पृथ्वी में जिस-जिस ने जन्म लिया हैं उसे एक न एक दिन यहाँ से जाना ही हैं। कोई भी अनंत काल के लिए यहाँ पर नहीं रह सकता हैं। अपने जीवन काल को पूरी करने के बाद हर किसी को वापस लौटना हैं। क्योंकि मृत्यु ही शाश्वत सत्य हैं और इसे हम चाह कर भी नहीं बदल सकते हैं। लोगों को कहा जाता हैं की, कोई भी इंसान अमर नहीं हो सकता हैं; क्योंकि ये शरीर अस्थाई हैं और इसे आखिर में मिट्टी में ही मिलना हैं। परंतु मित्रों! ये बात 7 चिरंजीवियों (7 Immortals of hindu mythology) के ऊपर लागू नहीं होता हैं। यह चिरंजीवी साधारण इंसान से ये बहुत ही ज्यादा खास और विशेष हैं।
जी हाँ! मित्रों हमारे हिन्दू धर्म में 7 ऐसे चिरंजीवियों (7 chiranjeevis of hindu muthology) के बारे में कहा गया हैं, जो की कभी नहीं मर सकते हैं। इन सभी चिरंजीवियों का अंत कभी नहीं हो सकता हैं। वैसे ध्यान रहे की, अंत कभी नहीं होने से मेरा मतलब हैं की जब तक ये संसार बना हुआ हैं तब तक ये 7 चिरंजीवी अमर हैं। कुछ-कुछ पुराणों में ये भी जिक्र मिलता हैं की, ये सातों के सातों चिरंजीवी कल युग के अंत तक इस संसार में जीवित रहेंगे।
तो, आज का हमारा लेख थोड़ा हटके यानी इन्हीं 7 चिरंजीवियों के ऊपर ही हैं। इसलिए आप लोगों से आग्रह करना चाहूँगा की, लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिएगा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके बारे में पता चले। खैर चलिये अब लेख को आगे बढ़ाते हैं और चीरंजीवियों के बारे में जानते हैं।
हिन्दू धर्म के 7 अमर चिरंजीवी – 7 Immortals Of Hindu Mythology :-
मित्रों! लेख के इस भाग में मैंने एक-एक कर के सातों चिरंजीवियों (7 Immortals of hindu mythology) के बारे में आप लोगों को बताया हैं। इसलिए आप इस भाग को दिलचस्पी दिखते हुए पढ़िएगा।
1. प्रभु हनुमान जी :-
इनके बारे में क्या कहूँ। महाबली और अपूर्व साहस व प्रभु श्री राम के सबसे प्यारे भक्त हनुमान को कौन नहीं जानता। संकट मोचन के नाम से भी जाने जाने वाले प्रभु हनुमान जी हिन्दू धर्म के एक चिरंजीवी हैं। उनको प्रभु श्री राम चंद्र जी की करुणा प्राप्त हैं। उनकी श्रद्धा और निष्ठा को देखते हुए प्रभु श्री राम जी ने उन्हें कई सारे वरदान दिए हैं।
प्रभु हनुमान जी को हमेशा अनंत ऊर्जा का भी स्रोत माना गया हैं, इसलिए अकसर उन्हें वीरता और ताकत का भी प्रतीक माना जाता हैं। मित्रों! क्या आप भी प्रभु हनुमान जी के भक्त हैं? अगर हाँ तो जरूर ही बताइएगा।
प्रभु के सबसे प्यारे भक्त हनुमान जी! :-
वैसे अमरत्व का वरदान उन्हें माता सीता जी ने ही दिया हैं। जब प्रभु हनुमान जी लंका में माता सीता को प्रभु श्री राम जी का संदेश सुनाया तो, उसी वक़्त माता सीता हनुमान जी के अपने प्रभु के प्रति भक्ति भाव को देख कर प्रसन्न हो गईं। उन्होंने उसी वक़्त ही प्रभु हनुमान जी को वरदान दिया की, वो न ही कभी बूढ़े होंगे और न ही कभी उनका अंत हो सकेगा। इसलिए वो चीर काल के लिए इस पृथ्वी पर रह पाएंगे और प्रभु की आशीर्वाद से लोगों के संकटों को दूर करेंगे।
2. महर्षि व्यास :-
प्राचीन सनातन धर्म के इतिहास में कई ऋषि और महर्षियों का उल्लेख मिलता हैं। पुराने समय में इनके द्वारा ही ग्रंथ और पुराणों का निर्माण होता था, जिसको की आज हम बड़े आसानी से पढ़ पा रहें हैं। इसलिए इनकी भूमिका हिन्दू धर्म में बहुत ही ज्यादा बताया गया हैं। वैसे महर्षि व्यास का नाम तो सब ने सुना ही होगा।
महर्षि व्यास ने ही महाभारत की रचना की थी। उन्होंने ही इस ग्रंथ के जरिये लोगों के अंदर पांडित्य और बुद्धिमता की कमाल खिलाई थी। उनके ग्रंथ से इंसानों की पीढ़ियों दर पीढ़ियों तक विवेक और सत्य के ज्ञान का प्रचार हो पाया। उनका धर्म के स्थापना में जो भूमिका हैं उसकी परिकल्पना करना हमारे लिए सोच से भी परे हैं।
