवताओं के रहस्य और उसने स्वयं को देवता बना देने की बिधि भी खोज ली और ऋषि मुनि देवता हो गए, सप्तर्षि तो पृथ्वी छोड़ कर आकाश में रहने चले गए, किसी ऐसे लोक में जिसे “सप्तर्षि मंडल” कहा जाता है, मानवों ने जब पृथ्वी पर पाप बढा दिए तो संतुलन ख़राब होने लगा, पृथ्वी बीमार हो गयी और अपनी रक्षा के लिए पृथ्वी पर रहने वाले ऋषि मुनियों से गुहार लगायी, तब सप्तमातृका नाम के ऋषि ने सभी ऋषियों से आग्रह किया की आकाश से देवात्मा हिमालय को पृथ्वी पर लाया जाए…………
हिमालय का पृथ्वी पर उतरना
सभी देवताओं और ऋषि मुनियों के प्रयासों के कारण आकाश से हिमालय पृथ्वी पर उतरने लगे, तो उनको सागर के भीतर बैठने को कहा गया, पृथ्वी ने अपने आपको फिर से व्यवस्थित किया और इस तरह पृथ्वी सातो द्वीपों में भी बंट चुकी थी और पृथ्वी पर स्थित हो गए देवात्मा हिमालय, हिमालय इतना सुन्दर था की करोड़ों देवी देवता हिमालय पर रहने के लिए उतर गए….यहीं से सभी देवता पृथ्वी पर फैल गए…. इससे पहले देवता आकाशों में रहते थे…
इसी लिए उनको प्रसन्न करने के लिए अग्नि से सोम को जला कर आकाश में भेजा जाता था…लेकिन पृथ्वी पर आने से उनकी मानव रूप में मूर्ति बना कर पूजा शुरू हुई और उनके लिए घर बनाये गए जिनको देवालय कहा जाता है, इस हिमालय पर्वत के अंशभूत सहयोगी भी पर्वतो के रूप में पृथ्वी के अनेक भागों में प्रकट हो गए,इसलिय पृथ्वी पर स्थित सभी पर्वतों को पवित्र ही माना जाता है………………………..
कालांतर से लेकर अबतक हिमालय
…..तबसे ले कर अब तक कई मन्वंतर बीत चुके हैं, कई मनु पैदा हुए और चले गए, अब जम्बू द्वीप बदल चुका था, ऋषि मुनियों और देवी देवता हिमालय पर रहने लगे और वहीँ से पूरे जम्बू द्वीप का धर्म कार्य देखने लगे, वे देवताओं के साथ यात्राओं पर निकल जाया करते थे , प्रजाजन और राजा महाराजा देवताओं और ऋषि मुनियों की सेवा करते, उनके रहने के लिए स्थान स्थान पर देवालय बनाये जाने लगे।
पञ्च पीठो का निर्माण
जब धर्म कार्य को हिमालय से संचालित करना मुश्किल हो गया तो सब ऋषि मुनियों ने सकल जम्बू द्वीप पर पञ्च पीठो का निर्माण किया, हिमालय को जो की शायद बर्तमान रशिया नाम के देश से शुरू होता है और बर्तमान भारत नाम के देश के पूर्वी भाग में मयन्मार अथवा वर्मा नाम के देश पर जा कर समाप्त होता है, को पहली पीठ के रूप में स्थापित किया, इसी पीठ को नाम दिया गया, कौलान्तक पीठ…….
जल के भीतर डूबी हुई थी और टापू के रूप में प्रकट हुई थी इस लिए पीठ का नाम रखा गया
“जालंधर पीठ”
इसी पीठ के नाम पर राक्षसों ने अपने एक पुत्र का नाम जालंधर रखा था
इसी तरह क्रमशः
“कूर्म पीठ”
“वाराह पीठ”
“श्री पीठ”
नाम की पांच पीठो को स्थापित किया गया,इन्ही पाँचों में से सबसे बड़ी पीठ है, कौलान्तक पीठ……
साभार – विभिन्न स्रोत (इंटरनेट)
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