इस पूरी दुनिया में मानव से बड़ा कोई अजीब और जिज्ञासु प्राणी नहीं है। अक्सर हम इंसान कुछ न कुछ अद्भुत करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। शायद यही वजह है कि आज हम दुनिया के सबसे बेहतरीन जीवों में गिने जाते हैं। मित्रों! अंतरिक्ष हमेशा से ही हम मानवों के लिए एक पहेली जैसा रहा है। क्योंकि हम इसे जितना सुलझाना चाहते हैं, यह उतना ही उलझता जाता है। वैसे, आज के समय में वैज्ञानिकों ने एक बहुत ही खास काम करके दिखाया है। क्या आपने कभी सोचा है कि अगर अंतरिक्ष में किसी मानवीय अंग (human liver grows in space) को विकसित कर लिया जाए, तो क्या होगा?
जी हाँ, मित्रों! आप लोगों ने बिलकुल सही सुना। वैज्ञानिक अंतरिक्ष में मानवीय लीवर (human liver grows in space) बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हो रहे हैं। यह सचमुच सुनने और करने में काफी रोचक लग रहा है, क्योंकि अंतरिक्ष जैसे कठिन हालातों में किसी मानवीय अंग को बनाना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। आज हम इसी विषय पर गहन चर्चा करने जा रहे हैं।
इसलिए आप सभी से अनुरोध है कि इस लेख को आरंभ से अंत तक अवश्य पढ़ें, ताकि इस विषय से जुड़ी हर एक बारीकी आपके सामने स्पष्ट हो सके। तो चलिए, अब बिना किसी देरी के लेख में आगे बढ़ते हैं और इसके मुख्य विषय पर आते हैं।
अंतरिक्ष में बनने वाला है पहला इंसानी “लीवर”! – human liver grows in space! :-
कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, माइक्रोग्रैविटी वाले स्थानों पर इंसानी अंगों को काफी सहज तरीके से बनाया जा सकता है। यदि आप लोगों को माइक्रोग्रैविटी के बारे में जानकारी नहीं है, तो मैं आपको बता दूं कि माइक्रोग्रैविटी वाले स्थान वे होते हैं जहां पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल काफी कम होता है।
इस वजह से, ऐसे स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव लगभग न के बराबर होता है। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) माइक्रोग्रैविटी को समझने और दर्शाने के लिए एक बेहतरीन उदाहरण है।
ISS पर माइक्रोग्रैविटी का माहौल हमेशा बना रहता है, और कई वैज्ञानिकों का मानना है कि यहाँ इंसानी अंगों (human liver grows in space) को आसानी से विकसित किया जा सकता है। साथ ही, ऐसे स्थानों पर ट्रांसप्लांट सर्जरी भी काफी प्रभावी तरीके से की जा सकती है।
मित्रों, जरा सोचिए, अगर यह संभव हो जाता है, तो यह हम इंसानों के लिए कितना फायदेमंद होगा! इससे लाखों-करोड़ों ज़िंदगियाँ बचाई जा सकती हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार, जल्द ही ISS के अंदर छोटे आकार के इंसानी लीवर के नमूने का परीक्षण किया जाएगा। यह मेडिकल साइंस में एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। इसके अलावा, वैज्ञानिक ISS में यह भी परखना चाहते हैं कि क्या माइक्रोग्रैविटी के माहौल में सही ब्लड फ्लो के साथ मानव टिशू का विकास हो रहा है या नहीं। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है, जिसे ध्यान में रखना आवश्यक है।
आखिर क्या खास है इस खोज में! :-
अब आपके मन में यह सवाल जरूर आ रहा होगा कि आखिर यह खोज इतनी खास क्यों है? तो मित्रों, मैं आपको बता दूं कि आज के समय में किसी भी इंसानी अंग को ट्रांसप्लांट करने के लिए डोनर पर निर्भर रहना पड़ता है, और यह एक काफी जटिल और कठिन प्रक्रिया है।
कई बार, समय पर मरीज को आवश्यक अंग न मिलने के कारण उसकी जान पर बन आती है। ऐसे में, अगर हम अंतरिक्ष में कृत्रिम तरीके से मानवीय अंग (human liver grows in space) बनाने में सक्षम हो जाते हैं, तो यह न केवल एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि होगी, बल्कि इससे लाखों ज़िंदगियों को भी बचाया जा सकेगा।
