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ISRO करेगा अब चाँद पर खुदाई, खोजेगा खरबों डॉलर के फ्यूल हीलियम-3 को

Helium 3 On Moon – भारत का ISRO देश की सबसे बड़ी अंतरिक्ष ऐजेंसी है जिसे नासा के बराबर ही माना जाता है। इसरो को किफायती दाम में अतरिक्ष मिशन करने के लिए जाना जाता है। अब इसरो अपने अगले मिशन में चांद पर हीलियम-3 को खोजने और उसे धरती पर लाने की तैयारी कर रहा है।

आपको बता दें कि इसरो ने इससे पहले चांद पर पानी की खोज करके पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ी थी, अब वह दुनिया का एकमात्र ऐसा देश बनने जा रहा है जो चांद के दक्षिणी हिस्से पर अपने रोवर को भेज कर उस जगह का परीक्षण करेगा।

इस न्यूक्लियर फ्यूल की कीमत खरबों डॉलर में है। एजेंसी ने दावा किया है कि अगर उसे चांद पर हीलियम मिल जाता है तो दुनिया में 250 सालों तक ऊर्जा की कमी नहीं होगी। बता दें कि दुनिया के कई देशों की सरकारी और प्राइवेट स्पेस एजेंसी चांद पर हीलियम-3 की खोज की संभावना तलाश रही हैं।

इसरो का कहना है कि जिस किसी भी देश में चांद से हीलियम-3 लाने पाने की ताकत होगी, वह इस प्रोसेस पर अपना वर्चस्व कायम करेगा। भारत इस प्रोसेस को लीड करना चाहता है।

800 करोड़ रुपए है भारत के मिशन की लागत…

-इसराे अक्टूबर में एक रोवर और जांच मिशन लॉन्च करेगा। इस मिशन में चांद की अछूती सतह पर मिट्टी और पानी के नमूने इकट्ठा किए जाएंगे। इन नमूनों को आगे की जांच के लिए धरती पर लाया जाएगा। इस मिशन में तकरीबन 800 करोड़ रुपए का खर्चा होगा। ये मिशन, यूएस स्पेस एजेंसी नासा के इसी तरह के मिशन से काफी सस्ता है।

हीलियम-3 की कीमत 5 बिलियन डॉलर (3445 करोड़ रु) प्रति टन है। ऐसे में वहां ढाई लाख टन हीलियम-3 भी मिलता है, तो उसकी कीमत खरबों डॉलर की होगी।

अमेरिकी अंतरिक्ष ऐजेंसी नासा का दावा है कि चांद पर 10 लाख मीट्रिक टन  Helium 3 मौजूद है। इसका एक चौथाई हिस्सा धरती पर लाया जा सकता है। अभी अनलिमिटेड न्यूक्लियर एनर्जी वाले हीलियम का ये आइसोटोप धरती पर सीमित मात्रा में है। क्योंकि ये सूरज से उसकी सौर वायु में उत्सर्जित होता है। हमारा मैग्नेटिक फील्ड एरिया इसे धरती की सतह पर पहुंचने से रोकता है।

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वहीं, चांद का ऐसा कोई मैग्नेटिक फील्ड एरिया नहीं है। इसलिए नासा के साइंटिस्ट्स का मानना है कि चांद की सतह हीलियम-3 को सोख रही है और वहां प्रचुर मात्रा में हीलियम-3 मौजूद है। इससे 250 सालों तक ग्लोबल एनर्जी की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है।

क्या है हीलियम-3

चांद पर हीलियम-3 होने की पुष्टि मशहूर भूविज्ञानी हैरिसन श्मिट (Harrison Schmitt)  ने 1972 में अपोलो-17 मिशन से चांद से लौटने के बाद की थी। हीलियम-3 न्यूक्लियर फ्यूजन के लिए एक अनमोल और स्वच्छ ईंधन है, जिसे धरती पर प्राप्त नहीं किया जा सका है। हालांकि हीलियम-3 की सीमित मात्रा में माइनिंग और सस्ती दरों पर परिवहन किया जा सके, तो यह फ्यूजन एक अच्छा ऑप्शन भी हो सकता है।

 

Team Vigyanam

Vigyanam Team - विज्ञानम् टीम

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