उनके इसी महत कार्य के लिए वो त्रेता युग से द्वापर युग तथा कल युग के प्रारंभिक अवस्था को देखने में सक्षम हो पाएं। वो महर्षि वशिष्ठ के पोते थे। उनको हम आज भी उनके कृतित्व के लिए याद रखे हुए हैं। जो इस बात को सूचित करता हैं की, हमेशा अच्छे कर्म किया जाना चाहिए।
3. परशुराम जी :-
हिन्दू धर्म के 7 चिरंजीवियों (7 chiranjeevis of hindu mythology) के अंदर परशुराम जी भी आते हैं। इनके बारे में भी मुझे लगता हैं की, आप लोगों को पता होगा। उनको देवों के देव महादेव से वरदान के स्वरूप एक दिव्य परशु मिला था, जो की एक अलौकिक तथा बलशाली अस्त्र था। परशुराम जी के परशु के सामने शायद ही कोई दूसरा अस्त्र असरदार हो पाता। हिन्दू धर्म के अनुसार वो पहले ऐसे ब्राह्मण थे जो की ब्राह्मण तथा क्षत्रिय दोनों के ही धर्मों को एक साथ पालन किया था।
वैसे वो एक अजेय योद्धा थे और उनके शौर्य के सामने कोई थी टिक नहीं सकता था। उन्होंने कई राजा और महाराजाओं को हराया हैं। माना जाता हैं की, वो आज भी महेन्द्रगिरी के पर्वत (ओड़ीशा के स्थित) में विराजमान हैं। हिन्दू धर्म में आपको परशुराम जी कई ग्रन्थों में वर्णित नजर आएंगे।
4. विभीषण :-
चौथे चिरंजीवी का नाम हैं विभीषण, जो की रावण के भाई थे। रामायण में तो आप लोगों ने इनके बारे में बहुत कुछ सुना ही होगा। इन्होंने प्रभु की शरण ले ली थी जब रावण अधर्म कर रहा था। इसलिए इनके धर्मनिष्ठ गुण से प्रसन्न हो कर प्रभु ने इन्हें दीर्घायु का वरदान दिया हैं।
हालांकि ध्यान देने वाली बात ये हैं की, मौलिक तौर पर विभीषण चिरंजीवी तो नहीं हैं परंतु इन्हें लंबे समय तक जीने का वरदान मिला हैं। पुराणों के अनुसार विभीषण महा युग के अंत तक जीवित रहेंगे।
5. राजा बलि जी :-
महाराजा बलि पाँचवी चिरंजीवी (7 chiranjeevis of hindu mythology) हैं। ये विरोचना के पुत्र हैं तथा प्रह्लाद के पोते हैं। इनको तीन लोक का राजा भी कहा जाता हैं। जब प्रभु श्री विष्णु जी ने अपना वामन अवतार लिया था, तब उन्होंने राजा बलि को अमर होने का वरदान दिया था।
इसलिए आज भी राजा बलि जिंदा हैं। माना जाता हैं की, प्रति वर्ष ओणम के दिन ये पृथ्वी लोक पर आते हैं। इस वक़्त वो पृथ्वी पर घूम-घूम कर अपने प्रजा को देखते हैं की वो क्या-क्या कर रहें हैं। मित्रों! आपको इस अनोखे लेख को पढ़ कर कैसा लग रहा हैं जरूर बताइएगा।
6. अश्वत्थामा :-
महाभारत युग में आप लोगों ने अवश्य ही अश्वत्थामा के बारे में सुना होगा। वो गुरु द्रोण के पुत्र तथा एक महान योद्धा थे। अश्वत्थामा को गुरु द्रोण ने कड़ी तपस्या के बाद महादेव से पाया था। इसलिए अश्वत्थामा को महादेव से काफी शक्ति भी प्राप्त थी। वो 11 रुद्र अवतार में से एक थे।
माना जाता हैं की कृपाचार्य और अश्वत्थामा ही दो ऐसे योद्धा थे जो की कुरु वंश के तरफ से महाभारत के अंत होने तक जीवित थे। हालांकि! अश्वत्थामा अमर हैं परंतु प्रभु कृष्ण के श्राप के चलते वो न ही किसी के संपर्क आ सकते हैं और न की उनको कोई देख सकता हैं। इसके अलावा उनके बदन के ऊपर ऐसे घाव भी हैं जो की अनंत काल तक ठीक नहीं होंगे।
7. कृपाचार्य :-
गुरु कृपाचार्य कौरवों के और से लढने वाले एक महान योद्धा थे। उनकी बहन कृपी का गुरु द्रोण के साथ विवाह हुआ था। इसलिए वो अश्वत्थामा के मामा थे। माना जाता हैं की वो दोनों कुरु और पांडु वंश के कुल गुरु थे। उन्होंने दोनों ही कुरु तथा पांडु वंश के राजकुमारों को शिक्षा प्रदान किया था।
कहा जाता हैं की वो एक बहुत ही असाधारण गुरु थे। उनके सामने सब एक समान थे। उन्होंने दोनों ही वंश के राजकुमारों को कई विद्या का ज्ञान भी दिया था। हालांकि कुछ परिस्थितियों के चलते उन्हें कौरवों की और से शस्त्र उठाना पड़ा।
Sources :- www.sarkardaily.com, www.stackexchange.com.