पौराणिक कथाओं और शास्त्रों के अनुसार अप्सरा को एक सुंदर, अनुपम और अनेक कलाओं में दक्ष स्वर्ग में रहनी वाली अलौकिक और तेजस्वी दिव्य स्त्री माना जाता है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि देवी, परी, अप्सरा, यक्षिणी, इन्द्राणी और पिशाचिनी आदि कई प्रकार की स्त्रियां हुआ करती थीं। उनमें अप्सराओं को सबसे सुंदर और जादुई शक्ति से संपन्न माना जाता है।
आपने कई कथाएं इन्हीं अप्सराओं के ऊपर सुनी होगीं की कैसे यह अपने सुंदर, चंचल और अनुपम रूप और व्यव्हार से ऋषि-मुनियों की भी तप्सया भंग कर दिया करती थीं। अपने सुंदर रूप और मन को मोहने वाले लावण्य के कारण ही इनका स्वर्ग में ऊँचा स्थान था।
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देवराज इंद्र को जब भी किसी के भेद जानने की इच्छा या उसके तप को भंग करना पड़ता था तब वे इन्हीं सुंदर अप्सराओं का प्रयोग किया करते थे।
कितनी हैं अप्सराएं?
शास्त्रों के अनुसार देवराज इन्द्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं प्रमुख सेविका थीं। ये 11 अप्सराएं हैं- कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा। इन सभी अप्सराओं की प्रधान अप्सरा रम्भा थीं।
अलग-अलग मान्यताओं में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई है। कुछ नाम और- अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चन्द्रज्योत्सना, देवी, घृताची, गुनमुख्या, गुनुवरा, हर्षा, इन्द्रलक्ष्मी, काम्या, कर्णिका, केशिनी, क्षेमा, लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, रक्षिता, ऋतुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, उमलोचा आदि।
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