यदि महाभारत को विश्व का प्रथम विश्वययुद्ध कहा जाये तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। इस विशाल युद्ध में विश्व की कई सेनाओं ने भाग लिया था। स्वयं कृष्ण भगवान की आँखो के सामने घटित होने वाला ये धर्म युद्ध किसी रहस्य से कम नहीं है।
महाभारत में लिखा हुआ है कि यहां जो कुछ भी लिखा है वो आपको दुनिया की किसी भी किताब में लिखा हुआ मिल जाएगा, लेकिन यहां जो कुछ नहीं लिखा है वह कहीं भी नहीं मिलेगा अर्थात महाभारत में संपूर्ण धर्म, दर्शन, समाज, संस्कृति, युद्ध और ज्ञान-विज्ञान की बातें शामिल हैं। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो महाभारत में ना है।
इसी के साथ महाभारत युद्ध के कई ऐसे रहस्य भी हैं जिन्हें अभी तक सुलझाया नहीं गया है। उन्हीं रहस्यों में से एक रहस्य है 18 की संख्या का। कहते हैं कि महाभारत युद्ध में 18 संख्या का बहुत महत्व है।
आइए जानते हैं इस संख्या के महत्व और रहस्य को..
18 का रहस्य : कहते हैं कि महाभारत युद्ध में 18 संख्या का बहुत महत्व है। महाभारत की पुस्तक में 18 अध्याय हैं। कृष्ण ने कुल 18 दिन तक अर्जुन को ज्ञान दिया। 18 दिन तक ही युद्ध चला। गीता में भी 18 अध्याय हैं। कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल 18 अक्षोहिनी सेना थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिनी सेना थी। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे।
यह सभी जानते हैं कि महाभारत का युद्ध कुल 18 दिनों तक चला था। इस दौरान भगवान कृष्ण ने 18 दिन तक अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। इसी कारण श्रीमद्भगवत गीता में कुल 18 अध्याय हैं- अर्जुनविषादयोग, सांख्ययोग, कर्मयोग, ज्ञानकर्मसंन्यासयोग, कर्मसंन्यासयोग, आत्मसंयमयोग, ज्ञानविज्ञानयोग, अक्षरब्रह्मयोग, राजविद्याराजगुह्ययोग, विभूतियोग, विश्वरूपदर्शनयोग, भक्तियोग, क्षेत्र, क्षेत्रज्ञविभागयोग, गुणत्रयविभागयोग, पुरुषोत्तमयोग, दैवासुरसम्पद्विभागयोग, श्रद्धात्रयविभागयोग और मोक्षसंन्यासयोग। मालूम हो कि गीता महाभारत ग्रंथ का एक हिस्सा है।
ऋषि वेदव्यास ने महाभारत ग्रंथ की रचना की जिसमें कुल 18 पर्व हैं- आदि पर्व, सभा पर्व, वन पर्व, विराट पर्व, उद्योग पर्व, भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, अश्वमेधिक पर्व, महाप्रस्थानिक पर्व, सौप्तिक पर्व, स्त्री पर्व, शांति पर्व, अनुशासन पर्व, मौसल पर्व, कर्ण पर्व, शल्य पर्व, स्वर्गारोहण पर्व तथा आश्रम्वासिक पर्व। मालूम हो कि ऋषि वेदव्यास ने 18 पुराण भी रचे हैं।
कौरव-पांडवों की सेना और उनके योद्धाओं की संख्या…
कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल 18 अक्षोहिनी सेना थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिनी सेना थी।
इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे जिनके नाम इस प्रकार हैं- धृतराष्ट्र, दुर्योधन, दुशासन, कर्ण, शकुनि, भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, अश्वस्थामा, कृतवर्मा, श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रौपदी एवं विदुर।
18 की संख्या का अंतिम आश्चर्य यह है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों के तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। सवाल यह उठता है कि सब कुछ 18 की संख्या में ही क्यों होता गया? क्या यह संयोग है या इसमें कोई रहस्य छिपा है? यदि इस रहस्य से कोई पर्दा उठा सके तो महाभारत और अद्भुत ग्रंथ बन जायेगा।
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