मित्रों! क्या आप लोगों को एक मजे की बात बोलूँ, हमारा ब्रह्मांड चाहे जितना भी बड़ा या अनंत हो, परंतु हमारी पृथ्वी पर मौजूद ज़्यादातर चीज़ें सीमित ही हैं। सौर-मंडल में हम देखें तो कई चीज़ें जैसे जीवन या ओर्गानीक कण(Organic Molecule) भी काफी ज्यादा सीमित या लिमिटेड हैं। ऐसे में आप कह सकते हैं कि, जीवन संबंधी कई चीजों कि लिमिटेड होना उचित है। परंतु कभी आपने सुना है कि पृथ्वी से धीरे-धीरे “रेत”/ बालू (we soon run out of sand) खत्म हो रहा है। आने वाले समय में हम जल्द ही रेत के हर एक कण को पृथ्वी से खो देंगे।
कहा जाता आ रहा है कि, पृथ्वी से साल 2040 तक पानी खत्म हो जाएगा। जो कि अभी से ही एक काफी ज्यादा चिंताजनक बात है। क्योंकि अगर पृथ्वी से पानी खत्म हो जाएगा, तब यहाँ पर जिंदा रहना काफी ज्यादा कठिन होने वाला है। खैर वो एक अलग बात है, परंतु जरा सोचिए अगर हम पृथ्वी से “रेत”/ बालू (we soon run out of sand) को पूरे तरीके से खो देंगे, तो क्या होगा?। रेत इंसानी सभ्यता के विकास में काफी बड़ा किरदार अदा करता है।
इसलिए अगर आप सोच रहें हैं कि, भला रेत के खत्म होने से हमें क्या फर्क पड़ जाएगा! तो, जरा अपने घर को देखिए, उसके ज़्यादातर हिस्सों में रेत ही है। तो, सोचिए की अगर पृथ्वी से रेत ही खत्म हो जाएगा तो, हम सब की क्या हालत हो सकती है!
विषय - सूची
जल्द ही पृथ्वी से खत्म होने जा रहा है “रेत”/ बालू! – We Soon Run Out of Sand! :-
इंसानों की लापरवाही के कारण जल्द ही एक ऐसा समय आने वाला है, जब हम पृथ्वी में रेत/बालू (we soon run out of sand) की कमी को देखने वाले है। रिपोर्ट से पता चलता है कि, पानी के बाद इंसानों के द्वारा रेत दूसरी सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली प्राकृतिक सम्पदा है। अत्यधिक इस्तेमाल होने के कारण आज ये सम्पदा धीरे-धीरे लुप्त होने कि कगार पर आ पहुंचा है। इस सम्पदा का शोषण इंसानों के द्वारा कुछ इस कदर हो रहा है कि, आप सोच भी नहीं सकते हैं।
रेत कंस्ट्रक्सन और नैचुरल एनवायरनमेंट में काफी बड़ा किरदार निभाता है। हालांकि! पानी की तरह इसे एक स्ट्रेटेजिक रीसोर्स की तरह नहीं देखा जाता है। परंतु फिर भी इसकी अहमियत हमारे लिए काफी ज्यादा है। कई सारे सर्वे से पता चलता है कि, इंसान और रेत के बीच हो रहे इंटरैक्सन को अगर बदला नहीं गया तो, जल्द ही हम रेत से जुड़े कई सिरियस प्रॉब्लेम्स का सामना करने वाले हैं। वैज्ञानिकों कहते है कि, हमारे पास रेत का को अनंत स्रोत नहीं हैं। पृथ्वी पर रेत लिमिटेड हैं।
इसलिए इस प्राकृतिक सम्पदा का सही और सटीक तरीके से इस्तेमाल करना हमारे लिए अनिवार्य है। हमारे भविष्य को उज्ज्वल रखने के लिए हमें जल्द ही हमारे द्वारा इस्तेमाल होने वाले प्रोडक्टस के बनाने का ढंग, प्रक्रिया और इसके यूज को काफी ज्यादा कंट्रोल करना होगा। साथ ही साथ हमारे इनफ्रास्ट्रक्चर और सेर्विसेस को भी काफी ज्यादा टिकाऊ व इको-फ्रेंडली करना होगा।
“रेत” (Sand) की अहमियत हमारे लिए क्या है? :-
रेत (we soon run out of sand) के बारे में कहने के लिए शब्द भी कम पड़ जाएंगे। क्योंकि ये इतने सारे चीजों में इस्तेमाल होते है कि, आप बस सोचते ही रह जाएंगे। कंक्रीट, असफल्ट और ग्लास के मूल उपादान में रेत शामिल है। हमारे घर को बनाने के लिए जीतने भी मौलिक चीजों का इस्तेमाल होता है, उन सभी चीजों में रेत में इस्तेमाल होता है। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष लगभग 50 अरब टन से भी ज्यादा रेत को कंस्ट्रक्सन में इस्तेमाल किया जाता है। मित्रों! अब मैं आप लोगों एक ऐसी बात बताऊंगा जिसे सुनकर शायद आपके कान भी खड़े हो जाएंगे।
