सनातन धर्म में तीन देवों को प्रमुख माना जाता है भगवान महादेव जो कि सदाशिव हैं, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा। सनातन नियमों के अनुसार हर देव का अपना-अपना निर्धारित काम है।
भगवान विष्णु जहां पालनकर्ता है, तो ब्रह्मा जी रचनाकर हैं, भगवान महादेव विनाश के देवता हैं, संसार में विनाश भी बहुत आवश्यक है इसके बिना यह संसार रहने लायक नहीं रहेगा।
इसी कारण हमारे शास्त्रो में भगवान शिव की नगरी में मरने पर पुण्य मिलता है ऐसा वर्णन है, शास्त्रों में कहा गया है जो कि भगवान की नगरी काशी में अपना दाह-संस्कार कर लेता है उसके कई पाप नष्ट हो जाते हैं।
मृत्यु जीवन का ही एक सार है अगर आपको इसे जानना है तो आप भगवान शिव की नगरी काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जरुर जायें। यहाँ सैकड़ों वर्षों से ठंड़ी नहीं पड़ती है चिताओं की अग्नि। बल्कि ये आग आज तक नहीं बुझी है। एक मान्यता अनुसार औघड़ रूप में शिव यहां विराजते हैं।
इसी लिए काशी में मृत्यु और यहां दाह संस्कार करने से मरने वाले को महादेव तारक मंत्र देते हैं। जिसके बाद यहां मोक्ष प्राप्त करने वाला कभी दोबारा गर्भ में नहीं पहुंचता है।
काशी स्थित प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर के प्रमुख अर्चक पं श्रीकांत मिश्र बताते हैं कि पुराणों और धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है। वे बताते हैं कि मणिकर्णिका घाट की स्थापना अनादी काल में हुई है। और श्रृष्टि की रचना के बाद भगवान शिव ने अपने वास के लिए इसे बसाया था और भगवान विष्णु को उन्होंने यहां धर्म कार्य के लिए भेजा था।
भारत की पवित्र नगरी काशी (बनारस) को हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। यहां जलाया गया शव सीधे मोक्ष को प्राप्त होता है, उसकी आत्मा को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। यही वजह है कि अधिकांश लोग यही चाहते हैं कि उनकी मृत्यु के बाद उनका दाह-संस्कार बनारस के मणिकर्णिका घाट पर ही हो।
एक कथा अनुसार भगवान विष्णु ने हजारों सालों तक मणिकर्णिका घाट पर तप किया था। महादेव के प्रकट होने पर विष्णु ने अपने चक्र से चक्र पुष्कर्णी तालाब (कुंड) का निर्माण किया था। इससे पहले उन्होंने कुंड में स्नान किया था। इस दौरान उनके कान का मुक्तायुक्त कुंडल गिर गया था। इसी के बाद से इस कुंड का नाम मणिकर्णिका कुंड पड़ गया। इस कुंड का इतिहास, पृथ्वी पर गंगा अवतरण से भी पहले का माना जाता है।
पंडित शैलेश त्रिपाठी बताते हैं कि महाश्मशान मणिकर्णिका घाट महादेव का पसंदीदा स्थल था। मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती अन्नपूर्णा के रूप में भक्तों का कल्याण करते हैं। दूसरी ओर शिव औघड़ रूप में मृत्यु को प्राप्त लोगों को कान में तारक मंत्र देकर मुक्ति का मार्ग देते हैं। मणिकर्णिका पर चिताओं की अग्नि इसी कारण हमेशा जलती रहती है।
घाट पर रहने वाले बुजुर्ग नरेश बिसवानी का कहना है कि महादेव चिता की भस्म से श्रृंगार करते हैं। इसीलिए यहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती है। चौधरी परिवार के डब्बू का कहना है कि औसतन 30 से 35 चिताएं रोज जलती हैं। दाह संस्कार के लिए केवल बनारस से ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। इसे मुक्तिधाम भी कहा जाता है।
काशी का मणिकर्णिका घाट एक ऐसा ही स्थान है जहां पहुंचकर व्यक्ति को अपने जीवन की असलियत पता चलती है। वह अपनी दुनिया में लाख मशगूल सही लेकिन जब मणिकर्णिका घाट पर शव को जलाया जाता है तो ये पूरी दुनिया ही बेमानी लगती है।