Shiva Chakra – हिन्दू धर्म ग्रंथो में ज्यादातर भगवान विष्णु के पास ही चक्र को दिखाया जाता है, ये एक ऐसा दिव्य अस्त्र है जिसके पास खुद की सोचने और समझने की शक्ति होती है। भगवान विष्णु का जो चक्र है वह इस ब्रह्मांड की किसी भी शक्ति को काट सकता है।
इसी तरह हर सभी देवी – देवताओं के पास अपने – अपने अलग च्रक होते थे, जैसे देवता जितनी शक्ति और कार्य को करते हैं उसी के अनुसार उनके चक्र भी होते थे। चक्र को छोटा, लेकिन सबसे अचूक अस्त्र माना जाता था। शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था। सुदर्शन चक्र का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।
यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्रीविष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पड़ने पर श्रीविष्णु ने इसे देवी पार्वती को प्रदान कर दिया। पार्वती ने इसे परशुराम को दे दिया और भगवान कृष्ण को यह सुदर्शन चक्र परशुराम से मिला।
इन सभी चक्रो में दिव्य ताकते होती थीं, चक्र किसी खास तरह की क्रिया द्वारा मंत्रो से संचालित होते थे और अपने कार्य को करके ही वापिस लौटते थे। चक्र इतने सक्षम भी होते थे कि अगर उनका लक्ष्य अपना रास्ता बदल ये या अपनी गति को तेज करले तो चक्र उसे भी पहचान लेता था, जिस कारण उसके लक्ष्य भेदने की क्षमता अपार थी।
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त्रिशूल : इस तरह भगवान शिव के पास कई अस्त्र-शस्त्र थे लेकिन उन्होंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र देवताओं को सौंप दिए। उनके पास सिर्फ एक त्रिशूल ही होता था। यह बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक है। इसमें 3 तरह की शक्तियां हैं- सत, रज और तम। प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन। इसके अलावा पाशुपतास्त्र भी शिव का अस्त्र है।