हर एक वर्ष जीतनी मात्रा में रेत का इस्तेमाल होता है, उस रेत से पृथ्वी की चारों तरफ “27 मीटर चौड़ा व 27 मीटर ऊंचा” एक दीवार को बनाया जा सकता है। हालांकि! जीतनी मात्रा में रेत को इस्तेमाल किया जा रहा हैं, उतने ही मात्रा में रेत की भरपाई नहीं हो पा रहीं है। इसलिए धीरे-धीरे इसकी कमी देखने को मिल रही है। आने वाले कुछ दशकों में ये दिक्कत और भी ज्यादा बढ़ने वाली है, क्योंकि बढ़ते आबादी और तेज होता हुआ शहरीकरण के कारण रेत की जरूरतें और भी ज्यादा बढ़ने वाला है।
रेत से हमारे घर, स्कूल, हॉस्पिटल, डैम और पुल आदि बेहद ही जरूरी चीज़ें बनी हुई है। ऐसे में अगर रेत की कमी आती है, तब हमारे लिए आने वाले समय में इससे जूझना बिलकुल भी आसान नहीं होगा। वैज्ञानिकों के अनुसार आज हमारे द्वारा जिस हिसाब से रेत के इस्तेमाल पर कानून बनाए गए है, उससे कुछ भी नहीं होगा। फिर से इन नियमों को एक अलग ही ढंग से बनाना होगा। जिसे की जल्द ही बनाकर लागू करना होगा।
पर्यावरण और रेत! :-
रेत (we soon run out of sand) की सप्लाई की समस्या के साथ ही साथ, इसके एक्स्ट्राक्स्न के समय होने वाले इरोजन एक बहुत ही बड़ी पर्यावरण संबंधी असुविधा है। गैर-जिम्मेदार तरीके से रेत के एक्सट्राक्स्न(Extraction) से न बल्कि “मरीन/ वाटर इकोसिस्टम” खराब हो रहा है, बल्कि ग्राउंड वाटर भी काफी ज्यादा प्रभावित हो रहा है। रेत के एक्सट्राक्स्न से ग्राउंड वाटर में खारापन बढ़ रहा है। इससे काफी ज्यादा ग्राउंड वाटर प्रदूषित भी हो रहा है।
रेत के गलत तरीके से इस्तेमाल करने से शहरों में बाड़ से बचने के लिए बनाए गए सिस्टम भी नाकाम हो रहें हैं। कई जगहों पर तो पूरी कि पूरी कोस्टल इकोसिस्टम ही प्रदूषित होता जा रहा है। रेत के इस समस्या से बचने के लिए हमें पहले इसे “स्ट्रेटेजिक रीसोर्स” के रूप में देखना होगा। इसे सिर्फ कंस्ट्रक्स्न के लिए इस्तेमाल होने वाले कच्चे मैटेरियल के रुप में न देख कर, इसके पर्यावरण संबंधी अहमियत को पहचानना होगा। जिसके जरिये हम इसके ऊपर कई सटीक व सही रेगुलेशन लगा कर, इस समस्या को जड़ से खत्म कर सकेंगे।
यहाँ तक कि हम तटीय इलाकों से रेत के एक्सट्राक्स्न को भी सम्पूर्ण रूप से बैन कर सकते है। जिससे तटीय इलाकों में और प्रदूषण न फैले। इसके साथ ही साथ लोगों को इस समस्या के बारे में सचेत करवाना होगा। इसके अलावा हमें रेत के अलग-अलग विकल्पों के बारे में भी सोचना चाहिए, जैसे की रेत की जगह हम पत्थर का चूरा या रिसाइकल किया गया कंस्ट्रक्स्न का मैटेरियल भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
अगर रेत (we soon run out of sand) के इस्तेमाल को कंट्रोल नहीं किया गया, तब हम जल्द ही इसे पूरे तरीके से खो देंगे। इसलिए हमें हमारी आने वाले पीढ़िओं के लिए ही सहीं अपनी जरूरतों को कम करना होगा। इसका ये मतलब है कि, हमें अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने के लिए दूसरे रॉ मटिरियल और तरीकों के बारे में सोचना होगा। इसके अलावा शोधों से ये भी पता चला है कि, 2060 तक हमारे द्वारा रेत को इस्तेमाल करने का दर लगभग 45% तक बढ्ने वाला है। ऐसे में ये सारे आंकड़े काफी चिंता जनक है।
खैर अगर हम इमारतों की लाइफ स्पैन को अच्छे कंस्ट्रक्स्न मैटेरियल के जरिए बढ़ा देते हैं, तब भी हम काफी हद तक रेत के बढ़ रहें मांग को कम कर सकते हैं। इसके अलावा अगर हम ग्लोबल लेवल पर रेत के कीमतों को भी बढ़ा देंगे, तो भी इसका इस्तेमाल कुछ हद तक कम हो जाएगा। ज्यादा कीमतों के कारण हर कोई इसे काफी सोच समझ कर इस्तेमाल करने को देखेगा। और इसी के जरिए हम इस प्राकृतिक सम्पदा को सुरक्षित रख पाएंगे।
वैसे आप लोगों को क्या लगता है, क्या कभी हमारी पृथ्वी से रेत खत्म हो जाएगा? कमेंट कर के इसके बारे में जरूर ही बताएं।
Source- www.iflscience.com