बताया जा रहा है कि आने वाले प्रयोगों में वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि स्पेस में इंसानी टिशू किस तरह से प्रतिक्रिया करता है। इसके अलावा, वैज्ञानिक नई-नई तकनीकों के माध्यम से आर्टिफिशियल ह्यूमन टिशू जनरेशन की प्रक्रियाओं को विकसित करने में जुटे हुए हैं। इसका उद्देश्य स्पेस में अंगों को कुशलतापूर्वक तैयार कर उन्हें पृथ्वी तक लाने में सक्षम होना है।
आपको यह भी बता दें कि इसके लिए वैज्ञानिक एक बेहद खास कूलिंग स्टोरेज सिस्टम विकसित करने की प्रक्रिया में हैं। यदि यह सिस्टम सफल हो जाता है, तो स्पेस में बने अंगों को आसानी से पृथ्वी पर लाकर चिकित्सा में इस्तेमाल किया जा सकेगा।
वैसे, इस पर आपकी क्या राय है? कमेंट करके जरूर बताएं, ताकि हमें भी आपकी राय जानने का मौका मिले। व्यक्तिगत तौर पर, मुझे यह तकनीक काफी प्रभावशाली लगी। इससे न केवल चिकित्सा के क्षेत्र में नई क्रांति आएगी, बल्कि इंसानियत की भी बड़ी मदद होगी।
माइक्रोग्रैविटी और टिसु जेनेरेशन! :-
वैज्ञानिकों को हमेशा से ही ISS की माइक्रोग्रैविटी वाली जगह ने अपनी ओर आकर्षित किया है। शायद यही वजह है कि कई दशकों से इस स्थान पर तरह-तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वैज्ञानिक माइक्रोग्रैविटी का उपयोग टिशू थेरेपी की तकनीक को विकसित करने के लिए करना चाहते हैं। इस तकनीक से लीवर से जुड़ी अधिकांश बीमारियों को दूर किया जा सकता है। हालांकि, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पृथ्वी पर इंसानी टिशू बनाना काफी कठिन और जटिल प्रक्रिया है। इसके विपरीत, माइक्रोग्रैविटी के वातावरण में यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत आसान और अधिक प्रभावी हो सकती है।
पृथ्वी पर टिशू पर ग्रैविटी का प्रभाव पड़ता है, जिससे वह कल्चर प्लेट पर चिपकने लगता है। मित्रों, अगर एक बार टिशू कल्चर प्लेट पर चिपक जाता है, तो वह उस गुणवत्ता का नहीं रहता, जो वह प्राकृतिक रूप से विकसित हो सकता था। इसलिए वैज्ञानिक माइक्रोग्रैविटी में टिशू को कल्चर करना पसंद करते हैं। इसके अलावा, ग्रैविटी के कारण टिशू पर काफी दबाव पड़ता है।
अब, एक बहुत रोचक बात मैं आपको बताने जा रहा हूँ, तो कृपया इसे ध्यान से पढ़ें।
मित्रों, प्राकृतिक रूप से अगर टिशू का विकास होता है, तो वह किसी सतह से चिपक कर नहीं होता। इसका मतलब यह है कि टिशू के विकास के लिए उसे हमेशा सतह के ऊपर झूलते हुए अवस्था में रखना पड़ता है। उदाहरण के लिए, जब कोई नवजात अपनी माँ के पेट में पनपता है, तो वह वहाँ किसी सतह से चिपक कर नहीं रहता।
निष्कर्ष – Conclusion :-
स्पेस में टिशू को कल्चर करना (human liver grows in space) एक बहुत ही भविष्यवादी और जटिल प्रक्रिया है, क्योंकि इसके कल्चर में हमें कई बारीक बातों का ध्यान रखना पड़ता है। इसलिए इसे हकीकत में संभव बनाने के लिए हमें काफी मेहनत करनी होगी। वैसे, इसे संभव करने के लिए वैज्ञानिकों ने कई उन्नत तरीकों को ढूंढ लिया है और पृथ्वी पर ही माइक्रोग्रैविटी वाले स्थानों को बनाकर इंसानी अंगों को कल्चर करना शुरू कर दिया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है, जो भविष्य में चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।
साथ ही, एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि स्पेस में टिशू को सही तरीके से ग्रोव कराने के लिए हमें उच्च गुणवत्ता वाले स्टेम सेल की आवश्यकता होगी। आपको बता दूँ कि इंसानी टिशू का निर्माण इन्हीं स्टेम सेल के जरिए होता है। इनके बिना किसी भी प्रकार के टिशू का निर्माण करना लगभग असंभव है।
इसके साथ ही, हमें ऐसे ब्लड फ्लो सिस्टम की आवश्यकता होगी जो एक प्राकृतिक शरीर की तरह टिशू को सही तरीके से रक्त की आपूर्ति कर सके। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस मिशन को 2025 में शुरू किया जाने वाला है, इसलिए इसके लिए बहुत तैयारी करनी होगी। साथ ही, यह शोध 2026 में भी जारी रहेगा।
Source :- www.livescience.com